सम्पादकीय

सही दिशा में पहल

Subhi
24 Feb 2021 3:30 AM GMT
सही दिशा में पहल
x
जैसे जैसे पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाला उत्सर्जन लगातार बढ़ रहा है, जैव विविधता को होने वाली हानि तेजी से बढ़ रही है। इससे नई-नई समस्याएं खड़ी हो रही हैं।

जैसे जैसे पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाला उत्सर्जन लगातार बढ़ रहा है, जैव विविधता को होने वाली हानि तेजी से बढ़ रही है। इससे नई-नई समस्याएं खड़ी हो रही हैं। अब तक इन सभी समस्याओं का अलग-अलग हल ढूंढ़ने की कोशिश नाकाफी साबित हुई हैं। इसलिए संयुक्त राष्ट्र की तरफ से पेश एक नई योजना हालांकि सामयिक और जरूरी है, लेकिन उससे कोई फर्क पड़ेगा, इसको लेकर भरोसा नहीं बंधता। संयुक्त राष्ट्र ने पर्यावरण की तीन आपात स्थितियों से निपटने के लिए इस नई योजना को पेश किया है। संयुक्त राष्ट्र ने उचित ही कहा है कि जलवायु संकट, जैव विविधता में ह्रास और प्रदूषण- ये तीनों संकट एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और इनका अकेले-अकेले हल नहीं निकाला जा सकता। संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंटोनियो गुटेरेश ने संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की इस नई रिपोर्ट की प्रस्तावना में कहा है- प्रकृति के खिलाफ हमारे युद्ध ने धरती को छिन्न-भिन्न कर दिया है।

इस बात से आज इनकार करना किसी विवेकशील व्यक्ति के लिए मुश्किल है। इसलिए ताजा रिपोर्ट पर जरूर पूरी चर्चा होनी चाहिए। 'मेकिंग पीस विद नेचर' नाम की इस रिपोर्ट को वैश्विक आपात स्थितियों के तत्काल हल के लिए एक ब्लूप्रिंट कहा गया है। इसमें विश्व के विभिन्न पर्यावरणीय आकलनों के जरिए समस्याओं का हल निकालने की बात कही गई है। संयुक्त राष्ट्र साल 2050 तक कार्बन तटस्थता का लक्ष्य हासिल करना चाहता है। कहा गया है कि जलवायु संकट, जैव विविधता में ह्रास और प्रदूषण पर टुकड़ों में कार्रवाई करके हम अपने लक्ष्यों को हासिल नहीं कर सकते हैं। बिना किसी समन्वय के हो रहे प्रयासों की वजह से साल 2100 तक धरती का तापमान औद्योगिक क्रांति से पहले के मुकाबले कम से कम 3 डिग्री तक बढ़ जाएगा। अब जरूरत इस बात की है कि सारे प्रयासों में तालमेल बनाया जाए। यह पेरिस पर्यावरण समझौते के तहत तय किए गए लक्ष्य 1.5 डिग्री का दोगुना है। तय लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए साल 2030 तक वैश्विक उत्सर्जन को 45 फीसद तक कम करना होगा। द लांसेट में 2018 में छपे एक लेख के अनुसार अनुमानित 80 लाख में से 10 लाख से भी ज्यादा प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है। यही नहीं हर साल करीब 90 लाख लोगों की प्रदूषण से जुड़ी बीमारियों के कारण मृत्यु हो जाती है। इस ट्रेंड को उल्टा करने के लिए समन्वित दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है।




Next Story