सम्पादकीय

भारत का फायदा: ई-उत्पादों के आयात पर शुल्क का वक्त

Neha Dani
30 Dec 2021 1:54 AM GMT
भारत का फायदा: ई-उत्पादों के आयात पर शुल्क का वक्त
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इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसमिशन पर टैरिफ लगाना डिजिटल औद्योगिकीकरण के लिए पहली शर्त होगी।

हालांकि विश्व व्यापार संगठन का 12वां मंत्री स्तरीय सम्मेलन कोरोना के बढ़ते प्रकोप के चलते अभी स्थगित हो गया है, लेकिन यह स्पष्ट है कि भविष्य में आयोजित इस सम्मेलन में हमेशा की तरह बड़े औद्योगिक एवं विकसित देश ऐसे प्रस्तावों को आगे बढ़ाने का प्रयास करेंगे, जो उनकी कंपनियों के लिए तो हितकारी होंगे, लेकिन भारत एवं अन्य विकासशील देशों के गरीब लोगों के लिए अहितकारी होंगे।

आठ नवंबर को जारी दस्तावेज के अनुसार, प्रस्ताव यह है कि गैरकानूनी, गैरसूचित और गैरविनियमित मछली पकड़ने के लिए दी जाने वाली सब्सिडी समाप्त कर दी जाए। यानी सीधे-सीधे कोशिश यह है कि हमारे छोटे मछुआरे, जो अपने जीवनयापन के लिए छोटे स्तर पर मछली पकड़ने का काम करते हैं, उन्हें सरकार कोई सहायता न दे पाए। ऐसे कई उदाहरण हैं, जिनसे स्पष्ट है कि पूर्व में किए गए समझौते गैरबराबरी के समझौते थे, जिनमें विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों के विकास को बाधित करने के प्रावधान किए गए थे। जब विकसित देश व्यापार वार्ताओं को एक युद्ध के रूप में देखते हैं, तो भारत को भी अपने हितों के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए व्यापार वार्ताओं का सही उपयोग करना होगा।
इस संदर्भ में इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों पर टैरिफ स्थगन के अस्थायी प्रावधान को समाप्त करने हेतु प्रयास करने का समय आ गया है। गौरतलब है कि विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के प्रारंभ के समय इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों में व्यापार बहुत सीमित था। ऐसे में इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के व्यापार पर अस्थायी रूप से टैरिफ को स्थगित रखा गया और डब्ल्यूटीओ के दूसरे मंत्री स्तरीय सम्मेलन में यह निर्णय हुआ कि अगले मंत्री स्तरीय सम्मेलन तक ई-उत्पादों पर शुल्क को स्थगित रखा जाए।
विकसित देशों ने तरह-तरह की बहानेबाजी के जरिये ई-उत्पादों के आयात पर टैरिफ को रोके रखा। आज स्थिति यह है कि अकेले भारत द्वारा लगभग 30 अरब डॉलर से भी ज्यादा इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों का आयात हो रहा है। यानी यदि 10 प्रतिशत भी टैरिफ लगाया जाए, तो सरकार को तीन अरब डॉलर से ज्यादा का राजस्व प्राप्त होगा। भारत जैसे देश में हमारे स्टार्ट-अप और सॉफ्टवेयर कंपनियां विभिन्न ई-उत्पाद बनाने में सक्षम हैं, लेकिन जब बिना टैरिफ, बिना रोकटोक ऐसे उत्पाद आयात किए जाते हैं, तो देश में उनके उत्पादन के लिए कोई प्रोत्साहन ही नहीं रहता। सिर्फ अमेरिका ही नहीं, बल्कि चीन भी इसका काफी फायदा उठा रहा है।
आज उत्पादन के बदलते ढंग के चलते किसी वस्तु को विदेश से मंगाने के लिए उसे भौतिक आयात के बजाय थ्री डी प्रिंटिंग के जरिये भी बनाया जा सकता है। ऐसे में भौतिक वस्तुओं के आयात पर लगने वाले आयात शुल्क से भी हाथ धोना पड़ सकता है। यानी मामला केवल राजस्व हानि का ही नहीं है, बल्कि भविष्य में भौतिक वस्तुओं पर मिलने वाले आयात शुल्कों की संभावित हानि का भी है। भारत और दक्षिण अफ्रीका इस मामले में पहले से ही काफी सतर्क हैं और विश्व व्यापार संगठन परिषद को दिए गए प्रस्ताव में उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों पर टैरिफ स्थगन पर प्रश्नचिह्न लगाया है और कहा है कि टैरिफ स्थगन के प्रस्ताव पर पुनर्विचार करने की जरूरत है, क्योंकि 1998 के प्रस्ताव में स्थगन के दायरे के बारे में किसी मतैक्य के साथ निर्णय नहीं हुआ था, और तब यह भी स्पष्ट नहीं था कि डिजिटल क्रांति इस तेजी से फैलेगी।
आज चौथी औद्योगिक क्रांति का समय है, जो डिजिटल औद्योगिकीकरण के माध्यम से आएगी। हमें इस अवसर को खोना नहीं है। जब विकसित देश अपनी कंपनियों और अपनी
अर्थव्यवस्था के लिए किसी भी हद तक जाकर भारत जैसे देशों पर दबाव बनाते हैं, तो भारत को भी अन्य विकासशील देशों को साथ लेकर हमारे औद्योगिकीकरण को बाधित करने से विकसित देशों को रोकना होगा। इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसमिशन पर टैरिफ लगाना डिजिटल औद्योगिकीकरण के लिए पहली शर्त होगी।
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