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सम्पादकीय
कांग्रेस के लिए अब वापसी करना सरल नहीं; 2019 के आम चुनावों के बाद से नहीं जीता एक भी विधानसभा चुनाव
Gulabi Jagat
13 April 2022 8:57 AM GMT
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कांग्रेस के लिए अब वापसी करना सरल नहीं
संजय कुमार का कॉलम:
हाल ही में कांग्रेस संसदीय दल की बैठक में सोनिया गांधी ने पार्टी में एकता कायम रखने की अपील की। मैं निश्चित नहीं हूं कि इस अपील से कांग्रेस को वापसी करने में मदद मिलेगी या नहीं। लेकिन मैं इतना जरूर विश्वास से कह सकता हूं कि इस अपील में बहुत देर हो चुकी है। 2019 के लोकसभा चुनावों में करारी हार के बाद से ही पार्टी की हालत खस्ता है।
तब से वह एक भी विधानसभा चुनाव नहीं जीत पाई है, जिससे पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं का मनोबल रसातल में जा चुका है। कांग्रेस में असंतुष्ट वरिष्ठ नेताओं के एक समूह को जी-23 कहा जाता है और जिस निरंतरता से कांग्रेस से टूटकर दूसरी पार्टियों- विशेषकर भाजपा में- नेतागण जा रहे हैं, वह बताता है कि हालात गम्भीर हैं। कांग्रेस न केवल चुनाव हार रही है, बल्कि कुछ राज्यों में तो उसका वोट-शेयर घटकर इकाई के आंकड़ों में आ गया है।
आगामी विधानसभा चुनावों को देखकर भी उम्मीद नहीं जगती कि चुनावों में कांग्रेस की जीत का सूखा निकट-भविष्य में समाप्त होगा। बीते तीन वर्षों में कांग्रेस के प्रदर्शन पर एक नजर डालना समीचीन होगा। 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की हार के बाद से 17 राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए हैं। इनमें से एक में भी कांग्रेस अपने दम पर नहीं जीत पाई है।
उसके लिए यह सांत्वना की बात है कि वह तीन राज्यों महाराष्ट्र, तमिलनाडु और झारखण्ड में गठबंधन-सरकार का हिस्सा बनने में सफल रही है, लेकिन महाराष्ट्र को छोड़कर शेष दो राज्यों में वह गठबंधन की बहुत छोटी सहयोगी है। झारखण्ड में झामुमो और तमिलनाडु में द्रमुक के हाथों में ही नेतृत्व की बागडोर है। वास्तव में आंकड़े पूरी तरह से कांग्रेस की बदहाली की कहानी बयान नहीं करते।
कांग्रेस न केवल चुनाव हारी है, बल्कि बुरी तरह से हारी है और अनेक राज्यों में वह तीसरे या चौथे या उससे भी निचले क्रम की पार्टी बन गई है। बीते चार वर्षों में जिन 17 राज्यों में चुनाव हुए, उनमें से पांच में कांग्रेस का वोट-शेयर 5 प्रतिशत से भी कम था। पांच अन्य में उसे 5 से 16 प्रतिशत के बीच वोट मिले। केवल शेष सात राज्यों में ही उसका वोट-शेयर 25 से 30 प्रतिशत के करीब जा सका।
लेकिन इनमें से कहीं उसे जीत नसीब नहीं हुई। इन 17 में से 12 राज्यों में कांग्रेस का वोट-शेयर घटा है। केवल हरियाणा, झारखण्ड, उत्तराखण्ड, बिहार और केरल ही अपवाद रहे। आने वाला समय तो और मुश्किल साबित होने जा रहा है। 2022 के अंत में गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनाव होंगे। इन दोनों ही राज्यों में अतीत में कांग्रेस और भाजपा की आमने-सामने की मुठभेड़ होती रही है और वर्तमान में वहां भाजपा की सरकारें हैं।
गुजरात में तो भाजपा बीते 27 सालों से सत्ता में है और वहां कांग्रेस लगातार छह चुनाव हार चुकी है। अगर किसी राज्य में एक ही पार्टी का 27 सालों से राज हो तो वहां सत्तारूढ़ दल के विरुद्ध अच्छी-खासी एंटी-इन्कम्बेंसी बन जानी चाहिए, लेकिन कम से कम अभी तो ऐसा गुजरात में होता दिखलाई नहीं देता। कांग्रेस न केवल 1995 से गुजरात में हार रही है, बल्कि वह तब से अब तक हुए तमाम चुनावों में भाजपा से 9 से 10 प्रतिशत तक कम वोट भी पाती आ रही है।
कांग्रेस को सबसे ज्यादा चिंता तो इस बात की होगी कि इन दोनों ही राज्यों में आम आदमी पार्टी मैदान में है, जिसने हाल ही में पंजाब में एकतरफा जीत दर्ज की है। हिमाचल प्रदेश में जरूर कांग्रेस के लिए बेहतर उम्मीदें हैं, जहां उसने अनेक उपचुनावों में जीत दर्ज की है, लेकिन हमें नहीं भूलना चाहिए कि मतदाताओं का मूड उपचुनावों में अलग होता है और मुख्य चुनावों में अलग।
उपचुनावों में मतदाता सरकार चुनने के लिए वोट नहीं देते, वे वहां केवल अपना प्रतिनिधि चुन रहे होते हैं। वास्तव में कांग्रेस पार्टी की बीमारी उससे कहीं ज्यादा गम्भीर है, जितनी वह बाहर से दिखलाई देती है। उसे दुरुस्त करना किसी एक के बूते की बात नहीं है, उसके लिए अनेक स्तरों पर प्रयास जरूरी होंगे।
कांग्रेस न केवल चुनाव हार रही है, बल्कि कुछ राज्यों में तो उसका वोट-शेयर घटकर इकाई के आंकड़ों में आ गया है। आगामी विधानसभा चुनावों को देखकर भी उम्मीद नहीं जगती कि चुनावों में कांग्रेस की जीत का सूखा निकट-भविष्य में समाप्त होगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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Gulabi Jagat
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