सम्पादकीय

देखना होगा कि सहयोगी पार्टियों के नेताओं के नखरे उठाने में शहबाज शरीफ कैसे सफल होंगे

Gulabi Jagat
13 April 2022 8:55 AM GMT
देखना होगा कि सहयोगी पार्टियों के नेताओं के नखरे उठाने में शहबाज शरीफ कैसे सफल होंगे
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पाकिस्तान में शहबाज शरीफ
डॉ. वेदप्रताप वैदिक का कॉलम:
पाकिस्तान में शहबाज शरीफ की जो नई सरकार बनी है, वह कितने दिन चलेगी, कैसे चलेगी और भारत, अमेरिका, चीन, रूस आदि से उसके संबंध कैसे रहेंगे- ये सवाल जिज्ञासा जगाए हुए हैं। इमरान खान की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पाकिस्तानी संसद में सिर्फ दो वोटों के बहुमत से पारित हुआ है। उसे 174 वोट मिले, जबकि संसद में 348 सदस्य हैं।
इमरान की पार्टी पाकिस्तान तहरीके-इंसाफ के सारे सदस्यों ने संसद से इस्तीफा दे दिया है। प्रधानमंत्री बनते ही शहबाज शरीफ ने जो भाषण दिया, उसमें बहुत उग्रवादी बातें नहीं कही गई हैं। उन्होंने भारत के साथ भी अच्छे संबंध बनाने की ख्वाहिश जताई है लेकिन कश्मीर के सवाल को हर मंच पर उठाने का भी ऐलान कर दिया है। शहबाज न तो नवाज शरीफ और बेनजीर भुट्टो की तरह आत्ममुग्ध नेता हैं और न ही उनमें ऐसी आक्रामकता है, जो पाकिस्तानी फौज को चिढ़ा सकती हो।
वे लंबे समय तक पाकिस्तान के सबसे बड़े प्रांत पंजाब के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। लेकिन असली सवाल यह है कि यदि उनकी सरकार अगले सवा साल में अपना कार्यकाल पूरा कर लेगी और उसके बाद चुनाव होंगे तो क्या इस अल्पावधि में वे ऐसी सरकार चला लेंगे, जो उन्हें सितंबर 2023 में स्पष्ट बहुमत दिला सके? इस समय उनकी पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) के पास 348 सदस्यों में से सिर्फ 84 सांसद हैं।
उन्हें अपनी सरकार चलाने के लिए पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के अलावा अन्य छोटी-मोटी पार्टियों का भी सहयोग आवश्यक है। इन सभी पार्टियों के नेताओं के नखरे उठाने और उनके स्वार्थों के समीकरण बैठाने में शहबाज कैसे सफल होंगे? ये पार्टियां पिछले कई दशकों से एक-दूसरे के विरुद्ध इतना जहर उगलती रही हैं कि उसे दिखा-दिखाकर इमरान खान इस सत्तारूढ़ गठबंधन की हवा निकालने की कोशिश करेंगे।
मियां शहबाज यों तो मर्यादित व्यक्तित्व के धनी हैं लेकिन मियां नवाज की बेटी मरियम, जो कि अपने दम पर बड़ी नेता हैं, के साथ उनका तालमेल कैसा रहेगा? बिलावल भुट्टो की पीपीपी और शहबाज की मुस्लिम लीग इस गठबंधन की दो सबसे बड़ी पार्टियां हैं। अगले साल चुनाव में ये दोनों पार्टियां चाहेंगी कि उन्हें स्पष्ट बहुमत मिले। ऐसे में क्या यह सरकार चुनाव तक चल पाएगी?
यदि चल भी गई तो क्या ये पार्टियां मिलकर 2023 का चुनाव लड़ पाएंगी? पंजाब में ज्यादा सीटें लेने के लिए पीपीपी और सिंध में ज्यादा सीटें लेने के लिए लीग आपस में तनावग्रस्त नहीं हो जाएंगी? मौलाना फजलुर्रहमान तथा अन्य नेताओं की पार्टियाें और दलबदलुओं का भी शहबाज को सामना करना पड़ेगा। शहबाज सरकार पाकिस्तान की महंगाई, बेरोजगारी, विदेशी कर्ज जैसी समस्याओं से कैसे पार पाएगी?
यह ठीक है कि उसे नवाज शरीफ के अनुभवों का लाभ मिलेगा। वह इमरान की गलतियों का ढिंढोरा पीटती रहेगी। लेकिन चुनाव में इससे फर्क नहीं पड़ेगा। उल्टे आशंका है कि इमरान और अन्य विरोधी इतना बड़ा जनांदोलन खड़ा करने की कोशिश करेंगे कि शहबाज की सरकार को अपनी शराफत छोड़कर जनता पर ज्यादती करनी पड़े। भाषण देने में इस समय इमरान का कोई मुकाबला नहीं है।
उनके और महमूद कुरैशी के इस आरोप में ज्यादा दम नहीं है कि उनकी सरकार अमेरिका के इशारे पर गिराई गई है लेकिन हो सकता है अवाम भी यह मानने लगे कि यह 'देशद्रोहियों' की सरकार है। अगले चुनाव में इमरान का दो-तिहाई सीटें पाने का दावा सच भी हो सकता है। अब तक ज्यादातर पाकिस्तानी सरकारें फौज के दम पर ही टिकी रही हैं।
इमरान ने फौज से टक्कर ली तो नतीजा भुगता। लेकिन शरीफ परिवार और फौज का तो 36 का आंकड़ा रहा है। फौज ने ही शरीफ परिवार को अपदस्थ किया, जेल भेजा, देश-बाहर किया। फौज के चलते ही जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी पर लटकाया गया था और बेनजीर का बलिदान हुआ। पता नहीं, इस नई सरकार का फौज के साथ समीकरण कैसा रहेगा?
मियां नवाज और शहबाज, दोनों ही भारत से अच्छे रिश्ते बनाने के पक्षधर हैं। कश्मीर पर अब दोनों देशों की सरकारें बात शुरू कर सकती हैं। यदि भारत और पाकिस्तान के संबंध सहज हो जाएं तो दोनों देशों के फौजी खर्च में भारी कटौती हो सकती है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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