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By NI Editorial
दुनिया भर में विकासशील देशों के ऊपर कर्ज संकट का साया लगातार गहराता जा रहा है। उस लिहाज से देखें तो श्रीलंका का डिफॉल्ट करना (कर्ज चुकाने में खुद को अक्षम घोषित करना) महज एक शुरुआत है। ऐसे देशों की सूची आने वाले दिनों में लंबी हो सकती है। कर्ज संकट और विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार गिरावट के संकट का दायरा जिस तेजी से फैल रहा है, उसके बीच कौन-सा देश अपनी अर्थव्यवस्था को बेदाग बचा पाएगा, इसके बारे में अनुमान लगाना लगातार मुश्किल होता जा रहा है। अब ताजा सामने आई जानकारी के मुताबिक अर्थव्यवस्था वाले देशों पर इस वर्ष अप्रैल से जून तक की तिमाही में सरकारी और निजी- दोनों क्षेत्र पर कर्ज का बोझ बढ़ा। कर्ज की स्थिति के बारे में ताजा जानकारी अमेरिकी संस्थान- इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल फाइनेंस (आईआईएफ) की रिपोर्ट से मिली है। इसके मुताबिक उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों में अब कर्ज की मात्रा उनके सकल घरेलू उत्पाद की तुलना में 252.4 प्रतिशत हो गई है।
साल भर पहले ये आंकड़ा 250.2 प्रतिशत था। सिंगापुर और चीन अपेक्षाकृत समृद्ध देश हैं। लेकिन सिंगापुर सरकार पर अब कर्ज जीडीपी की तुलना में 176.2 प्रतिशत और चीन में 76.2 प्रतिशत हो गया है। इसी तरह प्राइवेट सेक्टर के कर्ज में भी बढ़ोतरी हुई है। वियतनाम की कंपनियों पर कर्ज की मात्रा वहां के जीडीपी की तुलना में 107.9 फीसदी हो गई है। साल भर पहले ये आंकड़ा 100.6 प्रतिशत ही था। आईआईएफ के मुताबिक अगर पूरी दुनिया पर गौर करें, तो अप्रैल से जून की तिमाही में सार्वजनिक और निजी कर्ज जीडीपी की तुलना में 349 प्रतिशत तक पहुंच गया। यह वहां आर्थिक वृद्धि दर में तेजी से आ रही गिरावट का परिणाम है। दरअसल, चीन और यूरोप की अर्थव्यवस्था में गिरावट का दौर है। इसके अलावा ऊर्जा एवं खाद्य पदार्थों की महंगाई आसमान पर है। ऐसे में संभावना है कि सरकारें और ज्यादा कर्ज लेंगी। तो संकट का गहराना लाजिमी है। ये ट्रेंड आगे बढ़ा तो बहुत से देशों के पास डिफॉल्टर होने के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचेगा।
Gulabi Jagat
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