- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- भारत की विकास यात्रा :...
x
एनीमिया और भूख जैसी समस्याओं पर अधिक ध्यान दें।
जो लोग भारत की विकास यात्रा पर नजर रखते हैं, उनके लिए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के आंकड़े जारी होना एक बड़ी घटना है। वर्ष 1992-93 से, जब इस तरह का पहला सर्वेक्षण किया गया था, एनएफएचएस लगातार सामाजिक-आर्थिक और स्वास्थ्य संकेतकों के साथ-साथ देश में उभरते मुद्दों पर महत्वपूर्ण आंकड़ा प्रदान कर रहा है।
यह आंकड़ा महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह उन महत्वपूर्ण चुनौतियों को चिह्नित करता है, जो जमीनी धरातल पर हुई प्रगति के साथ-साथ अब भी बनी हुई हैं। एनएफएचएस के ताजे आंकड़े मिले-जुले हैं। बाईस राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में किए गए एनएफएचएस-5 सर्वेक्षण के पहले चरण के निष्कर्ष दिसंबर, 2020 में जारी किए गए थे। अब पांचवें राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के दूसरे और अंतिम चरण के बहुप्रतीक्षित आंकड़े सामने आ गए हैं।
दूसरे चरण के सर्वेक्षण में मध्य प्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश जैसे भारत के कुछ सबसे बड़े राज्य शामिल हैं। एनएफएचएस-5 सर्वेक्षण का फील्डवर्क दो चरणों में आयोजित किया गया था-पहला चरण 17 जून, 2019 से 30 जनवरी, 2020 तक 22 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में, और दूसरा चरण दो जनवरी, 2020 से 30 अप्रैल, 2021 तक 14 राज्यों / केंद्रशासित प्रदेशों में आयोजित किया गया था।
सबसे पहले अच्छी खबर। भारत ने जनसांख्यिकीय मामले में एक प्रमुख उपलब्धि हासिल की है। रिकॉर्ड स्तर पर पहली बार, देश की प्रजनन दर (टीएफआर) राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्थापन दर 2.1 से नीचे आ गई है। राज्यों के बीच अंतर अब भी कायम है, लेकिन हम जनसंख्या स्थिरीकरण की ओर बढ़ रहे हैं। दूसरी अच्छी खबर यह है कि समग्रता में कई अन्य स्वास्थ्य संकेतकों और अन्य क्षेत्रों, जो स्वास्थ्य एवं कल्याण को प्रभावित करते हैं, में सुधार हुआ है।
उदाहरण के लिए, बिजली की सुविधा वाले घरों में रहने वालों की संख्या एनएफएचएस-4 (2015-2016) के 88 फीसदी के मुकाबले बढ़कर एनएफएचएस-5 (2019-2021) में 96.8 फीसदी हो गई है। आज बहुत ज्यादा महिलाओं के पास बैंक खाते हैं। इसी अवधि के दौरान अखिल भारतीय स्तर पर संस्थागत जन्म भी 79 फीसदी से बढ़कर 89 फीसदी हो गया है।
अखिल भारतीय स्तर पर, नाटे कद के बच्चों की संख्या 38 फीसदी से घटकर 36 फीसदी हो गई है; कमजोर शारीरिक अंगों वाले बच्चों की संख्या 21 फीसदी से घटकर 19 फीसदी रह गई है; और कम वजन वाले बच्चों की संख्या 36 फीसदी से घटकर 32 फीसदी रह गई है। दिलचस्प बात यह है कि दूसरे चरण (महामारी के दौरान) में इकट्ठा किए गए राज्यों के आंकड़े महामारी की शुरुआत से पहले एकत्र किए गए पहले चरण के आंकड़ों की तुलना में कुछ मोर्चों पर ज्यादा सकारात्मक दिखते हैं।
ऐसा क्यों है, इसके बारे में अब तक हम नहीं जानते। लेकिन खुशखबरी से हमें संतुष्ट नहीं होना चाहिए। प्रमुख मोर्चों पर स्थिति और भी खराब हुई है। बच्चों और महिलाओं में एनीमिया सबसे बड़ी चिंताओं में से एक है। यह एक पुरानी समस्या है और एनीमिया मुक्त भारत अभियान चलाए जाने के बावजूद यह एक गंभीर मुद्दा बना हुआ है।
पांच वर्ष से कम उम्र के एनीमिया पीड़ित बच्चों की संख्या वर्ष 2015-2016 के 58.6 फीसदी के मुकाबले वर्ष 2019-2021 में बढ़कर 67.1 फीसदी हो गई है। बच्चों के पोषण को लेकर चिंता का एक अन्य कारण यह है कि ताजा एनएफएचएस सर्वे में जिस गति से अविकसित और कम वजन वाले बच्चों की संख्या घटी है, वह वर्ष 2005-06 और वर्ष 2015-16 के सर्वेक्षणों की दर से कम है।
आधे से अधिक बच्चे और महिलाएं (गर्भवती महिलाओं सहित) एनएफएचएस -4 की तुलना में दूसरे चरण में राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों और अखिल भारतीय स्तर पर एनीमिक पाए गए, जबकि गर्भवती महिलाओं द्वारा 180 दिन या उससे अधिक समय तक आयरन फोलिक एसिड (आईएफए) गोलियों के सेवन में पर्याप्त बढ़ोतरी देखी गई।
हिंदी पट्टी में एनीमिया एक गंभीर समस्या है।
मसलन मध्य प्रदेश में छह से 59 महीने के एनीमिया पीड़ित बच्चों की संख्या 68.9 फीसदी (एनएफएचएस-4) से बढ़कर (एनएफएचएस-5 में) 72.7 फीसदी हो गई है। उत्तर प्रदेश में, हालांकि नाटे कद और कमजोर अंगों वाले बच्चों की संख्या में मामूली कमी आई है, लेकिन छह से 59 महीने के बीच के एनीमिया पीड़ित बच्चों की संख्या 63.2 फीसदी (एनएफएचएस-4) से बढ़कर 66.4 फीसदी (एनएफएचएस-5) हो गई है।
चूंकि हमारे पास अब तक सभी राज्यों का कच्चा डेटा नहीं है, इसलिए यह कहना मुश्किल है कि देश भर में बच्चों और वयस्कों में एनीमिया इतना अधिक क्यों है। एनीमिया, जो कम ऊर्जा और कई अन्य लक्षणों का कारण बनता है, कई वजहों से बना रह सकता है और केवल भोजन की मात्रा के कारण नहीं होता है। स्वच्छ पानी और स्वच्छता की उपलब्धता भी एनीमिया को प्रभावित करती है, लेकिन यह देखते हुए कि खुले में शौच कम हो रहा है और अधिक लोगों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने पर भी जोर दिया जा रहा है, हमें यह जानने की जरूरत है कि इसके दूसरे कारण क्या हैं और कहां हैं।
पोषण विशेषज्ञों का कहना है कि इसका एक कारण अधिकांश भारतीयों के लिए आहार विविधता और अपर्याप्त आयरन युक्त भोजन की कमी है। हमें अपने लोगों के दैनिक आहार के बारे में और अधिक सूक्ष्म-स्तरीय डेटा की आवश्यकता है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण वास्तव में सूक्ष्म पोषक तत्वों के रूप में वर्गीकृत विटामिन और खनिजों के सेवन में कमियों पर प्रकाश नहीं डालता है।
एनीमिया के साथ-साथ हम मोटापे में भी वृद्धि का सामना कर रहे हैं। वर्ष 2015-2016 में 20.6 फीसदी महिलाएं मोटापे से ग्रस्त थीं, जबकि अब 24 फीसदी महिलाएं मोटापे से ग्रस्त हैं और इसी अवधि के दौरान मोटापे से ग्रस्त पुरुषों की संख्या 18.9 फीसदी से बढ़कर 22.9 फीसदी हो गई है। इसका मतलब है कि बड़े पैमाने पर भारतीय अच्छा खाना नहीं खा रहे हैं या समझदारी से खाना नहीं खाते हैं।
हवाई अड्डे, बुलेट ट्रेन और राजमार्ग भारत की विकास गाथा का एक हिस्सा हैं। इसका दूसरा हिस्सा है-मानव विकास, जो उतना ही महत्वपूर्ण है। उपलब्धियों की सराहना करते हुए यह जरूरी है कि हम अधूरे कार्यों और भारत के लाखों बच्चों और वयस्कों के बीच एनीमिया और भूख जैसी समस्याओं पर अधिक ध्यान दें।
Next Story