सम्पादकीय

दोस्ती के द्वीप

Gulabi
7 April 2021 4:12 PM GMT
दोस्ती के द्वीप
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कम ही मौके ऐसे आते हैं, जब पाकिस्तान से दोस्ती का कोई मुकम्मल पैगाम आता है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। मनीष मिश्रा। कम ही मौके ऐसे आते हैं, जब पाकिस्तान से दोस्ती का कोई मुकम्मल पैगाम आता है। पाकिस्तान में एक कानून लागू हुआ है, जिसके तहत अभिनेता दिलीप कुमार और राज कपूर के पेशावर में मौजूद पुश्तैनी घर संग्रहालय में तब्दील किए जाएंगे। यह फैसला पाकिस्तान की संघीय सरकार का भले न हो, लेकिन खैबर पख्तूनख्वा प्रांत की सरकार के इस फैसले से पेशावर में दोस्ती के दो जरूरी द्वीप तो बन जाएंगे। दशकों से चर्चा चल रही थी, पर अब जाकर इस प्रांतीय सरकार ने अभिनेताओं के पैतृक घर को खरीदने के लिए कानूनी प्रक्रिया शुरू की है।

इसमें कोई शक नहीं कि यह काम पाकिस्तान की संघीय सरकार को अपने स्तर पर पहले ही कर लेना चाहिए था, पर देर से ही सही इस ऐतिहासिक काम को अंजाम देना न केवल पाकिस्तान, बल्कि पूरी दुनिया में फैले राज कपूर व दिलीप कुमार के प्रशंसकों के लिए उपहार सरीखा होगा। ये दोनों कलाकार ऐसे थे, जिनका दिल अपनी जन्मभूमि पेशावर के लिए भी धड़कता था। ऋषि कपूर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, राज कपूर जब अंतिम सांसें ले रहे थे, तब दिलीप कुमार उनसे मिलने आए। भावुकता से भरे उन पलों में दिलीप कुमार ने राज कपूर की हथेलियों को थामकर कहा था, 'उठ जा राज, मैं अभी पेशावर से आया हूं, मैंने सुस्वाद चपली कबाब का आनंद लिया है, जो हम दोनों खाया करते थे, जब हम बच्चे थे। अब उठ जा, हम दोनों साथ जाएंगे और चपली कबाब खाएंगे।' राज कपूर नहीं उठ पाए और वयोवृद्ध दिलीप कुमार के ख्यालों में अभी भी पेशावर का वह मकान जरूर उमड़ता होगा।

बेशक, बस पांच मिनट की दूरी पर खड़े वे दोनों मकान अपने आप में मुकाम हैं, जिन्हें सहेजकर रखना पाकिस्तान के लिए गर्व की बात होनी चाहिए। विरासत केवल विरासत है, हिंदू या मुस्लिम नहीं। पाकिस्तान अपनी विरासत सहेजकर दुनिया को बता सकता है कि उसके यहां हिंदुओं और मुस्लिमों में कैसा भाईचारा था। उस भाईचारे के बीच से ही भारतीय सिनेमा के दो कद्दावर सितारे उभरे और अपनी चमक से सबको चकाचौंध कर दिया। ये दो ऐसे सितारे हैं, जो दुनिया के एक सबसे विशाल फिल्म उद्योग की बुनियाद हैं। इनकी जन्मस्थलियों को सहेजकर पाकिस्तान अपने आकर्षण में चार चांद ही लगाएगा।

धन्य है खैबर पख्तूनख्वा की सरकार, जिसने अपने प्रांत के भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 को लागू किया है, जो उसे इन दोनों हवेलियों पर कब्जे का हक देता है। आगे की प्रक्रिया संकीर्णताओं में न उलझे, अदालतों में जाकर न अटके, यह प्रांत की सरकार को सुनिश्चित करना होगा।

पाकिस्तान की जमीन पग-पग पर प्राचीन इतिहास संजोए हुए है, वहां भगत सिंह स्मारक और चौक के लिए लगातार संघर्ष जारी है। महाराजा रंजीत सिंह और न जाने कितनी विरासतों को संवारने के लिए संघर्ष चल रहे हैं। अगर वहां राज कपूर और दिलीप कुमार की हवेलियों को संग्रहालय बनाने में कामयाबी मिलती है, तो इससे उन लोगों का मनोबल बढ़ेगा, जो भारत-पाकिस्तान की साझा विरासत को बचाने के लिए दिन-रात एक किए हुए हैं। बॉलीवुड को भी यह सोचना चाहिए कि पेशावर की विरासतों को सहेजने के लिए वह कैसे मदद कर सकता है। खून-खराबे के शौकीन चाहे जो साजिशें रचें, सामाजिक स्तर पर दोस्ती व विरासत संजोने की ऐसी कोशिशें जारी रहनी चाहिए।


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