सम्पादकीय

मूल्यों के अन्वेषी : किशन पटनायक

Gulabi Jagat
27 Sep 2022 1:03 PM GMT
मूल्यों के अन्वेषी : किशन पटनायक
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By डॉ कुमार वरुण 

सपरिदृश्य में मूल्यों के प्रति उदासीनता देखने को मिल रही है, चाहे वे मूल्य धर्म, अर्थ, राजनीति या समाज नीति के हों. ऐसे दौर में हम अचानक ऐसी शख्सियतों से टकरा जाते हैं, जो समाज के दरकते भरोसे को जीवित रखने में प्रकाशपुंज की भांति हमें राह दिखाती हैं. किशन पटनायक वैचारिक मूल्यों और संस्कारों को जीवित रखने वाले आदर्श पुरुष हैं. वे भारतीय राजनीति, संस्कृति और समाज के गहन व्याख्याकार हैं, जिनके चिंतन को केंद्र में रखकर समरस समाज की परिकल्पना साकार की जा सकती है.
उनके जीवन-आदर्श में समाजवादी वैचारिकी के प्रति गहन आस्था और गांधीवादी मूल्यों के प्रति संकल्प के साथ जीवन के प्रति सादगी में भी सहजता का अद्भुत संयोग देखने को मिलता है. वे डॉ राममनोहर लोहिया के दर्शन 'निराशा के कर्तव्य' को आत्मसात कर नये पथ के आग्रही बनते हैं. लोहिया से प्रेरणा लेकर नया राजनीतिक दर्शन गढ़ने के प्रति आश्वस्ति का भाव उनके चिंतन के केंद्र में है. वे भारतीय राजनीति में हो रहे बदलाव को संदर्भगत तरीके से समझने वाले राजनेता भी हैं. वे मानते हैं कि राजनीति में आदर्श और विचार का सुंदर संयोग होना चाहिए.
किशन पटनायक भारतीय राजनीति की वैचारिक धारा में डॉ लोहिया और जयप्रकाश नारायण के बाद सशक्त उपस्थिति हैं. उन्होंने उनके विचारों को ठीक ढंग से समझा तथा जीवनभर उसी पृष्ठभूमि में खुद को समर्थवान बनाया. उसी क्रम में डॉ लोहिया के साथ मिलकर 'मैनकाइंड' पत्रिका का संपादन भी किया. बाद में उन्होंने उड़िया भाषा में प्रकाशित पत्रिका 'विकल्प विचार' और हिंदी में 'सामयिक वार्ता' का संपादन किया. वे मानते थे कि राजनीति केवल अंकगणितीय आंकड़ों का खेल नहीं है, यह एक संश्लिष्ट प्रक्रिया का हिस्सा है.
समाज की बुनियादी समस्याओं का हल इससे ही ढूंढा जा सकता है. वे अपने आलेख 'जनतंत्र का भविष्य' में जनतंत्र की असफलताओं की ओर इशारा करते हैं और समाधान का विकल्प भी देते हैं. वे मानते हैं कि लोकतंत्र की सफलता के लिए प्रत्येक नागरिक की आर्थिक सुरक्षा की गारंटी होनी चाहिए और प्रत्येक नागरिक के लिए कम से कम माध्यमिक स्तर तक एकसमान मुफ्त शिक्षा मिलनी चाहिए.
किशन पटनायक भारत में एक प्रबुद्ध राजनैतिक चिंतक एवं सक्रिय आंदोलनकर्ता के रूप में ख्यात हैं. उनकी पुस्तकें 'विकल्पहीन नहीं है दुनिया', 'भारतीय राजनीति पर एक दृष्टि' और 'किसान आन्दोलन : दशा और दिशा' इसी भूमिका का लेखा-जोखा हैं. वे भारतीय संस्कृति की विरासत को अक्षुण्ण रखने के लिए किसानी-जीवन बोध के साथ आंदोलन की उर्वरता को लेकर सचेत दिखते हैं. उन्होंने राजनीति के लिए संघर्ष की भूमिका, रचनात्मक कार्य और चुनावी राजनीति को महत्वपूर्ण माना है, जिसमें चुनावी राजनीति सबसे अंतिम पायदान पर अवस्थित है.
उनका मानना था कि भारतीय राजकोष से अनावश्यक खर्चों को काट कर देशभक्त राजनीतिक कार्यकर्ताओं के लिए एक सामाजिक कोष का निर्माण किया जा सकता है. यदि ऐसा नहीं किया गया, तो भारत की राजनीति अपराधियों और भ्रष्टाचारियों के हाथों में चली जायेगी. उनकी यह उक्ति समकालीन राजनीतिक परिदृश्य में समीचीन प्रतीत हो रही है. प्रत्युत, किशन पटनायक भारतीय समाज और राजनीति के सच्चे अन्वेषक ठहरे.
उन्होंने अपनी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत ओड़िशा की संभलपुर लोकसभा सीट से की और सबसे युवा सांसद बने. समाजवादी राजनीति की वैचारिकी को समझने के लिए बिहार को उन्होंने अपनी कर्मभूमि बनाया. देश व समाज का कोई भी प्रश्न उनके जीवनानुभवों से अछूता नहीं रहा. उन्होंने सभी प्रश्नों- किसान-समस्या हो या बाल-मजदूरी, खदान श्रमिक या पर्यावरण की चिंता हो- का मौलिक तरीकों से हल ढूंढने का प्रयास किया.
अपनी पुस्तक 'किसान आन्दोलन : दशा और दिशाश' में किसानों की सामाजिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक आयामों का विश्लेषणात्मक मूल्यांकन किया, साथ ही उदारीकरण के बाद किसानी-जीवन बोध और संस्कृति में हो रहे बदलाव की तरफ भी इंगित किया है.
वे मानते हैं कि उदारीकरण के प्रभाव से ही भारतीय किसान कई तरह के दुष्चक्र में फंसता जा रहा है. वे किसानों को सक्रिय भागीदारी और सत्ता में हिस्सेदारी के लिए वैचारिक सूत्र देते हैं. पर्यावरण की चिंता भी उनके दर्शन के केंद्र में है. ओड़िशा में अवस्थित गंधमार्दन पर्वतमाला में अयस्कों के दोहन को लेकर संघर्ष समिति का गठन करना इस दिशा में एक सार्थक पहल है. जनजातीय समाज और उसके अधिकार के प्रति उन्होंने महत्वपूर्ण जिम्मेदारी का निर्वहन किया.
वे गांधी, लोहिया और जेपी के मूल्यों को आत्मसात करते हुए संघर्ष और सादगी की राजनीति के प्रवक्ता हैं. वे राजनीति में वैचारिक स्पष्टता, चारित्रिक शुद्धता और बुद्धि तथा मन के बीच मेल के लिए जाने जाते हैं. उनके चिंतन में भाषा एक सशक्त हथियार है. वे ग्रामीण समाज में गांव की बोली में, तो अकादमिक संस्थानों में अकादमिक विमर्श की भाषा का प्रयोग करते हैं. भाषा के प्रति उनकी संवेदनशीलता जनमानस से लगाव का परिचायक है. किशन जी जंगल में पानी का वह सोता हैं, जहां सभी पहुंचकर अपनी प्यास बुझा सकते हैं.
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