सम्पादकीय

भारतीय अर्थव्यवस्था : क्यों गिरता जा रहा है रुपया, क्या हैं इसके मायने, आरबीआई के पास क्या हैं विकल्प

Rani Sahu
5 July 2022 3:40 PM GMT
भारतीय अर्थव्यवस्था : क्यों गिरता जा रहा है रुपया, क्या हैं इसके मायने, आरबीआई के पास क्या हैं विकल्प
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अन्य मुद्राओं के साथ भारतीय रुपया भी लगातार गिर रहा है


अजय बग्गा
सोर्स- अमर उजाला
अन्य मुद्राओं के साथ भारतीय रुपया भी लगातार गिर रहा है, क्योंकि इस वर्ष अमेरिकी डॉलर में जोरदार तेजी आई है। प्रति डॉलर के मुकाबले 79 रुपये के स्तर तक गिरने के कारण वर्ष 2022 की पहली छमाही में रुपये में छह प्रतिशत की गिरावट चिंताजनक है। गिरता रुपया मुद्रास्फीति के खिलाफ लड़ाई को और कठिन बना देता है, क्योंकि रिजर्व बैंक को मुद्रास्फीति पर लगाम लगाने के लिए दरों को और बढ़ाने पर मजबूर होना पड़ेगा, जिसके चलते आर्थिक विकास कम होगा।
चूंकि भारत अपनी जरूरतों का 85 फीसदी से अधिक कच्चे तेल का आयात करता है, ऐसे में गिरता हुआ रुपया आयात बिल बढ़ाता है और उच्च मुद्रास्फीति से पूरी अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है। इस वर्ष, मुख्य रूप से विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों या एफपीआई द्वारा नियमित रूप से इक्विटी बाजार से धन निकालने, कच्चे तेल की कीमतों में भारी वृद्धि के साथ आयात बिल बढ़ने के कारण भारत का व्यापार संतुलन बिगड़ने और दुनिया की प्रमुख मुद्राओं की तुलना में अमेरिकी डॉलर में 20 फीसदी से अधिक की मजबूती के कारण रुपये पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
एफपीआई ने इस वर्ष जनवरी से जून के अंत तक भारतीय शेयर बाजार से 28 अरब डॉलर से अधिक की निकासी की है। ब्राजील जैसे कमोडिटी चालित बाजारों को छोड़कर उन्होंने ज्यादातर उभरते बाजारों से धन निकाला है। एफपीआई ने इस साल 2.3 अरब डॉलर के भारतीय बॉन्ड भी बेचे हैं। जाहिर है, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा इतने बड़े पैमाने पर बिकवाली रुपये को और कमजोर करती है। इसके बावजूद मुद्रा बाजार में रिजर्व बैंक के हस्तक्षेप के कारण रुपये की स्थिति अन्य एशियाई मुद्राओं की तुलना में अपेक्षाकृत बेहतर रही है।
हालांकि, व्यापक व्यापार और चालू खाता घाटा (सीएडी) और निरंतर विदेशी पोर्टफोलियो बहिर्वाह के साथ, नीचे की ओर दबाव बढ़ गया है। रिजर्व बैंक ने आधिकारिक तौर पर रुपये के लिए कोई स्तर निर्धारित नहीं किया है। लेकिन उसने रुपये की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप किया है। हाल ही में रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि भले ही रुपये का स्तर बाजार द्वारा निर्धारित होता है, लेकिन रिजर्व बैंक मुद्रा में 'मूल्यह्रास' की अनुमति नहीं देगा।
इसी तरह 24 जून को, डिप्टी गवर्नर माइकल पात्रा ने एक उद्योग सम्मेलन में भारतीय रुपये के स्तर पर रिजर्व बैंक की नीति के बारे में कहा, 'हम इसकी स्थिरता के लिए प्रतिबद्ध रहेंगे, और हम यह काम निरंतर कर रहे हैं।' रिजर्व बैंक में मौद्रिक नीति विभाग की देखभाल करने वाले पात्रा ने जोर देकर कहा कि हाल के दिनों में भारतीय मुद्रा में सबसे कम मूल्यह्रास देखा गया है। उन्होंने कहा कि 'हमें नहीं पता कि रुपया कहां तक गिरेगा।
यहां तक कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व को भी नहीं पता कि डॉलर कहां जाएगा? लेकिन एक बात ध्यान रखिए कि हम रुपये की स्थिरता के लिए खड़े रहेंगे और ऐसा हम निरंतर कर रहे हैं, यहां तक कि इस समय भी, जब मैं बोल रहा हूं। हम बाजार में हैं। हम रुपये में अव्यवस्थित उतार-चढ़ाव की अनुमति नहीं देंगे। हमारे मन में कोई स्तर नहीं है, लेकिन हम झटकेदार हरकतों की अनुमति नहीं देंगे। ...यह व्यापक रूप से ज्ञात हो कि हम बाजार में रुपये की अस्थिरता के खिलाफ बचाव कर रहे हैं।
'कुल मिलाकर, अगले कुछ महीनों में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये के धीरे-धीरे गिरकर लगभग 81 रुपये प्रति अमेरिकी डॉलर के स्तर पर आने की उम्मीद है। रिजर्व बैंक रुपये के प्रति धारणा को मजबूत करने और स्थिर रुपये को सुनिश्चित करने के लिए राज्य के स्वामित्व वाले बैंकों के माध्यम से हाजिर (स्पॉट) एवं वायदा बाजार (फॉरवर्ड मार्केट) में हस्तक्षेप करने के लिए 590 अरब डॉलर से अधिक के मजबूत विदेशी मुद्रा भंडार का उपयोग कर रहा है।
मजबूत अमेरिकी डॉलर के वैश्विक रुझान, अमेरिकी फेड की बढ़ती दरें, भारतीय स्टॉक और ऋण बाजारों से विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा धन निकासी के साथ-साथ कमोडिटी, खासकर कच्चे तेल की बढ़ती कीमत, जिसका भारत सबसे बड़ा आयातक है, ये सभी रुपये में गिरावट के लिए जिम्मेदार हैं। हालांकि यह देखने लायक है कि रुपये ने अधिकांश अन्य उभरते बाजार की मुद्राओं की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है और जापानी येन के मुकाबले भी उसका प्रदर्शन अच्छा है, जो हाल ही में 25 साल के सबसे निचले स्तर पर एक अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 135 येन पर पहुंच गया है, और उसमें और गिरावट की प्रवृत्ति है।
सरकार भी रुपये के इस मूल्यह्रास और घरेलू मुद्रास्फीति पर इसके प्रभाव पर अंकुश लगा रही है। सोने पर आयात शुल्क में इस महीने की शुरुआत से पांच फीसदी की वृद्धि कर सरकार ने सोना आयात पर अंकुश लगाने की कोशिश तो की ही है, इसने डीजल, विमानन ईंधन और गैसोलीन जैसे पेट्रोलियम उत्पादों के निर्यात पर निर्यात कर भी लगाया है। ये सभी उपाय बढ़ते व्यापार घाटे, भुगतान असंतुलन और चालू खाता घाटे को नियंत्रित करने के लिए किए गए हैं।
अनुमान के अनुसार वित्त वर्ष-2023 के लिए चालू खाता घाटा भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 2.9 फीसदी से तीन फीसदी तक बढ़ सकता है, जो रुपये पर और दबाव डालेगा। मुख्य बातें और भावनाएं उभरते बाजार की मुद्राओं के खिलाफ हैं। इस परिदृश्य में, केंद्रीय बैंकों को एक विकल्प खोजना होगा, कि क्या उन्हें मुद्राओं की रक्षा के लिए दरों में तेज वृद्धि करनी चाहिए और अर्थव्यवस्था में विकास को जोखिम में डालना चाहिए, या अपने विदेशी मुद्रा भंडार को खर्च करना चाहिए, जिसे विदेशी मुद्रा बाजारों में हस्क्षेप करने में वर्षों लग गए, या बाजारों को अपनी मुद्राओं के लिए स्तर खोजने दें।
एक बहुत ही अस्थिर और अप्रत्याशित वातावरण में रुपये के मूल्यह्रास को सुनिश्चित करने के लिए रिजर्व बैंक अपने सभी साधनों का उपयोग करते हुए एक संतुलन बना रहा है। अगले कुछ महीनों में हम रुपये को एक अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 81 के स्तर पर देखेंगे। रुपये का मूल्यह्रास तब तक जारी रहेगा, जब तक वैश्विक स्तर पर मुद्रास्फीति बढ़ती रहेगी और वैश्विक केंद्रीय बैंक दरें नहीं बढ़एंगे। एक बार जब हम मुद्रास्फीति में गिरावट देखेंगे, तो ब्याज दर वृद्धि चक्र भी बदल जाएगा और फिर हम उभरते बाजारों में ब्याज फिर से बढ़ते हुए देखेंगे


Rani Sahu

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