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इस बार भी कांगड़ा को फिर अपने किए की सजा मिल रही है या इस जिला की तासीर में शर्मसार होना लिखा है
By: divyahimachal
इस बार भी कांगड़ा को फिर अपने किए की सजा मिल रही है या इस जिला की तासीर में शर्मसार होना लिखा है। शायद यहां राजनीति के गुलदस्ते केवल सत्ता के चाटुकार हैं या यहां के नेता भीगी बिल्लियों की तरह ऐसे अंजाम के काबिल हैं। हम यह नहीं कहेंगे कि वर्तमान राजनीतिक दौर के बीच भाजपा ने कांगड़ा को कितना कंगाल किया या नेताओं की दुर्गति का कितना एहसास हुआ, फिर भी वक्त के पहिए, प्रगति का मूल्यांकन और सत्ता के मंच पर जो चमक रहा है, वहां कांगड़ा अपराधी की तरह अपना समय निकाल रहा है। मंत्रिमंडल के विभागीय बंटवारों में कांगड़ा की औकात का अंदाजा बजटीय आबंटन में होता रहा है। राकेश पठानिया, सरवीण चौधरी या बिक्रम सिंह अपने विभागीय अक्स में जिस बजट या नेतृत्व को ढो रहे हैं, उसका अंदाजा हो सकता है। दो बार के मुख्यमंत्री रहे शांता कुमार जिस आशीर्वचन से सत्ता में कांगड़ा को लोरी सुना रहे हैं, उसका मुआवजा यहां की अनदेखी ढो रही है। परियोजनाओं की शिनाख्त में कांगड़ा की फोरलेन परियोजनाओं का जलवा जहां टंगा है, वहां राजनीति के कई मरघट हैं। जिस कांगड़ा एयरपोर्ट पर हिमाचल में आ रही कुल नौ उड़ानों में से आठ का अभिनंदन होता है, उसके विस्तार पर शिमला का अनूठा अंकगणित यह कहता है कि सरकार ने तो सिर-धड़ की बाजी में मंडी एयरपोर्ट को कामयाब करने के लिए, कांगड़ा हवाई अड्डे को खारिज करना है।
बेशक शांता कुमार, अनुराग ठाकुर या सरकार के हेलिकाप्टर यहां उतरते हैं, लेकिन क्या मजाल जो इसके विस्तार पर कहीं चर्चा होती हो। एयरपोर्ट अथारिटी को ये आंकड़े कौन दिखाएगा कि हिमाचल की हवाई सेवाएं यहीं सबसे कामयाब हैं। इतना ही नहीं, हिमाचल प्रदेश के शिमला विश्वविद्यालय का बंटवारा जिस तरह हुआ है, उसकी हर सरहद कांगड़ा की तकलीफ बढ़ा गई है। इससे पहले भी पिछली भाजपा सरकार ने तकनीकी विश्वविद्यालय और केंद्रीय विश्वविद्यालय के नाम पर शिक्षा के अहम चिराग को कांगड़ा के बीच बांट दिया था और अब मंडी का इतिहास लिखती वर्तमान सरकार ने शिमला यूनिवर्सिटी का इतिहास ही बांट दिया। आश्चर्य यह कि तीन दशकों से चल रहे शिमला विश्वविद्यालय के धर्मशाला क्षेत्रीय अध्ययन केंद्र के अस्तित्व पर बिना टिप्पणी करते हुए इसे मंडी विश्वविद्यालय से जोड़ा जा रहा है। शिक्षा के इतिहास में किसी एक संस्थान के महत्त्व को पूरा करने के लिए इस तरह का सलूक नहीं हुआ।
आश्चर्य यह कि अध्ययन केंद्र धर्मशाला, अपने आप में एक राज्य विश्वविद्यालय के दायित्व में 1992 से स्थापित है, लेकिन इसके वजूद को एक झटके में शिमला से हटाकर ऐसे विश्वविद्यालय से बांध दिया, जिसका अभी कोई अपना परिचय तक नहीं। आश्चर्य यह भी कि जिस अध्ययन केंद्र के प्रस्तावित आर्ट ब्लॉक, ऑडिटोरियम, छात्रावास, हैल्थ सेंटर व आवासीय परिसर का निर्माण होना चाहिए था, उसे लावारिस बना दिया गया। बेशक वर्तमान सरकार ने कांगड़ा को टुकड़ों में बांटा नहीं, लेकिन बड़ी परियोजनाओं में इसकी साझेदारी को अहमियत भी नहीं मिली। कांगड़ा एयरपोर्ट विस्तार और शिमला विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय अध्ययन केंद्र को नजरअंदाज करने की वजह या तर्क कुछ भी हों, लेकिन समाज के भीतर राजनीति के ऐसे दृष्टांत तकलीफ देते हैं। इसी के साथ कांगड़ा से शिफ्ट हुए दो महत्त्वपूर्ण दफ्तर मंडी चले जाते हैं, तो यह जिक्र उन हवाओं का नहीं जो मौसम को सुहावना बनाती हैं, बल्कि यह अपने ही खाके को जब तहस-नहस करेंगी, तो अफसोस होगा। शायद कांगड़ा के भाजपायी नेताओं को इल्म नहीं कि वे अपनी ही सियासत में कितने बौने हो गए हैं या हमेशा आशीर्वाद देते शांता कुमार को भी मालूम नहीं कि जिस कांगड़ा ने उन्हें शक्ति, समर्थन और सामर्थ्य दिया, अब वहां की राजनीतिक मिट्टी कितनी खोखली है।
Gulabi Jagat
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