सम्पादकीय

कश्मीर को बचाने वाले जगमोहन ने पाकिस्तान के जेहादी षड्यंत्र को नाकाम किया था

Gulabi Jagat
29 March 2022 10:24 AM GMT
कश्मीर को बचाने वाले जगमोहन ने पाकिस्तान के जेहादी षड्यंत्र को नाकाम किया था
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जगमोहन के प्रति हमें कृतज्ञ होना चाहिए
मनोज रघुवंशी।
जगमोहन (Jagmohan) के प्रति हमें कृतज्ञ होना चाहिए. वे कश्मीर (Kashmir) के रक्षक थे. उस साहसी व्यक्ति ने राज्य में सियासी जादू कर दिखाया था. उन्होंने जेहादी साजिश का गला घोंट दिया था. यह वही षड्यंत्र था जिसके तहत हमारी मातृभूमि भारत के ताज को काटने की साजिश रची जा रही थी. यह हमला इतना क्रूर था कि उनकी जगह किसी कमजोर इंसान को लकवे का शिकार बना सकता था. बहरहाल, 19 जनवरी, 1990 के उस अहम दिन को उन्होंने राज्य का शीर्ष पद ग्रहण किया था. राज्यपाल (Governor) के रूप में उनकी नियुक्ति वास्तव में क्षण भर में ली गई एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया थी. यह फैसला उस अजीबो-गरीब केंद्र सरकार की थी जिसे बाहर से वामपंथी और दक्षिणपंथी दोनों ही समर्थन दे रहे थे.
घाटी में जब मौत का तांडव चल रहा था तब वीपी सिंह की सरकार ने इस फौलादी शख्स के कंधों पर यह महत्वपूर्ण जिम्मेदारी रखी थी. पुरुषों की भीड़ जमा हो रही थी जो धीरे-धीरे उन्मादी और उग्र होती जा रही थी. 19 जनवरी की रात को श्रीनगर में आए उस तूफान की वजह से कश्मीरी हिंदुओं का सामूहिक पलायन शुरू हो गया था. उस दिन घाटी के कुछ हिस्सों में बर्फबारी हो रही थी और ऐसे हालात में नफरत और आतंक ने निर्दोष हिंदुओं को अपने पुश्तैनी घरों को छोड़ने के लिए मजबूर किया.
"या तो धर्म बदल लो , या मर जाओ, या भाग जाओ"
उनमें से कई लोगों को यह उम्मीद थी कि शायद तूफान थमने के बाद वे जल्द ही वापस आ जाएंगे. उन्हें इस बात का एहसास नहीं था कि यह केवल एक जिहादी श्रृंखला की शुरुआत थी जिसे बिट्टा कराटे और यासीन मलिक से अफजल गुरु और बुरहान वानी तक के दौर में बांटा गया था. इतिहास गवाह है कि दुनिया में कहीं भी जेहाद अपने आप समाप्त नहीं होता.
19 जनवरी की रात को जंग-ए-मैदान में लगाए जाने वाले इस्लामिक नारों जैसे 'नारा-ए-तकबीर, अल्लाह-हू-अकबर' के लिए याद किया जाता रहेगा. इन नारों को सुनकर रोएं खड़े हो जाते थे. राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी के बुलवार्ड रोड पर करीबन दो लाख कश्मीरी मुसलमान खतरनाक रूप से चिल्ला रहे थे – "यहां क्या चलेगा? निज़ाम-ए-मुस्तफ़ा".
शहर के चारों ओर की मस्जिदों के ऊपर लाउडस्पीकर से कश्मीरी भाषा में चिल्लाया जा रहा था, "हिंदुओं तुम अपने घरों की महिलाओं को यहीं छोड़ दो. बिना हिन्दू पुरुषों के हम आपकी महिलाओं के साथ पाकिस्तान बनाएंगे." मस्जिदों से हिन्दू आबादी को अल्टीमेटम दी जा रही थी, "या तो धर्म बदल लो , या मर जाओ, या भाग जाओ". उस बुरे दौर में करीबन 1600 हिंसक घटनाएं दर्ज की गई थीं, जिसमें चुन-चुन कर लोगों की हत्या की गई, महिलाओं के साथ बालात्कार जैसे जघन्य अपराध और मंदिरों को नुकसान पहुंचाया गया.
जगमोहन जिहादियों के दुश्मन नंबर एक बन गए थे
आतंकवादियों का एजेंडा था कि 26 जनवरी, शुक्रवार को श्रीनगर के ईदगाह में विभिन्न जिलों के मुसलमानों को भारी संख्या में इकट्ठा किया जाए. जुम्मा-नमाज के बाद 'तकरीर' में यह घोषित करना था कि कश्मीर अब एक आज़ाद इस्लामी गणराज्य है. यह साजिश तब चल रही थी जब घाटी से हिंदुओं का पलायन हो रहा था. अगर कुछ इस्लामिक देशों ने उस स्वतंत्र "इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ कश्मीर" को औपचारिक मान्यता दे दी होती, तो भारत के लिए एक विश्वव्यापी कूटनीतिक समस्या आ खड़ी होती. लेकिन जगमोहन ने उसे क्लाइमेक्स तक पहुंचने से पहले ही बुरी तरह रौंद डाला. जगमोहन को कदम उठाने की छूट थी. राज्य में राष्ट्रपति शासन का वह छठा दिन था.
रातों-रात जगमोहन उन सभी लोगों के लिए सबसे बड़े खलनायक बन गए जो सालों से अलगाव का सपना देख रहे थे. राज्य का तापमान पिछले महीने से लगातार बढ़ रहा था, जब मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी का अपहरण कर लिया गया था और सरकार ने महबूबा की सकुशल वापसी के लिए पांच आतंकवादियों को रिहा किया था. जिहादी फिनिशिंग लाइन की ओर दौड़ रहे थे. लेकिन जगमोहन ने उनका रास्ता रोक दिया. जेहादियों को मालूम हो चला था कि अब उनका समय खत्म हो चुका है. वे समझ गए थे कि अब वे निकट भविष्य में जन समुदाय तक नहीं पहुंच पाएंगे. उनकी ताकत सीमित थी जगमोहन उनके दुश्मन नंबर एक बन गए.
जगमोहन के लिए अलोकप्रियता के जहर को निगलना कठिन रहा होगा. 1984-1989 तक के अपने पिछले कार्यकाल में बतौर राज्यपाल उन्होंने अभूतपूर्व विकास कार्य किए थे. वे तब उन्हीं लोगों के लिए जिगर के टुकड़े थे. जुलाई 1989 में अपना कार्यकाल पूरा करने के छह महीने बाद वे फिर से राज्यपाल बना दिए गए. इस बीच, दुनिया काफी बदल गई थी. अफगान युद्ध समाप्त हो चला था. सोवियत संघ पीछे हट गया था. आईएसआई ने अपनी हत्यारी ऊर्जा, धन और मैनपावर को कश्मीर की ओर मोड़ दिया. जगमोहन धोखा देने वाले उस जाल से बाहर निकल आए थे. नतीजतन बेनजीर भुट्टो नाराज हो गईं.
'द कश्मीर फाइल्स' ने देश के मिजाज को एक बार फिर जगा दिया है
बेनजीर पाक अधिकृत कश्मीर के मुजफ्फराबाद में एक रैली में चीख रही थी कि जगमोहन को "जग-जग, मो-मो, हन-हन" में बदल दिया जाएगा. उसके इस बयान को डिकोड करने पर पता चला कि उन्होंने खुलेआम धमकी दी थी कि जगमोहन के टुकड़े-टुकड़े कर दिए जाएंगे. पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री के स्वर में जंगली तीखापन काफी भयावह था. शायद उन माफियाओं से भी अधिक जो व्यक्तिगत दुश्मनी से निपटने के लिए 'सुपारी' जारी करता है. बेनजीर जगमोहन को कश्मीर से बाहर निकालना चाहती थी. और वीपी सिंह ने जगमोहन को बर्खास्त कर दिया. जाहिर तौर पर जगमोहन को हटाने का कारण यह था कि मीरवाइज फारूक के अंतिम संस्कार के जुलूस पर गोली चलाई गई थी (हालांकि जगमोहन ने फायरिंग का आदेश जारी नहीं किया था). दरअसल , वीपी सिंह के गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद जगमोहन से काफी नफरत करते थे. मुफ्ती ने इस घटना को एक मौके के रूप में इस्तेमाल किया और 5 महीने में ही उन्हें बाहर कर दिया गया.
हालांकि जगमोहन की सियासी शहादत तो हो गई लेकिन उन्होंने पहले ही एक बहुत बड़ा ऐतिहासिक कर्तव्य निभा लिया था. उन्होंने जेहादी आग को निष्क्रिय कर दिया था. कश्मीर एक घातक प्रहार से बच गया था. लेकिन उसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी. शरीर तो जीवित रहा लेकिन उसकी आत्मा को बिखरे हुए निर्वासन में धकेल दिया गया. हिंदू जो कश्मीर के मूल निवासी थे उन्हें अपने जन्नत से बाहर रहने के लिए मजबूर होना पड़ा. वे अब केवल एक कमजोर डोर से जुड़े हैं जो काफी लचीली है, जो निरंतर खिंचती है और दर्द देती है. कश्मीर पूरी तरह से तभी जीवित होगा जब उसकी आत्मा शरीर में वापस आएगी.
अपने अधूरे सपनों के साथ जगमोहन इस दुनिया को अलविदा कह गए. वे सपने असंभव नहीं हैं. लेकिन निश्चित रूप से जन्नत की वापसी के लिए ये एक कठिन चढ़ाई हैं. यह काम 32 साल पहले बहुत देर से शुरू हुआ था. लेकिन यह निश्चित रूप से शुरू हो गया है. 'द कश्मीर फाइल्स' ने देश के मिजाज को एक बार फिर जगा दिया है. अंतिम संकल्प का खाका अब भारत के उस महान नायक जगमोहन पर आधारित एक बायोपिक में रखा जा सकता है. बायोपिक का टाइटल हो सकता है : 'पौरुष'.
(लेखक ने 1990 में कश्मीरी पंडितों के पलायन को कवर किया और आतंकवादी बिट्टा कराटे के साथ मशहूर हुआ इंटरव्यू लिया था. आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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