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- इस पर हैरानी नहीं कि...
राजीव सचान।
ऐसा लगता है कि फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' ने लोगों के मर्म को छू लिया है। बहुत सारे लोग ऐसे हैं, जो इस फिल्म के जरिये पहली बार यह जान पा रहे हैं कि कश्मीर पंडितों के साथ किस तरह रूह कंपा देने वाले अत्याचार हुए। लोग फिल्म को देखकर न केवल अवाक हैं, बल्कि इस पर यकीन नहीं कर पा रहे कि 32 साल पहले कश्मीरी पंडितों को इतनी भीषण त्रासदी से गुजरना पड़ा। यह तब है, जब इस फिल्म में कश्मीरी पंडितों के भयावह उत्पीडऩ की कुछ ही घटनाओं का चित्रण है। अन्य फिल्मों की तरह इस फिल्म में भी कश्मीरी पंडितों के साथ हुए अत्याचारों को एक कहानी के जरिये बयान किया गया है, लेकिन वे सत्य घटनाओं पर आधारित हैं और इसी कारण कथित सेक्युलर-लिबरल समूह बिलबिलाया हुआ है। उसने फिल्म के साथ-साथ उसके निर्देशक विवेक अग्निहोत्री पर हमला बोल दिया है। बीते दिनों संसद में एक सांसद ने उस पर पाबंदी लगाने की भी मांग कर दी। ऐसी ही चाहत कई अन्य लोग भी प्रकट कर रहे हैं। कौन हैं ये लोग? वही, जो कश्मीरी पंडितों के पलायन के लिए तत्कालीन राज्यपाल जगमोहन को जिम्मेदार बताते रहे हैं या फिर अपनी दुर्दशा लिए कश्मीरी पंडितों को ही दोष देते रहे हैं, यह कहकर कि चूंकि नौकरियों में उनका दबदबा था, इसलिए घाटी के लोगों में उनके खिलाफ गुस्सा उमड़ा। ये लोग यह नहीं बताते कि कैसे कश्मीरी पंडितों को सरेआम मारा गया, उनके शव नहीं उठाने दिए गए और उनकी महिलाओं से दुष्कर्म किए गए। वे यह भी नहीं बताते कि घाटी में ऐसे फरमान जारी होते थे कि कश्मीरी पंडित अपनी महिलाओं को छोड़कर घाटी छोड़ दें, नहीं तो मारे जाएंगे। कश्मीर फाइल्स यही सब बयान करती है और यही सेक्युलर-लिबरल बिरादरी को बर्दाश्त नहीं। इस बिरादरी में बालीवुड से लेकर मीडिया के लोग भी हैं।