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हाल ही में फूड एंड सेफ्टी स्टैंडर्ड अथारिटी ऑफ इंडिया (एफएसएसएआई) ने खाने-पीने की वस्तुओं की पैकिंग के लेबल (एफओपीएल) के लिए खाद्य पदार्थ की गुणवत्ता के स्तर के बारे में लिखने की पद्धति पर चर्चा प्रारंभ की है
हाल ही में फूड एंड सेफ्टी स्टैंडर्ड अथारिटी ऑफ इंडिया (एफएसएसएआई) ने खाने-पीने की वस्तुओं की पैकिंग के लेबल (एफओपीएल) के लिए खाद्य पदार्थ की गुणवत्ता के स्तर के बारे में लिखने की पद्धति पर चर्चा प्रारंभ की है। अब इस विषय पर एक बहस छिड़ गई है कि खाने के पैकेज पर भोजन की गुणवत्ता के बारे में 'स्वास्थ्य स्टार रेटिंग' की जाए अथवा हानिकारक खाद्य के बारे में चेतावनी लिखी जाए। इस संबंध में एफएसएसएआई ने अति प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों यानी अल्ट्रा प्रोसेसड फूड इंडस्ट्री के दबाव में यह निर्णय लिया है कि हर खाद्य पर एक से शुरू कर पांच सितारे तक रेटिंग की जाए। यह बात स्पष्ट हो गई है कि एफएसएसएआई ने यह निर्णय लेते हुए बड़े खाद्य प्रसंस्करण के उद्योगों की राय को ज्यादा महत्त्व दिया है और उपभोक्ता हितों की अनदेखी की है।
हेल्थ स्टार रेटिंग की बजाय चेतावनी क्यों है जरूरी : हमारे देश में परंपरागत रूप से स्वास्थ्यप्रद खाना बनाने और खाने की परंपरा है। हमारे भोजन की थाली में प्रोटीन, विटामिन, कार्बोहाइड्रेड और अन्य पोषक तत्त्व अत्यंत संतुलित रूप में पाए जाते हैं, इसलिए हमारा खानपान अत्यंत संतुलित रहा है। लेकिन पिछले कुछ समय से प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का चलन बढ़ा है और खास तौर पर अतिप्रसंस्कृत यानी अल्ट्रा प्रोसेस्ड खाद्य बड़े प्रमाण में बाजार में आ रहे हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह अल्ट्रा प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थ कैंसर समेत अन्य कई बीमारियों का कारण बन रहे हैं। यही नहीं ग्राहकों को लुभाने और बच्चों को अपने उत्पादों की आदत या यूं कहें कि एडिक्शन करने के लिए कंपनियां चीनी, नमक (सोडियम) और वसा (फैट्स) का अत्यधिक मात्रा में उपयोग करते हैं। हमारे देश में लगातार बढ़ता मधुमेह का रोग, ब्लडप्रेशर, किडनी और लीवर की बीमारियां आदि खाने में चीनी, सोडियम और वसा के आधिक्य के कारण हो रही हैं। हमारे देश में पोषण के बारे में लोगों में जागरूकता कम होने के कारण और इस मामले में खाद्य पैकेटों पर कोई चेतावनी नहीं होने के कारण लोग अनजाने में इन हानिकारक खाद्य पदार्थों का सेवन कर रहे हैं, जिसके कारण ये बीमारियां बढ़ती जा रही हैं, जिसे कई बार लाइफ स्टाइल बीमारियां कहकर छोड़ दिया जाता है। यदि ऐसे हानिकारक खाद्य पदार्थों पर, यह कहकर कि चेतावनी दर्ज की जाए कि इसमें एक सीमा से ज्यादा चीनी है, नमक है अथवा वसा है, तो उपभोक्ताओं को इनके दुष्प्रभावों के बारे में अधिक जानकारी मिल पाएगी और वे अपने खानपान के बारे में जानकारीपूर्ण निर्णय ले पाएंगे। यह सही है कि इन खाद्य पदार्थों को बनाने वाली कंपनियों को इस प्रावधान से नुकसान हो सकता है, क्योंकि उनकी हानिकारक खाद्य पदार्थों की बिक्री घट जाएगी।
लेकिन इससे आमजन के स्वास्थ्य को बेहतर बनाया जा सकेगा, इसके बारे में कोई संदेह नहीं है। यह केवल सैद्धांतिक निष्कर्ष नहीं है, बल्कि अन्य देशों में ऐसा अनुभव भी किया गया है। इस विषय के महत्त्व को समझते हुए चिली, ब्राजील, इजराइल सहित कई मुल्कों ने खाद्य पैकेटों पर इस प्रकार की चेतावनी अंकित करने का निर्णय किया। चिली ने तो इस संबंध में कानून बनाकर इन हानिकारक खाद्यों की अधिकतम सीमा निश्चित की और इसके बारे में चेतावनी देने के संबंध में कानून भी बनाया। चिली द्वारा कानून बनाकर इस प्रकार की चेतावनी अंकित करने के निर्णय के बाद वहां इस प्रकार के हानिकारक खाद्यों की बिक्री में भारी कमी आई। हम समझ सकते हैं कि उसके कारण जनस्वास्थ्य की सुरक्षा में कितना फायदा इन देशों को हुआ होगा। आज जब हम अपने देश में इस बारे में निर्णय कर रहे हैं कि स्वास्थ्यवर्द्धक खाद्य पदार्थों के चयन में उपभोक्ताओं को शिक्षित किया जाए तो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक खाद्यों के बारे में उपभोक्ताओं को चेतावनी देने की बजाय अस्वास्थ्यकारी खाद्यों को स्टार रेटिंग देकर उनको वैधता प्रदान करे, यह सही नहीं होगा।
कैसे हुआ यह निर्णय : इस बाबत 15 फरवरी 2022 को एफएसएसएआई द्वारा हितधारकों की एक बैठक आयोजित हुई, जिसके प्रतिभागियों में उद्योगों और उनके संगठनों के 17 सदस्य थे, 1 विश्व स्वास्थ्य संगठन से, 2 सदस्य आईआईएम अहमदाबाद से थे, 3 सदस्य उपभोक्ता संगठनों से, 1 सदस्य विज्ञान संबंधित संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायरनमेंट (सीएसई) से था। एफएसएसएआई अफसरों में से 9 और 10 लोग विशेषज्ञ श्रेणी के थे। इस बैठक में अंतरराष्ट्रीय अनुभवों पर चर्चा करने की बजाय आईआईएम, अहमदाबाद और डेकस्टर कंस्लटेंसी प्राइवेट लिमिटेड द्वारा प्रायोजित एक अध्ययन का हवाला दिया गया और यह बताया गया कि इस अध्ययन में लोगों ने यह राय दी है कि फूड पैकेट पर स्वास्थ्य स्टार रेटिंग की व्यवस्था को अपनाया जाए। गौरतलब है कि उपभोक्ता संगठनों के दो प्रतिनिधियों ने और देश की सबसे बड़ी विज्ञान एवं पर्यावरण संस्था सेंटर फोर साइन्स एंड इन्वायरोन्मेंट के प्रतिनिधि ने इस निर्णय के खिलाफ अपना मत दिया। लेकिन उनके मत को दरकिनार कर यह कहा गया कि 20 हजार लोगों के सर्वे का महत्व ज्यादा है, इसलिए हितधारकों को हेल्थ स्टार रेटिंग पर ही अपना मत देना होगा।
आईआईएम अहमदाबाद के सर्वेक्षण के अनुसार भी अवांछित पोषक तत्वों की अधिकता की उपस्थिति के चलते, खरीद के इरादे को कम करने के संदर्भ में चेतावनी का विकल्प बेहतर आंका गया है। लेकिन उसके बावजूद रिपोर्ट में पसंदीदा विकल्प के रूप में एचएसआर की सिफारिश, जो उपभोक्ता को स्वास्थ्य जोखिम को समझने तक नहीं देती है, इस रिपोर्ट के लेखकों की निष्पक्षता पर संदेह का कारण बन रही है। यही नहीं हितधारकों की बैठक, जिसमें हेल्थ स्टार रेटिंग के बारे में निर्णय हुआ, उसमें न केवल बड़ी संख्या में कम्पनियों के प्रतिनिधि मौजूद रहे बल्कि विशेषज्ञों में भी कुछ ऐसे लोग थे जो कम्पनियों से संबद्ध हैं। गौरतलब है कि आस्ट्रेलिया विश्व का मात्र एक देश है, जिसमें हेल्थ स्टार रेटिंग की व्यवस्था है, जबकि अधिकांश देशों में जहां एफओपीएल की व्यवस्था है, उसमें हेल्थ स्टार रेटिंग का नहीं बल्कि चेतावनी का प्रावधान है।
कैसे होती है स्टार रेटिंग : किसी भी खाद्य पदार्थ की स्टार रेटिंग निश्चित करने के लिए एक लॉगरिथम या फार्मूले का प्रयोग किया जाता है। मजेदार बात यह है कि इस फार्मूले को ग्रेग गैम्ब्रिल नाम के जिस व्यक्ति ने बनाया था, वो भी फूड इंडस्ट्री का ही हिस्सा था। इसलिए यह हितों के टकराव का मामला है। आस्ट्रेलिया के खाद्य वैज्ञानिकों में भी यह चिंता व्याप्त है कि कम्पनियों के दबाव में हेल्थ स्टार रेटिंग की व्यवस्था के चलते उपभोक्ताओं का स्वास्थ्य खतरे में पड़ रहा है। इस फार्मूले के अनुसार किसी भी हानिकारक खाद्य पदार्थ में यदि कोई पोषक तत्व जैसे फल के जूस आदि मिला दिया जाए तो उसकी स्टार रेटिंग पांच सितारे तक पहुंच सकती है। उदाहरण के लिए यदि अधिक चीनी वाले किसी पेय पदार्थ में संतरे का रस मिला दिया जाए, तो उसे कहीं अधिक स्टार मिल जाएंगे, और उपभोक्ता अनजाने में ही हानिकारक खाद्यों का सेवन करेगा, क्योंकि उसे यह जानने का अवसर नहीं मिलेगा कि वह एक हारिकारक खाद्य पदार्थ का उपभोग कर रहा है।
लेकिन यदि इसके बजाय अधिक चीनी, नमक एवं वसा के बारे में चेतावनी अंकित हो तो उपभोक्ता को एक जानकारी भरा निर्णय लेने में सुविधा तो होगी ही, उसका स्वास्थ्य भी बेहतर किया जा सकेगा। आज जब देश की खाद्य नियामक संस्था इस बाबत निर्णय लेने जा रही है तो देश के लोगों की स्वास्थ्य रक्षा पहला उद्देश्य होना चाहिए, न कि कंपनियों के लाभ का। इस निर्णय प्रक्रिया में इतनी बड़ी संख्या में खाद्य कंपनियों की उपस्थिति और एफएसएसएआई के साथ उनकी पुरानी चल रही साझेदारी, एफएसएसएआई के निर्णय की निष्पक्षता पर एक प्रश्नचिन्ह लगाती है। स्वास्थ्य मंत्रालय का यह दायित्व है कि इन विषयों पर कड़ी नजर रखते हुए कंपनियों के दबाव में देश के लोगों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हेल्थ स्टार रेटिंग की बजाय वो स्वास्थ्य के हानिकारक खाद्य पदार्थों के संबंध में स्पष्ट चेतावनी देने का प्रावधान करे।
डा. अश्विनी महाजन, कालेज एसोशिएट प्रोफेसर
Rani Sahu
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