सम्पादकीय

भारतीय सेना और कारगिल-1

Rani Sahu
8 July 2022 7:11 PM GMT
भारतीय सेना और कारगिल-1
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हमारा प्रदेश देवभूमि के नाम से विश्व विख्यात है, पर इसके साथ-साथ हिमाचल प्रदेश को वीर भूमि के नाम से भी जाना जाता है

हमारा प्रदेश देवभूमि के नाम से विश्व विख्यात है, पर इसके साथ-साथ हिमाचल प्रदेश को वीर भूमि के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि हमारे प्रदेश के हर गांव में और यूं कहें कि हर घर से कोई न कोई सेना में सेवा दे रहा है या दे चुका है। राज्य में फौजियों की संख्या का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि हमारे हिमाचली लोकगीत भी ज्यादातर फौजियों की छुट्टी और उसकी नौकरी को बयान करने वाले हैं। अगर हम हिमाचल की किसी भी सड़क पर 50 किलोमीटर का सफर करें तो उसमें कम से कम तीन से चार शहीद के नाम पर बने हुए गेट मिल जाएंगे। इससे यह प्रमाणित होता है कि हर 10 से 12 किलोमीटर में हमारे देवभूमि के वीरों ने सेना में देश की रक्षा करते हुए अपना सर्वस्व न्यौछावर करते हुए शहीद का दर्जा हासिल करके हमारी मातृभूमि को गौरवान्वित किया है। हमारी वीर भूमि के सैनिकों का देश के प्रति त्याग प्रथम व द्वितीय विश्व युद्ध में तो था ही, पर आजादी के बाद 1962, 1965 और 1971 के युद्ध में भी उल्लेखनीय था। अगर वर्तमान पीढ़ी की बात करें, करीब 23 वर्ष पहले भारत और पाकिस्तान के बीच जो कारगिल युद्ध हुआ था, उसकी यादें आज भी हम लोगों के मन-मस्तिष्क में ताजा हैं। अभी दो दिन पहले 7 जुलाई को भारत मां के वीर सपूत तथा हमारी वीर भूमि से संबंध रखने वाले परमवीर चक्र विजेता कैप्टन विक्रम बत्रा कारगिल युद्ध के दौरान वीरगति को प्राप्त हुए थे, उनकी पुण्यतिथि के दिन उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कारगिल की यादें कुछ और भी ताजा हो जाती हैं।

अगर हम अपने वीर योद्धा कैप्टन विक्रम बत्रा की बात करें तो उनका जन्म 9 सितंबर 1974 को हिमाचल प्रदेश की खूबसूरत वादियों वाले क्षेत्र पालमपुर में हुआ था। 1996 में सीडीएस का एग्जाम पास करके भारतीय सेना में शामिल हुए थे और मई 1999 में जब कारगिल युद्ध शुरू हुआ तो विक्रम बत्रा ने 19 जून 1999 को पॉइंट 5140 पर कब्जा किया तथा उसके बाद विक्रम बत्रा की चर्चा न केवल भारतीय सेना में बल्कि पाकिस्तानी सेना में भी होने लग गई थी। उनके 'दिल मांगे मोर' के युद्धघोष तथा रण कौशल को देखते हुए उन्हें शेरशाह के कोडनेम से प्रसिद्धि मिलने लगी। इसी युद्ध के दौरान 7 जुलाई को कारगिल की एक और चोटी पॉइंट 4875 को पाकिस्तान सैनिकों से छुड़वाने के लिए कैप्टन बत्रा ने अपना सर्वोच्च न्योछावर करते हुए वीरगति प्राप्त की। आज पॉइंट 4875 को विक्रम बत्रा टॉप के नाम से जाना जाता है। युद्ध की वैसे तो पाकिस्तान ने शुरुआत 3 मई 1999 को ही कर दी थी जब उसने कारगिल की ऊंची पहाडि़यों पर 5000 सैनिकों के साथ घुसपैठ कर कब्जा जमा लिया था। इस बात की जानकारी जब भारतीय सेना को एक चरवाहे के द्वारा मिली तो 5 मई को भारतीय सेना की पेट्रोलिंग टीम जानकारी लेने कारगिल पहुंची तो पाकिस्तानी सेना ने उन्हें पकड़ लिया और उनमें से पांच की हत्या कर दी। 9 मई को पाकिस्तानियों की गोलीबारी से भारतीय सेना का कारगिल में मौजूद गोला बारूद का स्टोर नष्ट हो गया और 10 मई को पहली बार लद्दाख का प्रवेश द्वार यानी द्रास, काकसर और मश्कोह सेक्टर में पाकिस्तानी घुसपैठियों को देखा गया।
कर्नल (रि.) मनीष
स्वतंत्र लेखक

सोर्स- divyahimachal


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