सम्पादकीय

रूसी हमले के बीच यूक्रेन में बंकरों के भरोसे भारतीय छात्र, प्रतिबंध के भरोसे सुपर पावर

Rani Sahu
26 Feb 2022 10:58 AM GMT
रूसी हमले के बीच यूक्रेन में बंकरों के भरोसे भारतीय छात्र, प्रतिबंध के भरोसे सुपर पावर
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यूक्रेन में फंसे भारतीयों की ज़िंदगी कभी बेसमेंट तो कभी बंकर के बीच फंस कर रह गई है

रवीश कुमार,

यूक्रेन में फंसे भारतीयों की ज़िंदगी कभी बेसमेंट तो कभी बंकर के बीच फंस कर रह गई है. जब बम नहीं गिरता है तो इमारत के बेसमेंट में आ जाते हैं और जैसे ही धमाका होता है भागकर बंकर में चले जाते हैं. हज़ारों भारतीय छात्रों की इस दहशत से युद्ध को देखेंगे तो पता चलेगा कि हिन्दी और तमाम भाषाओं के न्यूज़ चैनल जिस तरह से यूक्रेन पर हमले के कवरेज को वीडियो गेम के मनोरंजन में बदल रहे हैं, उस युद्ध से उनके ही देश के हज़ारों नौजवानों की जान खतरे में पड़ गई है.इस हालत में भी कई एक्सपर्ट टीवी पर पुतिन की तारीफ करते सुने गए हैं. उन्हें पुतिन में नायक नज़र आता है जबकि उसी के कारनामे की वजह से भारत के हज़ारों छात्र बंकर में छिप कर अपनी जान बचा रहे हैं.

क्या आप अपनी बालकनी से खड़े होकर सामने हो रहे धमाके को देख सकते हैं? मशीन गन की आवाज़ों से इस शहर की रात थर्रा रही है. चिन्गारियां यहां से वहां भाग रही हैं और इंसान मोबाइल फोन से उसे रिकार्ड कर रहा है. क्या इसलिए कि इसे देखते हुए आप रोमांचित हो जाएं? तब फिर आप इस वीडियो को देखते हुए खुद को इस जगह पर ले जाइये जहां से एक भारतीय छात्र ने इसे रिकार्ड किया है. इतने क़रीब से युद्ध को देख कर वह अपने और बाकी भारतीय छात्रों के बारे में क्या सोच रहा होगा. इन धमाकों के बीच केवल डाक्टर बनने का सपना तबाह नहीं हो रहा होगा बल्कि वह अपने मां बाप के बारे में भी सोच रहा होगा कि उन पर क्या बीतेगी.
उसी रूस की सीमा के करीब सुमी स्टेट मेडिकल यूनिवर्सिटी है जिसके होस्टल के नीचे यह बंकर बना है. जब भी सायरन की आवाज़ आती है छात्रों को भाग कर इस बंकर में आना होता है. 24 फरवरी की रात के वक्त का यह वीडियो बता रहा है कि बिल्कुल पास में बरसते बमों के बीच इन छात्रों ने रात कैसे काटी होगी. जैेसे ही युद्ध की कहानी में आप खुद का चेहरा देखते हैं, अपनों का चेहरा देखते हैं युद्ध आपके लिए भयावह हो जाता है. न्यूज़ चैनल चेहरे को गायब कर टैंक और मिसाइलों से स्क्रीन को भर देते हैं तब वह आपके लिए मनोरंजन हो जाता है. हिन्दी चैनलों पर युद्ध के इस कवरेज को वीडियो गेम बना दिया गया है लेकिन सोचिए यहां इस बंकर में मौजूद भारतीय और अन्य देशों के छात्र क्या इसे वीडियो गेम की तरह देख पा रहे होंगे? इन छात्रों के पास इस वक्त खाने पीने के सामन बहुत कम बचे हैं लेकिन तनाव खींच गया तो इसकी भी कमी होने वाली है. यहां छिपे छात्र दूतावास के टोल फ्री नंबर में फोन लगाते हैं जवाब आता है जहां हैं वहीं बने रहें.
जिन पर तबाही आई है, उनकी तस्वीरें कितनी कम हैं, जिससे तबाही मच रही है, उसी की तस्वीरों से यूक्रेन पर हमले का कवरेज भरा है. कई घंटों तक दुनिया के कई चैनलों का कवरेज देखने के बाद लगा कि युद्ध का कवरेज दरअसल टैंकों और मिसाइलों का कवरेज होता है,मरने वाले लोगों का नहीं.भारत सरकार मदद करने का प्रयास कर रही है लेकिन उसके पास विकल्प बहुत सीमित हैं. आज सुबह भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने ट्विट किया है कि रोमानिया, स्लोवाकिया, हंगरी औऱ पोलैंड के भारतीय दूतावास की टीम यूक्रेन की सीमा से सटे इलाके में पहुंचने का प्रयास कर रही है. इन सीमावर्ती इलाकों में जो भारतीय हैं वे संपर्क कर सकते हैं और इसके लिए ट्विटर पर सभी के फोन नंबर दिए गए हैं. भारत में पोलैंड के राजदूत ने कहा है कि पोलैंड भारतीय छात्रों की मदद के लिए तैयार है. लेकिन जो छात्र शहर में हैं वो सीमाओं की तरफ कैसे जाएंगे. जैसे खारकीव है वो पश्चिमी सीमा से करीब हज़ार किलोमीटर दूर है.
यह वीडियो बिहार की नेहा ने भेजा है. नेहा ने बताया कि उन्हें कहा गया था कि विनित्सिया रेलवे स्टेशन पर छात्र पहुंचे जहां से उन्हें ट्रेन से पोलैंड ले जाया जाएगा. कीव से विनित्सिया ढाई घंटे की दूरी पर है. तो आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि इन सब चीज़ों को मैनेज करने में भी दूतावास के कर्मचारियों के लिए आसान नहीं होगा. तो जब ये छात्र विनित्सिया स्टेशन पहुंचे तो पता चला कि आज जाना संभव नहीं हो सकेगा. कई घंटे तक स्टेशन पर ही इंतज़ार करते रहे. सरकार ने कहा है कि वह चार्टर्ड फ्लाईट बुखारेस्ट और बुडापेस्ट भेज रही है. लेकिन यहां तक वही पहुंच सकेंगे जो सीमावर्ती इलाकों में होंगे लेकिन जो बीच में होंगे उनके लिए चुनौती होगी. ( मार्क कर दो यह बाद में जोड़ा है) इस बीच इवानो फ्रैंकविस्क से छात्र हंगरी की सीमा की ओर खुद ही रवाना हो गए. अपनी तरफ़ से टैक्सी की और चार घंटे के सफ़र पर हैं. सोचिए ये बच्चे कितना जोखिम उठा रहे हैं और इन पर क्या बीत रही है.
कोशिशें हो रही हैं, छात्रों को धीरज रखना होगा. यहां मीडिया और विपक्ष के नेता सभी इस बात को उठा रहे हैं. राज्यों के मुख्यमंत्री भी बोल रहे हैं. तो ऐसा नहीं है कि किसी का ध्यान नहीं है. ज़रूरत भारत के छात्रों को बाहर निकालने की कोशिश पहले हो सकती थी जिस तरह से बाकी देशों ने समय रहते अपने नागरिकों को यूक्रेन छोड़ने की चेतावनी जारी कर दी थी.
24 जनवरी को ऑस्ट्रेलिया ने अपने नागरिको को यूक्रेन छोड़ने की अपील कर दी थी. 11 फरवरी को अमरीका, ब्रिटेन,जापान, नीदरलैंड ने अपने नागरिकों को 24-48 घंटे के भीतर यूक्रेन छोड़ने के लिए कह दिया. 12 फरवरी तक करीब 12 देशों ने एडवाइज़री जारी कर दी थी कि उसके नागरिक यूक्रेन छोड़ दें.15 फरवरी को भारत की पहली एडवाइज़री आई कि छात्र अस्थायी तौर पर यूक्रेन छोड़ने पर विचार कर सकते हैं. 18 फरवरी को भारत की तरफ से सूचना आती है कि भारतीय छात्रों की मांग पर एयर इंडिया की तीन फ्लाइट का इंतज़ाम किया जा रहा है. इसके लिए 22, 24 और 26 फरवरी की तारीख बताई जाती है लेकिन 24 को हमला हो जाता है.
ट्विटर पर आई टी सेल के लोग भारतीय छात्रों को ही भला बुरा कह रहे हैं कि उनकी जिम्मेदारी थी लौटने की. छात्र सरकार से केवल गुहार ही लगा रहे हैं, लेकिन इसे आलोचना समझ कर उन्हें ही भला बुरा कहा जा रहा है.
ज़ाहिर है बंकर के इस दमघोंटू माहौल में कोई आटी सेल वाला नहीं होगा वर्ना वो ऐसी बात नहीं करता कि यूक्रेन पढ़ने गए हैं तो टिकट भी कटा लेते. ज़रूर बाहर गए हैं मगर ये सभी छात्र साधारण घरों के लगते हैं. हर किसी के लिए संभव नहीं है कि साठ सत्तर हज़ार का टिकट कटाकर वापस आ जाए. आई टी सेल को पता होना चाहिए कि दुनिया भर की सरकारें यूक्रेन पर नज़र रख रही थीं और अपने नागरिकों की चिन्ता कर रही थीं. छात्रों का कहना है कि वहां की यूनिवर्सिटी ने भी उन्हें फंसा दिया. आन लाइन क्लास की अनुमति नहीं दे रही थीं. वैसे जिस शहर में बम गिरने वाले हों वहां आनलाइन क्लास भी कैसे चल सकती है. आपने देखा कि 12 फरवरी तक एक दर्जन देश अपने नागरिकों से जल्द से जल्द यूक्रेन छोड़ देने की बात कर रहे थे. इसके तीन दिन बाद 15 फरवरी भारत की पहली एडवाइज़री है कि अस्थायी तौर पर छोड़ने का विचार कर सकते हैं. उसके तीन दिन बाद एडवाइज़री आती है कि एयर इंडिया के विमान का इंतज़ाम हो रहा है.
इस पर बहस हो सकती है कि भारत को और स्पष्ट एडवाइज़री जारी करनी चाहिए थी या नहीं लेकिन सारी सूचनाएं आपके सामने होनी चाहिए जो कि नहीं हैं. बेशक दूसरे देशों की तुलना में यह दिखता तो है कि भारत को भी उन्हीं के साथ नागरिकों को यूक्रेन छोड़ने की चेतावनी जारी कर देनी चाहिए थी और सस्ते टिकट वाले विमान की व्यवस्था करानी चाहिए थी. अतीत में भी वायु सेना के विमान से भारतीय वापस लाए गए हैं जिसकी पर्याप्त वाहवाही भी हुई है.
यह कीव मेडिकल यूनिवर्सिटी का बेसमेंट है. हवाई हमले की आशंका में यहां छात्र इस तरह से रात बिता रहे हैं. पांव रखने की जगह नहीं है. इसमें भारतीय छात्रों के अलावा दूसरे देशों के भी छात्र नज़र आ रहे हैं. यूक्रेन के मेडिकल कालेजों में ब्रिटेन से लेकर चीन तक के छात्र पढ़ते हैं. जैसे ही आप टैंक और बम के दृश्यों के रोमांच से अलग कर इंसानों के समूह को देखते हैं युद्ध को मस्ती और तमाशे के रुप में देखने का शौक हवा हो जाता है. आप इसके बाद एक बंकर में इस छात्र के साथ चलिए, उसे देखिए तब पता चलेगा कि पुतिन कितना सनकी है और उनके साथ फोटो खिचा कर सुपर पावर बनने वाले भी उससे कम नहीं है.
भारतीय छात्रों ने इस मुसीबत में भी इतनी सक्रियता दिखाई कि अपनी बात देश भर में पहुंचा दी. उनकी वजह से यूक्रेन के शहर के कई इलाकों के वीडियो हमारे सामने हैं. आज दोपहर खारकीव शहर में आज़मगढ़ के रवि प्रकाश गुप्ता से फोन पर बात कर ही रहा था कि बम के धमाके की आवाज़ सुनाई दी. इसके बाद रवि की आवाज़ में बदहवासी छा गई. रवि और उसके सारे साथी बेसमेंट से बंकर की तरफ भागने लगे
रवि ने बताया कि पूरी रात इस पुराने बने बंकर में उन लोगों ने गुज़ारी है. जैसे ही धमाके की आवाज़ सुनते हैं भाग कर यहां आ जाते हैं. रवि वी एन कराज़िन खारकोव नेशनल यूनिवर्सिटी में पढ़ते हैं. यहां तापतान माइनस दो डिग्री है. वे दिन या रात कहीं भी भाग कर नहीं जा सकते हैं. जब शहर से निकल ही नहीं पाएंगे तो भारतीय दूतावास से संपर्क कैसे करेंगे, कैसे पोलैंड औऱ हंगरी की सीमा की तरफ भागेंगे. रवि और उसके साथी यही गुहार लगाते रहे कि भारत सरकार पर दबाव डालकर यहां से निकलवाइये. मुझे रवि की आवाज़ में यूक्रेन के आम नागरिकों की भी आवाज़ सुनाई दे रही थी. रवि ने ही यह वीडियो भेजा है कि खारकीव में हज़ारों लोग मेट्रो स्टेशन में रह रहे हैं. भारतीय छात्रों ने भी वहां शरण ली है. छात्र बार बार इस बंकर में आकर जान बचाते हैं. ऐसी हालत में इन बच्चों की चिन्ता कीजिए. इन्हे बचाने की चिन्ता कीजिए. एक दूसरे देश में युद्ध के बीच फंस गए हैं औऱ भारत के टीवी चैनलों पर पुतिन की तारीफ हो रही है. मानवता के नाम पर कसमें खाने वाले सनकी नेताओं ने आम लोगों की ये हालत कर दी है और यही आम लोग इन सनकी नेताओं के एक साथ फोटो देखकर समझते हैं कि देश सुपर पावर हो गया है.
तभी कहा कि एक बार टैंक और मिसाइलों के वीडियो को स्क्रीन पर हटाकर देखिए तो युद्ध की यह तबाही आपको भी अपनी चपेट में ले लेगी. आप मनोरंजन की तरह इसके कवरेज को नहीं देख पाएंगे.यूक्रेन के लोगों पर क्या बीत रही होगी. यूक्रेन के स्वास्थ्य मंत्रालय का बयान है कि रूस के हमले में 169 घायल हुए हैं जबकि राष्ट्रपति का कहना है कि 300 से अधिक घायल हैं. मरने वालों की संख्या 57 से 137 तक बताई जा रही है. ज़ाहिर है इस वक्त मरने वालों और घायलों की संख्या का सही अंदाज़ा लगाना मुश्किल है.
यह वीडियो लविव का है. आसमान में लड़ाकू विमान बेक़ाबू हो चुके हैं. किसे मार कर आ रहे हैं और किसे मारने जा रहे हैं कुछ पता नहीं है. इस शहर में सायरन की आवाज़ ही एक मात्र आबादी है. उसकी आवाज़ से इतना तो यकीन है कि कोई ज़िंदा है और सायरन बजा रहा है. शहर ख़ाली सा लग रहा है और चंद गाड़िआं सड़कों पर नज़र आ रही हैं. फ्रांस 24 पर इस तरह की कई रिपोर्ट हैं कि यूक्रेन में लोग शहरों को छोड़ सुरक्षित ठिकानों की तरफ भाग रहे हैं. ट्रैफिक व्यवस्था अस्त व्यस्त हो चुकी है. जगह जगह जाम लगे हैं. एटीएम के बाहर पैसा निकालने वालों की भीड़ लगी है. रात उनकी भी बंकरों में गुज़र रही है.रवि ने बताया कि यहां मेट्रो स्टेशन काफी नीचे बना होता है तो बम शेल्टर का भी काम करता है.
आप इस वीडियो में देख सकते हैं कि कितनी भीड़ है. यहां छिपे लोग बता रहे हैं कि खाने पीने की चीज़ें कम पड़ने लगी हैं, शौचालय की व्यवस्था नहीं है, पानी नहीं है, बाहर नहीं जा सकते हैं, अगर लंबे समय तक युद्ध चला तो मेट्रो के बंकर में लोग बदबू और भूख से ही मरने लग जाएंगे.एक ताकतवर देश बेलगाम होकर हमला किए जा रहा है. सैनिक ठिकाने भी आबादी के करीब बने होते हैं. वहां जो बारुद और अस्लहे होते हैं अगर उन्हीं को निशाना बना कर ध्वस्त किया जाए तो बर्बादी का अंदाज़ा आप नहीं लगा सकते हैं. संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि यूक्रेन में एक लाख लोग विस्थापित हो चुके हैं.
यूक्रेन के राष्ट्रपति बार बार कह रहे हैं कि रूस ने नागरिकों पर हमला किया है लेकिन यह तबाही किस शहर के किस हिस्से में हुई है इसे लेकर पुष्ट सूचनाएं बहुत कम हैं. मुमकिन है वहां ज्यादा हुई होगी जहां सैनिक ठिकाना आबादी के करीब होगा.
हम यह बताने की स्थिति में नहीं है कि यह वीडियो ठीक ठीक किस जगह का है लेकिन यूक्रेन में रहने वाली भारतीय छात्रा के ज़रिए ही मिला है. आप इस वीडियो से युद्ध की विभीषिका का अंदाज़ा लगा सकते हैं. हमारे पास जानने का यह कोई ज़रिया ही नहीं है कि जहां धमाका हुआ है वहां क्या था. वहां कितने लोग होंगे. धमाके के बाद उस जगह की कोई तस्वीर नहीं है. सीएनएन और बीबीसी के लिए रिपोर्ट कर रहे एक स्वतंत्र पत्रकार ओल्गा तोकारुईक ने लिखा है कि यूक्रेन की सेना ने भी जवाब दिया है. 800 रूसी सैनिक मारे गए हैं और यूक्रेन के 13 सैनिक मारे गए हैं
स्नैक (snake) आइलैंड में इन 13 सैनिकों ने सरेंडर करने से इंकार कर दिया था. कई जगह यह खबर छपी है. खबर आई कि रूस की सेना राजधानी कीव से दस किलोमीटर दूर ओबोलोन में पहुंच गई है. यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदिमीर ज़ेलेंस्की ने कहा है कि रूस नागरिकों पर हमला कर रहा है.किव में तीन तीन मिसाइलें दागी गई हैं. 48 घंटे मे यह साफ हो गया है कि रूस ने हर तरफ से हमला किया है. बेलारूस ने हमले में शामिल होने से इंकार किया है जबकि यूक्रेन का कहना है कि बेलारूस की तरफ से हमला हुआ है, रूसी सेना बेलारूस की तरफ से यूक्रेन में घुसी है. इसी के साथ एक संशोधन भी करना है कि जो कल के प्राइम टाइम में हमने नहीं बताया था. इमरान खान का दौरा युद्ध के पहले से तय था फिर भी इमरान को हालात का अंदाज़ा तो होना ही चाहिए था. कई शहरों में रूसी सेना घुस गई है जैसे खारकीव, चेर्नोबिल, चेर्निहिव, होस्तोमेल जैसे शहरों में.
यूक्रेन के राष्ट्रपति ने कहा है कि उनका देश अकेला पड़ गया है. अकेले ही अपनी रक्षा कर रहा है. यूक्रेन के साथ कोई लड़ने को तैयार नहीं है. मुझे तो कोई नज़र नहीं आ रहा है. यूक्रेन को नेटो का सदस्य बनाने की गारंटी कौन दे रहा है, पता नहीं. मैंने 27 यूरोपीय नेताओं से पूछा है कि क्या यूक्रेन नेटो का सदस्य होगा. सब डरे हैं और किसी ने जवाब नहीं दिया. यूक्रेन के राष्ट्रपति का यह बयान बहुत महत्वपूर्ण है.यूक्रेन के शहरों में कारों की जगह टैंक ने ले ली है. क्या यूक्रेन अकेले अपने दम पर रूस का मुकाबला कर पाएगा. राष्ट्रपति कह रहे हैं कि रूस उनकी हत्या कर देना चाहता है. वे अपने लोगों के बीच रह रहे हैं. उनका परिवार उनके बच्चे भी यूक्रेन में है. राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की दुनिया भर से मदद मांग रहे हैं. चाहते हैं कि दुनिया में युद्ध विरोधी गठबंधन बने और रूस को काबू में किया जाए.
यह हमला हुआ कि यूक्रेन को नाटो का सदस्य बनाया जा रहा है, यूक्रेन के राष्ट्रपति कह रहे हैं कि 27 यूरोपीय नेताओं से पूछा कि कौन बना रहा है नेटो का सदस्य तो कोई जवाब नहीं. नेटो ने साफ कर दिया कि यूक्रेन में कोई सेना नहीं भेजी जाएगी. वह रूस को रोकने के लिए नए तरीके का इस्तेमाल करेगा. आज सुबह G-7 देशों की बैठक हुई. कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली जापाना ब्रिटेन और अमरीका इसके सदस्य हैं. जर्मनी इसका अध्यक्ष है. इसकी बैठक में भी रूस के हमले के जवाब में युद्ध के बजाए आर्थिक और वित्तीय प्रतिबंधों की ही बात की गई. दूसरी तरफ यह भी खबर आ रही है कि रूस से इटली और जर्मनी जैसे कई देशों ने तेल और गैस खरीदे हैं. रूस को अच्छा दाम मिला है और कारोबार भी कर लिया है. यूक्रेन ने आरोप लगाया है कि जर्मनी और इटली रूस पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगाना चाहते हैं. उसके साथ अब भी संबंध बनाए रखना चाहते हैं.
सारे नेता कह रहे हैं कि दुनिया यूक्रेन के साथ खड़ी है लेकिन इसके बाद भी यूक्रेन जंग के मैदान में अकेला खड़ा है. नाटो और अमरीका ने नए हथियार दिए हैं लेकिन उसकी क्षमता उतनी आधुनिक नहीं है. जानकार यूक्रेन की सैन्य क्षमता पर भी संदेह कर रहे हैं. ऐसे में अगर पश्चिमी देशों ने यूक्रेन की युद्ध में मदद नहीं की तो एक देश देखते देखते तबाह हो सकता है.
नाटो का कहना है कि मित्र देशों की सुरक्षा के लिए 100 लड़ाकू विमानों को एलर्ट पर रखा गया है. पूर्वी हिस्से में भारी मात्रा में टुकड़ियों को तैनात रखा जाएगा. कमाल है यूक्रेन की मदद के बजाए इनकी चालाकी देखिए, अपने मित्र देशों की चिन्ता कर रहे हैं. यानी रूस अगर चाहे तो यूक्रेन के साथ जो मर्ज़ी करे. हम प्रतिबंध लगाते रहेंगे औऱ अपनी रक्षा के उपाय करते रहेंगे. ज़ाहिर है यूक्रेन आज अकेला हो गया है.
यूक्रेन फंस गया. इन सुपर पावरों ने उसके साथ भी धोखा किया है. 1994 से लेकर 1996 के बीच यूक्रेन ने अपने सारे परमाणु हथियार रूस को दे दिए. तब अमेरिका ब्रिटेन और रूस ने कहा था कि क्षेत्रीय यूक्रेन की संप्रभुता की रक्षा की जाएगी.आज उसकी मदद के लिए केवल बयान जारी हो रहे हैं. रूस का आरोप है कि यूक्रेन ने 1994 के बुडापेस्ट समझौते का उल्लंघन कर परमाणु हथियार बनाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन ऐसा सिर्फ रूस का कहना है और अगर यूक्रेन के पास परमाणु हथियार होता तो रूस इस तरह तबाही नहीं मचाता.
यूक्रेन रूस का लंबे समय तक सामना नहीं कर सकेगा, अभी तक तथाकथित सुपर पावरों की चेतावनियों का रूस पर कोई असर नहीं हुआ है. क्या यह लड़ाई तब रुकेगी जब यूक्रेन को तबाह कर दिया जाएगा? ऐसा नही है कि रूस पर प्रतिबंधों का असर नहीं हो रहा है लेकिन रूस युद्ध नहीं रोक रहा है.उधर अमेरिका ने कहा है कि जर्मनी की मदद के लिए 7000 सैनिक भेजेगा. गेम समझिए. यूक्रेन की मदद करते करते जर्मनी की मदद कर रहा है औऱ यूरोप का यह सुपर पावर दो दो विश्व युद्ध झेलने के बाद भी खुद से अपनी रक्षा नहीं कर सकता तब यूक्रेन कैसे कर पाएगा.
अमेरिका के राष्ट्रपति का कहना है कि उनके प्रतिबंधों के कारण रूसी मुद्रा रुबल ध्वस्त हो गई है. स्टाक मार्केट गिर गया है और रूसी सरकार को 15 प्रतिशत ज्यादा ब्याज पर लोन लेना पड़ रहा है. अमरीका ने रूस के और रूस ने अमरीका के राजनयिकों को निकल जाने के आदेश दिए हैं. यूरोपियन यूनियन का कहना है कि उसने इतने तरह के प्रतिबंध लगा दिए हैं कि रूसी बैंकों का सत्तर प्रतिशत बाज़ार अलग थलग पड़ गया है. कनाडा ने रूस के धनिकों से जुड़े 27 बैंकों पर रोक लगा दी है कि इनसे लेन-देन न करें. कनाडा ने रूस को किए जा रहे निर्यात पर रोक लगा दी है. अमरीका ने युद्ध का साथ देने के लिए बेलारूस के कई संगठनों औऱ व्यक्तियों पर प्रतिबंध लगाए हैं. इन प्रतिबंधों में बार बार मास्को के धनिकों का ज़िक्र आता है. क्या ये प्रतिबंध ऐसे अमीरों को बर्बाद कर पाएंगे. दूसरी तरफ रूस पर प्रतिबंध लगाने का असर इन देशों में भी हो रहा है.
दुनिया के कई देशों में युद्ध के खिलाफ प्रदर्शन शुरू हो गए हैं. केवल रूस के खिलाफ ही नहीं बल्कि उन सभी के खिलाफ जो इस खेल में प्रत्यक्ष और परोक्ष रुप से शामिल हैं. इन्हें पता है कि युद्ध और प्रतिबंध की मार हर जगह आम जनता पर ही पड़ती है. अमरीका में अभी ही गैस के दाम डबल हो गए हैं.जो बाइडन ने कहा है कि अमरीका अपने रिज़र्व से तेल की आपूर्ति करेगा. ब्रिटेन में भी महंगाई तीस साल में सबसे अधिक हो चुकी है.अभी ही गेहूं और सोयाबिन के दाम आसमान छूने लगे हैं. 9 साल में सबसे अधिक हो गए हैं. यूरोप महंगाई से घिर जाएगी. यूरोपियन यूनियन रूस का सबसे बड़ा कारोबारी साझीदार है. रूस अपने गैस निर्यात का सत्तर प्रतिशत यूरोपियन यूनियन को करता है. रूस अपने तेल का पचास फीसदी तेल यूरोपियन यूनियन के देशों को बेचता है. सवाल है कि ये देश रूस पर लगाए प्रतिबंधों के शिकार हो रहे हैं वे कब तक झेल पाएंगे.
इस ग्लोबल दुनिया में आर्थिक प्रतिबंध बेअसर साबित होने लगे हैं. जिस देश पर प्रतिबंध लगता है वह दूसरे देशों से दूसरे तरीके से धंधा करने लगता है. ईरान पर प्रतिबंध लगा लेकिन उसका परमाणु कार्यक्रम चल ही रहा है. ट्रंप ने अपने शासन काल में ईरान, उत्तरी कोरिया, वेनेज़ुएला चीन पर प्रतिबंध लगाए.चीन ने आयात शुल्क घटाकर यूरोपियिन यूनियन के देशों से धंधा करना शुरू कर दिया. रूस पर प्रतिबंध लगा तो रूस ने भी धंधा करने के दस तरीके निकाल लिए. अमरीका ने म्यानमार पर प्रतिबंध लगाया लेकिन सैनिक शासन की क्रूरता जारी है. प्रतिबंधों के कारण सनकी नेताओं और गिरोहों की सनक पर कोई असर नहीं पड़ता है उल्टा उस देश की गरीब जनता महंगाई बढ़ने और दवाई की कमी के कारण और मरने लग जाती है. एक खेल और होता है. डॉलर के बजाए दूसरी मुद्रा में व्यापार करने का रास्ता निकाल लिया जाता है. इससे यह भी हो रहा है कि दुनिया के कारोबार में डॉलर की हैसियत कम होती जा रही है. मुमकिन है चीन अपनी मुद्रा के लिए इसका फायदा उठाना चाहता हो.
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