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भारतीय किसान यूनियन (BKU) में बढ़ते असंतोष के कारण किसान संगठन में फूट पड़ गई है
एम हसन |
भारतीय किसान यूनियन (BKU) में बढ़ते असंतोष के कारण किसान संगठन में फूट पड़ गई है. राजेश सिंह चौहान के नेतृत्व में अलग हुए बीकेयू गुट और नरेश टिकैत (Naresh Tikait) को बीकेयू अध्यक्ष पद से हटाने ने इस खाई को और बढ़ा दिया है. चौहान ने यह भी कहा है कि बीकेयू नेता राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) को संगठन से बर्खास्त कर दिया गया है. अलग हो चुके किसान संगठन के गठन के बाद पत्रकारों से बात करते हुए चौहान जो बीकेयू (टिकैत) में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष थे, उन्होंने नरेश और राकेश टिकैत दोनों पर बीकेयू का राजनीतिकरण करने और अपने निहित स्वार्थों के लिए इसका इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है. चौहान ने कहा कि उन्होंने बीकेयू को किसी राजनीतिक दल का समर्थन करने का विरोध किया था लेकिन उनकी सलाह को नजरअंदाज कर दिया गया.
भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) में पड़ी फूट ने एक बार फिर उत्तर प्रदेश में किसानों की राजनीति में कोहराम मचा दिया है. हालांकि यह पहली बार नहीं है जब बीकेयू में फूट पड़ी है. पहले भी किसानों के बीच मतभेद के कारण संगठन में विभाजन हुआ करते थे. टिकैत भाइयों के नेतृत्व में बीकेयू ने विवादास्पद तीन कृषि कानूनों के खिलाफ साल भर हुए किसान आंदोलन और यूपी-दिल्ली सीमाओं पर धरने के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी जिसे बाद में केंद्र सरकार ने वापस ले लिया था.
बीजेपी नेतृत्व भी टिकैत बंधुओं से खफा था
लेकिन लंबे समय से चल रहे आंदोलन को लेकर केंद्र और यूपी सरकार के साथ मतभेद को देखते हुए राकेश टिकैत और नरेश टिकैत ने पश्चिम यूपी में आरएलडी-समाजवादी पार्टी गठबंधन को समर्थन दिया और बीजेपी के खिलाफ प्रचार किया. हालांकि विधानसभा चुनाव के दौरान एक गैर-राजनीतिक संगठन बीकेयू की भूमिका ने पश्चिम यूपी के कई किसानों में नाराजगी पैदा कर दी थी. बीजेपी नेतृत्व भी टिकैत बंधुओं से खफा था. मौजूदा बंटवारे पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए राकेश ने कहा, 'यह सरकार के इशारे पर किया गया है.
टिकैत ने कहा कि कुछ लोगों ने वैचारिक मतभेदों के कारण बीकेयू को छोड़ दिया और अपना संगठन बना लिया लेकिन यह किसी भी तरह से नरेश टिकैत के नेतृत्व वाले बीकेयू को प्रभावित नहीं करेगा. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि विभाजन का पश्चिम यूपी के किसानों पर क्या प्रभाव पड़ेगा. राकेश ने इस बंटवारे को रोकने की कोशिश की थी. वह नाराज नेताओं को शांत करने के लिए लखनऊ भी गए लेकिन बातचीत में उन्हें कोई सफलता नहीं मिली क्योंकि राजेश सिंह चौहान के नेतृत्व वाला गुट अलग होने का इरादा कर चुका था.
शामली के किसान नेता बाबा राजेंद्र सिंह मलिक जिन्हें नए संगठन का अध्यक्ष (संरक्षक) नियुक्त किया गया है उन्होंने टिकैत बंधुओं पर किसानों के नाम पर राजनीति करने का आरोप लगाया है. मलिक ने आरोप लगाया कि 1987 में बीकेयू के गठन के बाद से टिकैत परिवार की "वित्तीय स्थिति" ने किसानों के नाम पर अपना हित साधने की ओर साफ इशारा करती है. मलिक ने कहा, "तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को वापस लेने पर टिकैत बंधुओ का कड़ा रुख, एमएसपी को कानूनी समर्थन सुनिश्चित करने में विफलता और यूपी विधानसभा चुनावों में किसानों की एकजुटता में कमी ने इस विभाजन की वजह बनी."
इस घटना ने बीजेपी नेतृत्व की भी किरकिरी की थी
नरेश टिकैत और राकेश टिकैत के नेतृत्व में भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) में हुए इस विभाजन का न केवल किसानों की राजनीति पर प्रभाव पड़ेगा बल्कि यह पश्चिम यूपी की "जाट राजनीति" को भी प्रभावित करेगा क्योंकि दोनों आपस में जुड़े हुए हैं. महेंद्र सिंह टिकैत ने किसानों के अधिकारों के लिए लड़ने के लिए 1987 में बीकेयू की स्थापना की थी. उन्होंने संगठन को राजनीति और राजनीतिक दलों की चाल से दूर रखा था. लेकिन उनकी मृत्यु के बाद संगठन नरेश और राकेश टिकैत के नियंत्रण में आ गया और फिर एक "गैर-राजनीतिक" संगठन नहीं रह गया.
राकेश टिकैत ने अब कहा है कि यूनियन में इस फूट को योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा बढ़ावा दिया गया क्योंकि हाल ही में संपन्न उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी-राष्ट्रीय लोक दल (एसपी-आरएलडी) गठबंधन को उनका समर्थन प्राप्त था. टिकैत ने तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त करने पर संगठन के भीतर विभाजन के पीछे एक राजनीतिक मकसद को जिम्मेदार ठहराया है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. बीकेयू में एक समूह का इस मुद्दे को लेकर नरम पक्ष था लेकिन टिकैत बंधुओं ने हर गुजरते दिन के साथ कृषि कानूनों पर अपना रुख और सख्त किया और आखिरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नवंबर 2021 में कानूनों को वापस लेने की घोषणा की.
लेकिन टिकैत बंधुओं के कड़े विरोध के बावजूद जाट समुदाय को विभाजित करने में सफल रही बीजेपी ने आरएलडी-सपा गठबंधन की तुलना में पश्चिम यूपी में अधिक विधानसभा सीटें जीतीं. इसने इस क्षेत्र में टिकैत परिवार के घटते राजनीतिक प्रभाव का संकेत दिया. अब विभाजन और बड़ी संख्या में पश्चिम यूपी के किसानों के राजेंद्र सिंह मलिक के नेतृत्व में नए संगठन में शामिल होने के बाद जाट किसानों के टिकैत से दूरी बनाने से इंकार नहीं किया जा सकता है. किसान आंदोलन के चरम पर होने पर भी बीजेपी ने टिकैत परिवार अपने पाले लाने की भरसक कोशिश की थी लेकिन वह इसमें कामयाब नहीं हो सकी. 3 अक्टूबर 2021 को लखीमपुर खीरी में चार किसानों की हत्या के बाद बीकेयू और राज्य सरकार के बीच तनातनी और तेज हो गई. राकेश तब से केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा उर्फ टेनी के खिलाफ प्रचार कर रहे हैं जिनका बेटा आशीष मिश्रा जो अब जेल में है उन किसानों की हत्या में शामिल था. इस घटना ने बीजेपी नेतृत्व की भी किरकिरी की थी.
Rani Sahu
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