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कश्मीर में सुधार के दूसरे चरण की जरूरत
चेतन भगत का कॉलम:
अच्छी खबर : केंद्र शासित प्रदेश कश्मीर में नवंबर 2021 में रिकॉर्ड 1.27 लाख सैलानी आए। इसकी तुलना करें, तो नवंबर में सात सालों का औसत 54,200 है। वहीं नवंबर 2020 में 6327, 2019 में 12,086 और 2018 में 33,720 पर्यटक घाटी पहुंचे। भारत की आबादी के लिहाज से 1.27 लाख कुछ ज्यादा नहीं है, मतलब चार हजार पर्यटक रोजाना। पर हां, हमेशा संकट से घिरे रहने वाली सरज़मीं के लिए यह आशा की किरण हो सकती है। सैलानियों की यह संख्या कई गुना बढ़ सकती है।
इसका मतलब होगा ज्यादा नौकरियां, बेहतर अर्थव्यवस्था और स्थानीय लोगों के लिए समग्र रूप से समृद्धि। यही है जो अंततः कश्मीर समस्या का समाधान करेगा- लोगों के हाथों में पैसा, बेहतर जिंदगी की इच्छा और अच्छे कल की उम्मीद। जाहिर है कि सिर्फ पर्यटन से ही अर्थव्यवस्था ठीक नहीं हो सकती। दूसरे व्यवसाय बढ़ाने के उपाय करना भी जरूरी है। आर्टिकल 370 खत्म करना, यूटी का दर्जा मिलना और भूमि कानूनों में बदलाव घाटी के संकट को ठीक करने के लिए हालिया पहले चरण के उपाय थे।
पर जल्दबाजी में किए इन सुधारों से हर चीज का समाधान नहीं निकलेगा, पर हां, पहले कदम के तौर पर ये जरूरी थे। दशकों से चली आ रही बैठकें और विशेषज्ञों की बातचीत सिर्फ एक ही निष्कर्ष पर पहुंची- ये मामला बहुत जटिल है। धारा 370 हटाकर और पहले चरण के कुछ उपायों से हमने इस बारे में कम से कम कुछ किया तो। ये भी सही है कि चंद कानून पास कर देने से जनमानस नहीं बदलता। जम्मू और लद्दाख बदलाव के बाद ठीक-ठाक करते दिख रहे हैं।
हालांकि कश्मीर घाटी के स्थानीय लोग नए बदलावों को पूरी तरह स्वीकार नहीं कर पाए हैं। कुछ चुनिंदा बौद्धिक लोग 'दिल जीतने' और 'वाकई इन लोगों को सुनने' की सलाह देते हैं। पर किसी को पता नहीं कि इसे धरातल पर कैसे किया जाए, विशेष तौर पर जब इनमें से कई दिल भारत के खिलाफ हैं या घाटी को लेकर भारत की योजना के खिलाफ हैं। मेरा मानना है कि अगर भारत, घाटी में सबकुछ ठीक करने की अपनी कोशिशें करना छोड़ दे तो इलाके का तेजी से पतन हो जाएगा।
पाकिस्तान के प्रभाव में आकर ड्रग और हथियारों से भरा, कट्टरता में फंसा एक और अफगानिस्तान बन जाएगा। इसलिए 'आइए दिल जीतें' वाला यह तर्क थोड़ा ट्रिकी है, विशेषतौर पर जब सवालों में घिरा दिल आपको हकीकत में बेहतर जगह नहीं ले जा रहा। कश्मीर में वही काम करेगा, जो दुनिया के इतिहास में हमेशा काम करता आया है- लोगों के हाथों में पैसा और एक भरोसा कि बेहतर जिंदगी होती है अगर वे इसके लिए काम करें।
क्योंकि अगर आपका कोई बढ़ता हुआ व्यवसाय है या किसी अंतरराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी है, तो ऐसा शायद ही होगा कि आप पत्थरबाजी करें या बम फेंके। (हां, कट्टर सॉफ्टवेयर इंजीनियर भी हैं, वे सिर्फ अपवाद हैं।) इसलिए बिजनेस को बढ़ावा देना, पर्यटन बढ़ाना और नौकरियां पैदा करना ही कश्मीर मामले को सुलझाने का इकलौता उपाय है।
व्यापार में वृद्धि (और चाहिए) का मतलब बड़े व्यवसायों के लिए भी बढ़ावा होगा। ये इलाका बड़ी कंपनियों से वंचित क्यों रहे, जबकि वे लाखों नौकरियां दे सकती हैं? क्यों भारत में बुद्धिजीवियों का एक वर्ग बिजनेस को सिर्फ महिमामंडित छोटे कुटीर उद्योगों तक ही देखता है? हम ऐसा क्यों सोचते हैं कि कश्मीरियों के पास कारपेट बुनने या लोगों को नौका विहार पर ले जाने की ही सबसे अच्छी नौकरी हो सकती है? क्या कश्मीरी युवा साइट इंजीनियर, होटल के जीएम या प्रोग्रामर नहीं बनना चाहते?
बड़े व्यवसाय पहुंचे बिना यह कैसे संभव होगा? हम बड़े बिजनेस को इतना नापसंद क्यों करते हैं? क्या हम सब रोजाना उन बड़े बिजनेस के उत्पाद इस्तेमाल नहीं कर रहे- जैसे माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, वाट्सएप। हालांकि बड़े बिजनेस और बड़े निवेश किसी इलाके में तब तक नहीं पहुंचते जब तक कुछ शर्तें पूरी न हों। पहली तो यह कि इलाका सुरक्षित होना चाहिए। दूसरा, व्यवसाय में एक अच्छी ग्रोथ और रिटर्न की संभावनाएं दिखनी चाहिए। तीसरा, कम राजनीतिक हस्तक्षेप या अनिश्चितता के बिना व्यापार में आसानी हो।
कश्मीर में यह सब होने के लिए सरकार को इस इलाके के लिए दूसरे चरण की नीतियां बनानी होंगी। सुरक्षा के लिए चाक-चौबंद व्यवस्था के साथ सुरक्षित इलाके और सोसायटीज़ बनानी होंगी, जहां सुरक्षा सर्वोपरि हो। इन इलाकों में किसी भी आतंकी वारदात को कड़ाई से निपटना होगा, ना कि 'दिल जीतने वाली या भटके हुए नौजवानों' वाला राग अलापते हुए। एक वारदात पूरे इलाके की सुरक्षा धारणा चौपट कर सकती है और इससे सच में लाखों नौकरियां जा सकती हैं।
कश्मीर में अच्छे रिटर्न के लिए सरकार को कम कर-क्षेत्र की घोषणा करनी चाहिए (उदाहरण के लिए जैसे अमेरिका का कम टैक्स वाला इलाका- डेलावेयर) यह व्यवसायों को वहां आने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है। कश्मीर के नए भूमि कानून भारत से किसी को भी वहां जमीन खरीदने की इजाजत देते हैं। ये कश्मीर को बेच देना नहीं है। यह किसी जगह की मूलभूत जरूरत होती है, जो बिजनेस को आकर्षित करती है। पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए कश्मीर को अपग्रेड होने की जरूरत है।
ये खूबसूरत जगह है, लेकिन लगता है कि 1980 के पर्यटन में ही फंसी हुई है। पुरानी यादें अलग हैं, पर डल झील पर नांव की धीमी सवारी एक समय के बाद बोरिंग हो सकती है। भारत के हिल स्टेशंस को अब सनराइज-सनसेट पॉइंट से परे जाने की जरूरत है। जगहों की फिर से कल्पना करने की जरूरत है, खासकर आज की इंस्टाग्राम पीढ़ी में। साथ ही यह एहसास होना चाहिए कि अधिकांश पर्यटक मनोरंजन और आराम फरमाने के लिए आते हैं। किसी को सम्मोहित करने की प्राकृतिक सुंदरता की भी अपनी सीमा होती है।
युवा पीढ़ी को कश्मीर में आकर्षित करने के लिए वहां कैफे, बार होना चाहिए। कुछ लोग कहते हैं कि स्थानीय लोग और उनकी धार्मिक मान्यताएं इसके आड़े आती हैं। उनके लिए एक शब्द है- सहिष्णुता। कोई भी ऐसा अच्छा पर्यटन स्थल नहीं, जहां आपको ड्रिंक न मिले। (भले ही मैं एल्कोहल को बढ़ावा नहीं देता) यूएई जैसे इस्लामिक मुल्कों ने भी स्थानीय मान्यताओं और पर्यटकों की जरूरतों में तालमेल बना रखा है।
दुबई में आपको ड्रिंक्स मिल सकती है। यह सब स्वीकार करने की बात है और ना कि अपनी मान्यताएं दूसरों पर थोपने की बात। याद रखें, पर्यटन = युवाओं के लिए नौकरियां= शांति और कश्मीरी समस्याओं का समाधान। कश्मीर को सुधार के दूसरे चरण की जरूरत है, जिससे वहां की अर्थव्यवस्था चलेगा और नौकरियां पैदा होंगी। हां, अंतत: तो यह दिल जीतना ही है। लेकिन पता नहीं क्यों लोगों की जेब में पैसों की मदद करके उनका दिल जीतना बहुत आसान होता है।
यही इकलौता समाधान है
कश्मीर में वही काम करेगा, जो दुनिया के इतिहास में हमेशा काम करता आया है- लोगों के हाथों में पैसा और भरोसा कि बेहतर जिंदगी होती है अगर वे इसके लिए काम करें। क्योंकि अगर आपका कोई बढ़ता हुआ बिजनेस है या किसी अंतरराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी है, तो शायद ही आप पत्थरबाजी करें।
कश्मीर में सुधार के दूसरे चरण चाहिए, जिससे वहां की अर्थव्यवस्था चलेगा और नौकरियां पैदा होंगी। बिजनेस को बढ़ावा, पर्यटन बढ़ाना और नौकरियां पैदा करना ही कश्मीर मामला सुलझाने का इकलौता उपाय है। पर्यटन = युवाओं के लिए नौकरियां= शांति और कश्मीरी समस्याओं का समाधान।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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