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- मोदी के सान्निध्य में
हिमाचल का देश के प्रधानमंत्रियों से लगाव हमेशा चिन्हित हुआ और आज जिस मुकाम पर यह पहाड़ी प्रदेश खड़ा है, वहां देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से नरेंद्र मोदी तक प्रश्रय की परंपरा दिखाई देती है। इस दौरान प्रदेश की जनता बतौर मतदाता इतनी सजग व संतुलित हो चुकी है कि हर बार चुनाव का गणित केंद्र की सरकार से तालमेल करता है। प्रदेश ने भावुक मुद्दों या धार्मिक पहचान को खारिज करते हुए केंद्र की हस्तियों को सलाम किया, लेकिन हिमाचल की अपनी सत्ता को सदा तराजू पर रखा। इसलिए नेता बड़े बनाए और बड़े नेताओं को झुकाया भी। तीसरे मोर्चे के गणित में यह प्रदेश आज तक न उलझा और न ही राजनीति को असमंजस में फंसाया। बहरहाल कुछ महीनों बाद पुनः विधानसभा चुनाव की पारखी निगाह में हिमाचल करवटें बदल रहा है। ऐसे में एक ओर राजनीतिक इतिहास और दूसरी ओर नए सियासी सान्निध्य की तलाश जारी है। यह सान्निध्य वादों की किश्ती पर नए पतवार की खोज में कितना संतुष्ट होगा या देश की हवाओं में बह जाएगा, कोई अनुमान नहीं लगा सकता, फिर भी मुकुट पहनकर आ रहा चुनाव इस बार 'दिल से लगाने' की राजनीति देखेगा।
क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचल