सम्पादकीय

विभिन्न राज्यों में हुए उपचुनावों के नतीजों में कोई राष्ट्रीय संकेत खोजना बेकार

Rani Sahu
13 Nov 2021 6:31 PM GMT
विभिन्न राज्यों में हुए उपचुनावों के नतीजों में कोई राष्ट्रीय संकेत खोजना बेकार
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तीस विधानसभा और तीन लोकसभा सीटों के नतीजों के कई मायने निकाले जा रहे हैं

संजय कुमारतीस विधानसभा और तीन लोकसभा सीटों के नतीजों के कई मायने निकाले जा रहे हैं। कुछ इसे भाजपा की घटती लोकप्रियता और कांग्रेस का पक्ष मजबूत होने का संकेत मान रहे हैं। ये लोग हिमाचल के नतीजों को ज्यादा ही महत्व दे रहे हैं। वहीं कुछ असम तथा तेलंगाना के नतीजे देखकर भाजपा के पक्ष में सकारात्मक कथानक बना रहे हैं।

कुछ ऐसे भी हैं जो बंगाल के नतीजों पर कह रहे हैं कि भाजपा के विकल्प के रूप में स्थानीय पार्टियों के उभरने की अच्छी संभावना है। मुझे लगता है कि नतीजों की विभिन्न व्याख्याएं लाजिमी हैं क्योंकि लोग नतीजों को अलग-अलग चश्मों से देखकर अपनी पसंद की व्याख्या कर रहे हैं। नतीजों के पीछे कोई बड़ा राष्ट्रीय संदेश को खोजना बेकार है। कुछ अपवादों को छोड़कर, सत्ताधारी पार्टी ने अपने-अपने राज्य में अच्छा प्रदर्शन किया है।
वहां प्रदर्शन बेहतर रहा, जहां सरकार ज्यादा पुरानी नहीं थी। मेरा मत है कि ये नतीजे न तो 2022 विधानसभा चुनावों को लेकर और न ही 2024 लोकसभा चुनावों को लेकर कोई संकेत देते हैं। ये सिर्फ यही बताते हैं कि भाजपा के दबदबे के बावजूद भारतीय राजनीति बिखरी हुई है, अपनी गड़बड़ों के बावजूद कांग्रेस अब भी भारतीय राजनीति में प्रासंगिक है और राज्य की राजनीति में अब भी क्षेत्रीय पार्टियों का प्रभुत्व है।
हाल के उपचुनावों में 30 विस सीटों में भाजपा 7, कांग्रेस 8 जबकि सभी क्षेत्रीय पार्टियां 15 सीटें जीतीं। तीन लोस सीटों में भाजपा, कांग्रेस व शिवसेना ने 1-1 सीट जीती। भाजपा राजस्थान व पश्चिम बंगाल में बड़े अंतर से हारी, कुछ सीटों पर वोट शेयर 30% तक घट गया। बेशक भाजपा के लिए ऐसी हार बुरी है, लेकिन यह भी ध्यान रखना चाहिए कि असम उपचुनाव में भाजपा को बड़ी जीतें मिली हैं।
तेलंगाना की हुजुराबाद विधानसभा सीट पर भी उसे अच्छी जीत मिली। मध्य प्रदेश में उसका प्रदर्शन अच्छा रहा। ऐसे में यह नहीं कह सकते कि भाजपा के खिलाफ कोई बड़ी लहर है। इन उपचुनावों में कांग्रेस की सफलता उल्लेखनीय है, खासतौर पर हिमाचल में। न सिर्फ कांग्रेस ने दो विस सीटें बरकरार रखीं, बल्कि जुब्बाल कोटखाई विस सीट और मंडी की महत्वपूर्ण लोकसभा सीट भी जीतीं।
इन सीटों पर कांग्रेस का वोट शेयर बढ़ा, जबकि भाजपा का घटा। कांग्रेस ने राजस्थान में भी अच्छा प्रदर्शन किया और कर्नाटक में हंगल की महत्वपूर्ण सीट जीती। लेकिन ये सफलताएं यह संकेत नहीं देतीं कि अन्य राज्यों में भी कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनेगा। ऐसे कई राज्य हैं जहां कांग्रेस लंबे समय से चुनावी दौड़ से बाहर है। अभी यूपी, बिहार, आंध्र, तमिलनाडु जैसे राज्यों में कांग्रेस की वापसी की संभावना नहीं दिखती।
हालांकि इन राज्यों में बहुत से उपचुनाव नहीं थे, लेकिन बंगाल और असम के नतीजे स्पष्ट संकेत देते हैं कि कांग्रेस को उन राज्यों में पुनरुत्थान की जरूरत है, जहां वह दशकों से कमजोर है। उसका प. बंगाल और असम उपचुनावों में बेहद खराब प्रदर्शन रहा है। उपचुनाव बताते हैं कि क्षेत्रीय पार्टियां अब भी राज्यों की राजनीति में अपना दबदबा रखती हैं। बंगाल में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) को बड़े-बड़े अंतरों से बड़ी सफलताएं मिलीं।
बिहार में भाजपा की सहयोगी जेडी(यू) नेे सीट बरकरार रखते हुए वोट शेयर भी बढ़ाया। शिव सेना ने दादर और नागर हवेली लोकसभा सीट जीती, वायएसआरसीपी ने आंध्र में बडवेल विस सीट अपने पास बनाए रखी, हरियाणा में आईएनएलडी ने एलानाबाद विस सीट बनाए रखी।
वहीं यूडीपी, एनपीपी, एमएनएफ और एनडीपी ने क्रमश: मेघालय, मणिपुर और नागालैंड में अच्छा प्रदर्शन किया। नेताओं को उपचुनाव नतीजों के अपने अर्थ निकालने का हक है, लेकिन सावधानी जरूरी है क्योंकि उपचुनावों के नतीजे व्यापक राजनीतिक मूड का संकेत नहीं देते हैं।
Rani Sahu

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