सम्पादकीय

क्या बिहार की राजनीति लालू यादव से मुक्त होने जा रही है?

Shiddhant Shriwas
21 Oct 2021 5:38 AM GMT
क्या बिहार की राजनीति लालू यादव से मुक्त होने जा रही है?
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तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) के फैसले लेने का अपना अंदाज़ और तेज प्रताप यादव की जिद इस बात के संकेत दे रही है कि लालू यादव (Lalu Yadav) की पकड़ कमजोर हुई है.

अंकुर झा

बिहार की राजनीति (Bihar Politics) से लालू यादव (Lalu Yadav) का मुक्त होना, ये सवाल बहुत अजीब है. लेकिन अहम है. वो भी तब, जब लालू यादव जेल से आज़ाद होकर दिल्ली में बैठे हैं. उन्होंने बीमार होने के बावजूद भी पार्टी के स्थापना दिवस पर लंबा-चौड़ा भाषण दिया था. उनके पटना लौटने की चर्चा जोरों पर है. जबकि लालू यादव की RJD सबसे बड़ी पार्टी है. तेजस्वी यादव आक्रामक अंदाज़ में राजनीति को आगे बढ़ा रहे हैं. उपचुनाव में दोनों सीटों पर RJD अपने दम पर चुनाव लड़ रही है. तो फिर आगे का सवाल वही है कि बिहार की राजनीति लालू मुक्त कैसे हो रही है?

तो इसका जवाब जानने के लिए पिछले कुछ दिनों की सियासत को समझना होगा. खासकर, RJD और तेजस्वी यादव के फैसले को समझिए. बिहार में इस वक्त दो सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं. कुशेश्वरस्‍थान और तारापुर. ख़ासकर कुशेश्वरस्थान सीट पर 2020 में गठबंधन के तहत कांग्रेस ने कैंडिडेट खड़ा किया था. लेकिन जब इस बार उपचुनाव की बारी आई तो कांग्रेस से बात किए बगैर तेजस्वी यादव ने दोनों सीटों पर अपने कैंडिडेट उतारने का फैसला कर लिया. कांग्रेस की नाराजगी को तेजस्वी यादव ने रत्तीभर भी तरजीह नहीं दी. अपने फैसले पर टस से मस नहीं हुए.
तेजस्वी लालू यादव की मर्जी के खिलाफ ले रहे हैं फैसले
रिपोर्ट बताती है कि कांग्रेस की दूरी को लेकर तेजस्वी के फैसले में लालू यादव की मर्जी नहीं थी. क्योंकि बिहार में कांग्रेस और आरजेडी में तनातनी के बीच राहुल गांधी और लालू यादव के बीच मुलाकात हुई. करीब 15 मिनट तक दोनों साथ थे. हर मुद्दे पर चर्चा हुई. इसके बावजूद बिहार में फैसला नहीं बदला. कांग्रेस ने भी दोनों सीटों पर कैंडिडेट्स उतार दिए. तेजस्वी यादव को कोई फर्क नहीं पड़ा. बड़े भाई तेजप्रताप यादव ने बगावत कर दी. तब भी तेजस्वी पर कोई फर्क नहीं पड़ा. दोनों सीटों को जीतने के लिए उन्होंने पूरी ताक़त झोंक दी है. गांव-गांव घूम रहे हैं. गली-गली घूम रहे हैं. लालू स्टाइल में चुनाव प्रचार कर रहे हैं. मछली पकड़ रहे हैं. खेत में घूम रहे हैं. अपने पिता की तेजस्वी 'आमलोगों' वाली सियासत कर, लोगों से जुड़ने की कोशिश कर रहे हैं. बड़ी बात ये है कि तेजस्वी की रैली में जबरदस्त भीड़ भी जुट रही है.
दोनों भाईयों की राह अलग-अलग
तेजस्वी और तेजप्रताप में भी तनातनी छिपी नहीं है. शुरुआत हुई थी छात्र नेता को लेकर. तेजप्रताप के करीबी को बतौर छात्रनेता आरजेडी ने नामंजूर कर दिया. और ये सब जानते हैं कि तेजस्वी की सहमति के बिना जगदानंद सिंह ऐसा फैसला नहीं कर सकते. तेजप्रताप यादव ने विद्रोह कर दिया. जगदानंद सिंह के खिलाफ क्या-क्या नहीं कहा. जगदानंद सिंह के बाद उस संजय यादव के खिलाफ तेजप्रताप ने मोर्चा खोल दिया, जो तेजस्वी के लेफ्टिनेंट हैं. लेकिन तेजस्वी ने एक बार भी तेजप्रताप को मनाने की कोशिश नहीं की. यहां तक कि अलग झंडा, अलग नाम, अलग पहचान के साथ जेपी जयंती पर जब तेजप्रताप यादव ने यात्रा निकाली तो भी तेजस्वी ने भाई से बात नहीं की.
बिहार की सबसे बड़ी सियासी फैमिली में झगड़े को सुलझाने के लिए मां राबड़ी देवी पटना पहुंचीं. जाहिर है कि वो लालू यादव के कहने पर ही आई होंगी. राबड़ी देवी ने समझौते की कोशिश की, लेकिन नाकाम रहीं. तेज प्रताप यादव ने कुशेश्वरस्थान सीट पर आरजेडी के बजाय कांग्रेस के कैंडिडेट का समर्थन करने का ऐलान कर दिया. और ये तब किया, जब दिल्ली से लौटकर तेजस्वी यादव, पटना पहुंचे थे.
आरजेडी अब पूरी तरह से तेजस्वी की मुट्ठी में
तेजस्वी यादव अकेले घूम रहे हैं. लड़ रहे हैं. और आरजेडी के सर्वमान्य नेता के तौर पर स्थापित हो रहे हैं. हालांकि इसकी शुरूआत 2020 के विधानसभा चुनाव में ही हो गई थी. पहली बार लालू यादव के बगैर बिहार में आरजेडी विधानसभा चुनाव लड़ रही थी. नई सोच, नया बिहार के साथ जो पोस्टर जारी हुआ, उसमें से लालू यादव की तस्वीर गायब थी. तेजस्वी यादव की रैली में जबरदस्त भीड़ जुट रही थी. सधे हुए भाषण दे रहे थे. उन्होंने जो मुद्दा उठाया, वो चुनाव के सेंटर में था. तेजस्वी यादव सत्ता के शीर्ष पर भले ही नहीं पहुंच पाए, लेकिन उन्होंने सबसे ज्यादा सीट जीतकर खुद को साबित कर दिया.
लालू यादव ने जो वोटबैंक तैयार किया था, उसने तेजस्वी यादव को अपना नेता मान लिया. लालू जी के बगैर तेजस्वी ने जो किया, वो उम्मीद के विपरित था. आरजेडी न सिर्फ सबसे बड़ी पार्टी बन गई, बल्कि नीतीश कुमार की गद्दी हिल गई. यहीं से तेजस्वी यादव में आत्मविश्वास बढ़ा. पिछले विधानसभा चुनाव तक यकीनन लालू यादव के आदेश का हद तक पालन हो रहा था, लेकिन अब तेजस्वी यादव खुद के फैसले ले रहे हैं. विधानसभा उपचुनाव में तो मां और बहन को स्टार प्रचारकों की लिस्ट से दूर कर दिया. जाहिर है कि आरजेडी अब पूरी तरह से तेजस्वी की मुट्ठी में है. और वो अपने हिसाब से उसको चला रहे हैं.
लालू यादव की पकड़ ढीली पड़ रही है
तेजस्वी यादव के फैसले लेने का यही अंदाज़ और तेज प्रताप यादव की जिद इस बात के संकेत दे रही है कि लालू यादव की पकड़ कमजोर हुई है. उनके दोनों बेटे अपने-अपने हिसाब से आगे बढ़ रहे हैं. बिहार में अपने बरसों पुराने सियासी दुश्मनों को साधकर बीजेपी को सत्ता से दूर कर देने वाले, लालू यादव का परिवार टूट रहा है. और यही उनकी राजनीति से विदाई की ओर इशारा भी कर रहा है.
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