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- जुगाड़, मसखरी और...
जुगाड़ में मसख़री हो सकती है या मसख़री में जुगाड़। यह भले ही शोध का विषय हो, लेकिन वर्तमान साहित्य में होने वाले जुगाड़ और मसख़री पर शोध की कोई गुँजाइश नहीं। कम से कम स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय साहित्यिक सम्मेलनों के आयोजन या बँटने वाले पुरस्कारों को देखते हुए तो यही लगता है। पहले लिखने में जुगाड़ और मसख़री, फिर छपने और साहित्यिक सम्मेलनों में भाग लेने या पुरस्कारों से तथाकथित अलंकरण हेतु जुगाड़ और मसख़री। हिमाचली साहित्य के दर्पण पर जमी जुगाड़ और मसख़री की धूल पर शिमला में इस बरस आयोजित अंतरराष्ट्रीय साहित्योत्सव ने देश-दुनिया को कितना कुछ दिया होगा, इसका अंदाज़ा हिमाचली साहित्यकारों की बंदरबाँट और जुगाड़ुओं को जमाने के लिए मसख़री की उस जामन से लगाया जा सकता है जो हिमाचल भाषा, कला एवं संस्कृति विभाग और अकादमी द्वारा हर साल प्रायोजित पुरस्कारों के लिए इस्तेमाल की जाती है। हिमाचल विभाग और अकादमी ने सिंथेटिक दूध की तरह नई प्रादेशिक बोलियों के आविष्कार को मान्यता की जामन लगा कर पहाड़ी-हिमाचली, हिमाचली-पहाड़ी, हिमाचली-मंडयाली या हिमाचली-कुल्लवी जैसी मनघडंत बोलियों के अखिल भारतीय व्यंजन बनाने की पूरी कोशिश की। हिमाचल के जिन चवालीस लेखकों को कथित अंतर्राष्ट्रीय लिटरेचर फेस्टिवल में आमंत्रित कर उनकी आदमक़द तस्वीरों को रिज और माल रोड पर टांगा गया, उनमें से अठाईस तो केवल स्थानीय बोलियों के लेखक थे।