सम्पादकीय

इस पर हैरानी नहीं कि 'द कश्मीर फाइल्स' में जो बयान किया गया है, वह सेक्युलर-लिबरल बिरादरी को बर्दाश्त नहीं

Rani Sahu
15 March 2022 3:06 PM GMT
इस पर हैरानी नहीं कि द कश्मीर फाइल्स में जो बयान किया गया है, वह सेक्युलर-लिबरल बिरादरी को बर्दाश्त नहीं
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ऐसा लगता है कि फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' ने लोगों के मर्म को छू लिया है

राजीव सचान।

ऐसा लगता है कि फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' ने लोगों के मर्म को छू लिया है। बहुत सारे लोग ऐसे हैं, जो इस फिल्म के जरिये पहली बार यह जान पा रहे हैं कि कश्मीर पंडितों के साथ किस तरह रूह कंपा देने वाले अत्याचार हुए। लोग फिल्म को देखकर न केवल अवाक हैं, बल्कि इस पर यकीन नहीं कर पा रहे कि 32 साल पहले कश्मीरी पंडितों को इतनी भीषण त्रासदी से गुजरना पड़ा। यह तब है, जब इस फिल्म में कश्मीरी पंडितों के भयावह उत्पीडऩ की कुछ ही घटनाओं का चित्रण है। अन्य फिल्मों की तरह इस फिल्म में भी कश्मीरी पंडितों के साथ हुए अत्याचारों को एक कहानी के जरिये बयान किया गया है, लेकिन वे सत्य घटनाओं पर आधारित हैं और इसी कारण कथित सेक्युलर-लिबरल समूह बिलबिलाया हुआ है। उसने फिल्म के साथ-साथ उसके निर्देशक विवेक अग्निहोत्री पर हमला बोल दिया है। बीते दिनों संसद में एक सांसद ने उस पर पाबंदी लगाने की भी मांग कर दी। ऐसी ही चाहत कई अन्य लोग भी प्रकट कर रहे हैं। कौन हैं ये लोग? वही, जो कश्मीरी पंडितों के पलायन के लिए तत्कालीन राज्यपाल जगमोहन को जिम्मेदार बताते रहे हैं या फिर अपनी दुर्दशा लिए कश्मीरी पंडितों को ही दोष देते रहे हैं, यह कहकर कि चूंकि नौकरियों में उनका दबदबा था, इसलिए घाटी के लोगों में उनके खिलाफ गुस्सा उमड़ा। ये लोग यह नहीं बताते कि कैसे कश्मीरी पंडितों को सरेआम मारा गया, उनके शव नहीं उठाने दिए गए और उनकी महिलाओं से दुष्कर्म किए गए। वे यह भी नहीं बताते कि घाटी में ऐसे फरमान जारी होते थे कि कश्मीरी पंडित अपनी महिलाओं को छोड़कर घाटी छोड़ दें, नहीं तो मारे जाएंगे। कश्मीर फाइल्स यही सब बयान करती है और यही सेक्युलर-लिबरल बिरादरी को बर्दाश्त नहीं। इस बिरादरी में बालीवुड से लेकर मीडिया के लोग भी हैं।

कुछ मीडिया वालों ने तो कश्मीर फाइल्स रिलीज होने के पहले ही उसे प्रोपेगंडा फिल्म करार दिया। एक सज्जन तो फिल्म की रिलीज रोकने के लिए बंबई हाई कोर्ट भी पहुंच गए। केरल कांग्रेस के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से भी इस फिल्म के खिलाफ कई ट्वीट दागे गए। इससे हैरानी नहीं, क्योंकि व कन्हैया कुमार अब कांग्रेस में हैं, जो जेएनयू में 'लेके रहेंगे आजादी' का नारा लगाते थे। यह वही नारा है, जो कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के मुंह पर आतंकियों की ओर से लगाया जाता था। इसी जेएनयू की एक प्रोफेसर का कहना था कि कश्मीर तो कभी भारत का हिस्सा रहा ही नहीं। यह राय नक्सलियों को बंदूकधारी गांधी बताने वाली अरुधंति राय की भी है।
एक समय था जब कश्मीर में फिल्में बनती थीं। फिर आतंकवाद ने सब कुछ लील लिया और 1989-90 के दौरान सैकड़ों कश्मीर पंडित मारे गए और लाखों पलायन के लिए विवश हुए। इसके बाद कश्मीर पर फिल्में बनने लगीं, जैसे 'रोजा', 'फना', 'मिशन कश्मीर', 'हैदर' और 'शिकारा' आदि। इनमें से हैदर काफी चर्चा में रही, लेकिन कई लोगों को यह पसंद भी नहीं आई, क्योंकि विशाल भारद्वाज की इस फिल्म में भारतीय सेना को खलनायक की तरह पेश करने के साथ कश्मीर के सूर्य मंदिर को शैतान के घर जैसा दिखाया गया था। इस कारण कुछ लोगों और खासकर कश्मीरी पंडितों ने इसके बहिष्कार की अपील भी की। इस फिल्म में संकेतों के जरिये अफस्पा का भी विरोध किया गया, जबकि इसकी शूटिंग इसी कानून के अस्तित्व में होने के कारण हो पाई थी। 2013 में हैदर की शूटिंग के दौरान जब कश्मीर विश्वविद्यालय में तिंरगा फहराने का एक सीन फिल्माया जा रहा था तो वहां के छात्र भड़क गए थे।
आज जो लोग कश्मीर फाइल्स के खिलाफ खड़े हैं, वे 'हैदर' को लेकर न केवल यह कह रहे थे कि फिल्मकार को 'असुविधाजनक सच' दिखाने की छूट मिलनी चाहिए, बल्कि यह भी सुझाव दे रहे थे कि जिसे फिल्म पसंद न हो, वह न देखे। 'हैदर' को पांच पुरस्कार मिले। विशाल भारद्वाज ने जब उन्हें कश्मीरी पंडितों को समर्पित करने की घोषणा की तो वे सन्न रह गए, क्योंकि इस फिल्म में तो उनके बारे में कुछ था ही नहीं। कई कश्मीरी पंडितों ने कहा कि विशाल भारद्वाज को पुरस्कार मुबारक, लेकिन वे हमारे जख्मों पर नमक न छिड़कें। कश्मीर फाइल्स से खफा लोगों का तर्क यह है कि इससे लोगों की भावनाएं भड़क सकती हैं और नफरत फैल सकती है। क्या होलोकास्ट पर बनी 'शिंडलर्स लिस्ट' समेत अन्य तमाम फिल्मों से ऐसा हुआ? क्या कंबोडिया, रवांडा और अन्य अनेक देशों में हुए नरसंहारों बनी फिल्मों से ऐसा हुआ?
इसमें हर्ज नहीं कि जैसे कुछ लोगों को 'हैदर' या फिर 'शिकारा' नहीं रास आई थी, वैसे ही 'द कश्मीर फाइल्स' पसंद न आए, लेकिन इस फिल्म को उन लोगों की ओर से खारिज करना या फिर प्रोपेगंडा फिल्म करार देना हैरान करता है, जो यह कहते रहे हैं कि आपको कोई किताब या फिल्म पसंद न आए तो आप खुद अपनी किताब लिखें या फिल्म बनाएं। आने वाले दिनों मे कश्मीर फाइल्स पर बहस और तेज होना तय है, लेकिन केवल इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि एक फिल्म ने कश्मीरी पंडितों की व्यथा सामने ला दी। आवश्यक यह है कि भारत सरकार की ओर से ऐसे उपाय किए जाएं, जिससे कश्मीरी पंडितों की घाटी में वापसी हो सके। इसके लिए हरसंभव उपाय किए जाने चाहिए। इसी के साथ घाटी में कश्मीरी पंडितों की संस्कृति और विरासत संरक्षित करने के कदम भी उठाए जाने चाहिए। यदि कश्मीरी पंडितों की वापसी सुनिश्चित करने के लिए जम्मू-कश्मीर के पूर्ण राज्य के दर्जे की बहाली में देर होती है, तो होती रहे।
Rani Sahu

Rani Sahu

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