सम्पादकीय

मीथेन उत्सर्जन को एलपीजी पर टैक्स बढ़े

Rani Sahu
22 Nov 2021 6:45 PM GMT
मीथेन उत्सर्जन को एलपीजी पर टैक्स बढ़े
x
सभी जीवित पदार्थों के जीवन में कार्बन तथा हाईड्रोजन तत्व रहते हैं

सभी जीवित पदार्थों के जीवन में कार्बन तथा हाईड्रोजन तत्व रहते हैं और उनकी मृत्यु के बाद ये आर्गेनिक पदार्थ सड़ने लगते हैं। यदि आसपास ऑक्सीजन उपलब्ध हुई तो शरीर का कार्बन, कार्बन डाईआक्साइड (सीओ-2) बनकर उत्सर्जित होता है और पदार्थ में हाईड्रोजन, पानी (एच2ओ) बनकर समाप्त हो जाता है। लेकिन यदि सड़ते समय आसपास ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं हुई तो यही कार्बन और हाईड्रोजन आपस में मिलकर मीथेन गैस (सीएच4) बनकर उत्सर्जित होती है। कार्बन डाईआक्साइड की तुलना में मीथेन गैस से धरती का तापमान अधिक बढ़ता है। धरती से जो गर्मी की किरणें बाहर निकलती हैं, यदि वे सीधे अंतरिक्ष में पहुंच सकें तो वे धरती के वायुमंडल से निकल जाती हैं और धरती का तापमान नहीं बढ़ता है। इसके विपरीत यदि वायुमंडल में ये किरणें रुक जाएं तो वायुमंडल गर्म हो जाता है और तदानुसार धरती का तापमान भी बढ़ता है। जब ये किरणें वायुमंडल में जाती हैं तो वायु में उपलब्ध अणुओं के बीच ये हलचल पैदा करती हैं। जैसे कार्बन डाईआक्साइड के कार्बन और ऑक्सीजन परमाणुओं के बीच में हलचल पैदा होती है।

इससे उस अणु का तापमान बढ़ जाता है और वह गर्मी हमारे वायुमंडल में रुक जाती है और धरती का तापमान बढ़ाने लगती है। मीथेन के परमाणुओं में हलचल अधिक होती है, इसलिए कार्बन डाईआक्साइड की तुलना में मीथेन गैस से धरती का तापमान 28 से 80 गुणा अधिक बढ़ता है। इसलिए हाल में सम्पन्न हुए कॉप 26 सम्मेलन में लगभग 100 देशों के बीच सहमति बनी है कि वे मीथेन के उत्सर्जन को कम करेंगे। धान के खेतों से मीथेन भारी मात्रा में उत्सर्जित होती है। जब खेतों में लबालब पानी लंबे समय तक भरा रहता है तो भूमि की सतह पर पत्तियां और भूमि के अंदर के कीड़े सड़ने लगते हैं और सड़कर पहले पानी में उपलब्ध ऑक्सीजन को सोख लेते हैं। उसके बाद उनकी सड़न से मीथेन बनने लगती है। पशुओं के पाचन क्रिया में भी उनके पेट से मीथेन गैस उत्सर्जित होती है। मांसाहारी भोजन के उत्पादन में मीथेन गैस जादा उत्पन्न होती है क्योंकि उसमें पशुओं को मारकर ही मांस पैदा किया जाता है। पशुओं के मल-मूत्र और गोबर के सड़ने से भी मीथेन गैस बनती है। बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं के तालाबों में जो पीछे से पत्तियां और मृत पशुओं के शरीर बह कर आते हैं, वे भी तालाब की तलहटी में स्थिर होकर सड़ने लगते हैं। तलहटी में उपस्थित ऑक्सीजन शीघ्र समाप्त हो जाती है और ये मीथेन उत्सर्जन करने लगते हैं। नेशनल इन्वायरनमेंट इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टिट्यूट नागपुर ने पाया है कि टिहरी बांध से मीथेन उत्सर्जित हो रही है। मीथेन के इस उत्सर्जन को रोकते हुए आर्थिक विकास को बढ़ाना संभव है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने कहा है कि मीथेन गैस के उत्सर्जन को कम करते हुए आर्थिक विकास को बढ़ाना संभव है। जैसे धान के खेत में यदि पानी लगातार न भरा जाए और कुछ दिन पानी भरने के बाद उसे 2-4 दिन के लिए निकाल दिया जाए और पुनः पानी भरा जाए तो नए पानी में ऑक्सीजन उपलब्ध हो जाती है और मीथेन का उत्सर्जन समाप्त हो जाता है।
धान की उपज भी कम नहीं होती है, अतः रुक-रुक कर पानी भरने से पानी की बचत और मीथेन उत्सर्जन की कमी दोनों हो सकती है। पशुओं के संबंध में पाया गया कि गाय की तुलना में बैल अधिक मीथेन उत्सर्जित करते हैं। अध्ययन किया जाए तो हम निश्चित रूप से पाएंगे कि गाय और भैंस की कुछ प्रजातियां मीथेन ज्यादा उत्सर्जित करती हैं और कुछ कम। इसलिए यदि हम कम मीथेन और अधिक दूध देने वाली प्रजातियों की गाय और भैंस को बढ़ाएं तो मीथेन उत्सर्जन कम कर सकते हैं। यदि हम शाकाहारी भोजन अपनाएं तो मीथेन उत्सर्जन सहज ही कम हो जाएगा क्योंकि पशुओं के मांस के उत्पादन के समय पशुओं द्वारा पाचन से अथवा उनके गोबर के सड़ने से जो मीथेन उत्सर्जित होती है, वह समाप्त हो जाएगी। यदि हम गोबर से गैस बनाएं तो उत्सर्जित मीथेन से चूल्हा और बत्ती जला सकते हैं। तब वह मीथेन कार्बन डाईआक्साइड के रूप में उत्सर्जित होगी और हमारे पर्यावरण को कम हानि पहुंचाएगी। जल विद्युत के स्थान पर यदि हम सोलर ऊर्जा को बढ़ावा दें जैसा कि सरकार कर भी रही है तो जल विद्युत परियोजनाओं के तालाबों से उत्सर्जित होने वाली मीथेन पर रोक लगाई जा सकती है। इन आर्थिक दृष्टि से लाभप्रद सुझावों को लागू करने के लिए सरकार को अपनी टैक्स पालिसी में सुधार करना होगा। धान के खेतों से उत्सर्जन कम करने के लिए पानी का मूल्य सिंचित क्षेत्र के स्थान पर आयतन के हिसाब से वसूल करना होगा। तब किसान के लिए लाभप्रद हो जाएगा कि पानी को रोक-रोक कर सिंचाई करे। पशुओं की प्रजातियों पर रिसर्च के लिए सरकार को निवेश करना होगा। शाकाहारी भोजन को प्रोत्साहन देने के लिए मांस के उत्पादन में उपयोग किए गए कच्चे माल पर भारी टैक्स लगाएं तो मांस महंगा होगा, तो लोग शाकाहारी भोजन की ओर बढ़ेंगे। एलपीजी का दाम बढ़ाएं तो किसान के लिए गोबर गैस को बनाना लाभप्रद हो जाएगा। पूर्व में एलपीजी के उपलब्ध न होने से किसान गोबर गैस बनाते थे।
लेकिन सस्ती एलपीजी उपलब्ध होने से अब गोबर गैस का उत्पादन शून्यप्राय हो गया है। जल विद्युत पर भी इसी प्रकार मीथेन टैक्स लगाना चाहिए। इन सब टैक्स सुधारों से निश्चित रूप से देश के आम आदमी पर भार पड़ेगा, लेकिन यदि वसूल किए गए टैक्स को सरकारी खपत के लिए उपयोग करने के स्थान पर जनता को नगद वितरण कर दिया जाए तो यह भारी नहीं पड़ेगा। जैसे मान लीजिए देश में 40 करोड़ लोग हैं जो चावल खाते हैं। यदि हम आयतन के हिसाब से पानी बेचें तो इन पर मान लीजिए 25 रुपया प्रति वर्ष का भार पड़ता है और सरकार को एक हजार करोड़ रुपए का राजस्व मिलता है। यदि इस एक हजार करोड़ रुपए को देश के 130 करोड़ नागरिकों में 7 रुपए प्रति व्यक्ति के हिसाब से वितरित कर दिया जाए तो समग्र जनता पर तनिक भी भार नहीं पड़ेगा। अंतर सिर्फ यह होगा कि जो जनता चावल खाती है, उसे हानि होगी। उसे 25 रुपए का टैक्स देना होगा, जबकि मिलेंगे 7 रुपए। जो जनता चावल नहीं खाती है उसे लाभ होगा, उसे अतिरिक्त टैक्स नहीं देना होगा और मुफ्त में 7 रुपए मिलेंगे। इस प्रकार हम बिना आर्थिक विकास की हानि के मीथेन उत्सर्जन कम कर सकते हैं। सरकार ने कॉप 26 में मीथेन समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किया है, फिर भी उपरोक्त नीतियों को तो लागू करना ही चाहिए।
भरत झुनझुनवाला
आर्थिक विश्लेषक
ई-मेलः [email protected]
Next Story