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दुनिया में वर्चस्व की लड़ाई आदिकाल से ही चल रही है। राजा महाराजाओं के समय में भी जिस प्रांत के राजा की सेना सशक्त तथा आर्थिक हालात मजबूत होते थे
दुनिया में वर्चस्व की लड़ाई आदिकाल से ही चल रही है। राजा महाराजाओं के समय में भी जिस प्रांत के राजा की सेना सशक्त तथा आर्थिक हालात मजबूत होते थे, वह ताकतवर होता था। वह राजा अपने साम्राज्य को आसपास के राज्यों तक फैलाने की कोशिश करता था और इस तरह से यह साम्राज्य दुनिया के एक हिस्से में ताकतवर बनकर उभरता था। इसके साथ-साथ वह दूसरे राज्यों से उभरने वाली ताकतों को किसी न किसी तरीके से दबाने की कोशिश करता था और उनको इतना ताकतवर नहीं बनने देता था कि आगे चलकर वे उसकी स्थिति को चुनौती दे सकें। उसी तरह आज सम्पूर्ण विश्व में पश्चिमी देशों का बोलबाला है और पश्चिमी देश कभी नहीं चाहते कि विश्व में कोई दूसरी शक्ति तैयार हो जो आने वाले समय में उनके विश्व ताकत के साम्राज्य को छीन ले। अगर कोई देश या ताकत भविष्य में अमेरिका एवं पश्चिमी देशों के एक छत्र राज को चुनौती देने की काबिलियत रखता है तो वह है एशिया महाद्वीप के चीन, रूस, जापान, कोरिया और भारत।
अगर यह सब एशियन महाद्वीप की ताकतें आपस में इक_े हो जाएं और एक दूसरे से आपस में उलझने की बजाय एक बड़े लक्ष्य की तरफ मिलकर काम करें तो वह दिन दूर नहीं जब विश्व में यूरोप और अमेरिका महाद्वीप से संबंधित पश्चिमी देशों के बजाय एशियन देशों का दबदबा कायम हो जाएगा। इस बात को अमेरिका भली-भांति समझता है और इन्हीं पांच देशों की सीमाओं के साथ लगने वाले छोटे देशों पर अपना प्रभाव बढ़ा रहा है तथा उन्हें आर्थिक तथा अन्य सहायता देकर अमेरिका के पक्ष में खड़ा कर रहा है। इन देशों को इस तरह से प्रोत्साहित या फिर तैयार कर रहा है कि वे उसके कहने पर एशिया की इन पांच बड़ी ताकतों के खिलाफ खड़े हो जाएं। करीब 5 दशक पहले जब एशिया से सोवियत संघ एक बड़ी ताकत बनकर उभरा था और अमेरिका वियतनाम के युद्ध की वजह से आपसी मुद्दों में उलझा पड़ा था, उस वक्त लोग सोवियत संघ को अगली विश्व ताकत मानने लग गए थे। उस वक्त अमेरिका ने अपनी कूटनीति के हिसाब से अफगानिस्तान को आर्थिक मदद करके एक विशेष समुदाय को सोवियत संघ के खिलाफ खड़ा कर दिया और करीब 15 से 20 साल के लगातार प्रयास के बाद सोवियत संघ के अलग-अलग टुकड़े कर दिए गए। पिछले 30 वर्षों में रूस ने अपने इस अपमान और हार का बदला लेने के लिए दोबारा से सशक्त होकर अमेरिका के साम्राज्य को चुनौती दी है। इस बार अमेरिका ने रूस के पड़ोसी देश यूक्रेन को अपने जाल में फंसा कर रूस के खिलाफ खड़ा कर दिया है।
ताइवान, जापान और चीन, भारत और पाकिस्तान, दक्षिण और उत्तर कोरिया इन सब देशों को अमेरिका आज आपस में लड़ाने की साजिश रच रहा है। अमेरिका चाहता है कि यह सब देश आपस में उलझे रहें और जो आज दिन तक इन देशों ने सैन्य और आर्थिक रूप से मजबूती हासिल की है उसको आपसी लड़ाई में बर्बाद करके कमज़ोर कर दे ताकि उसका साम्राज्य बिना किसी रोक-टोक के बना रहे। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वर्चस्व बनाने के लिए सैन्य तथा आर्थिक रूप से ही मजबूत होना एकमात्र तरीका नहीं है, बल्कि खेल में भी विश्व चैंपियन बनना इसका एक हिस्सा है। अभी इसी सप्ताह संपन्न हुई राष्ट्रमंडल खेलों में भारतीय खिलाडिय़ों ने भी अपना दमखम दिखाते हुए विदेशी धरती में 22 गोल्ड जीतकर अपने देश का खेल की दुनिया में दबदबा बढ़ाया है। इस तरह की उपलब्धियां भी विश्व ताकत बनने की एक अहम कड़ी होती हैं। आज जरूरत है कि भारत एशियन देशों के साथ सही समन्वय बिठाते हुए बिना किसी युद्ध और झगड़े में हिस्सा लिए, तरक्की के रास्ते पर बढ़ता रहे ताकि वह आने वाले समय में विश्व ताकत बनने की ताल ठोक सके।
कर्नल (रि.) मनीष
स्वतंत्र लेखक
By: divyahimachal
Rani Sahu
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