सम्पादकीय

चिकित्सा जगत में अविश्वास अपनी जगह काम कर ही रहा है, हिंसा और उतर आई

Gulabi Jagat
18 May 2022 9:09 AM GMT
चिकित्सा जगत में अविश्वास अपनी जगह काम कर ही रहा है, हिंसा और उतर आई
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सरकारी सेवाओं का लाभ या तो बहुत मजबूरी में उठाया जाता है
पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम:
'हमारे देश की स्वास्थ्य की दुनिया में अब एक नया परिवर्तन आएगा, जो होगा अविश्वास का। यह अस्वास्थ्य से भी ज्यादा खतरनाक स्थिति होगी।' ऐसा पिछले दिनों एक डॉक्टर ने मुझसे कहा। उनका कहना था आज भी देश में 75 प्रतिशत स्वास्थ्य सेवाएं निजी क्षेत्र से चल रही हैं। सरकारी सेवाओं का लाभ या तो बहुत मजबूरी में उठाया जाता है, या लालच के कारण। जरा सोचिए एक जिम्मेदार डॉक्टर ऐसा क्यों कह रहे हैं?
चूंकि अवमूल्यन हर क्षेत्र में हुआ, तो चिकित्सा क्षेत्र में भी अविश्वास बढ़ा। लिहाजा डॉक्टरों के साथ अभद्रता व मार-पीट की घटनाएं बढ़ती गईं। अविश्वास अपनी जगह काम कर ही रहा है, हिंसा और उतर आई। चिकित्सा जगत के इतिहास पुरुष कहे जाते हैं जीवक।
शास्त्रों में इनके लिए लिखा है कि अवंती के राजा चंड प्रद्योत जब बीमार हुए तो जीवक ने कड़वी दवा दी। इस पर राजा को इतना क्रोध आया कि जीवक को भागना पड़ा। इन्हीं जीवक के साथ मगध के सम्राट ने भी ऐसा ही व्यवहार किया था। इसका मतलब यह हुआ कि चिकित्सकों के साथ अविश्वास और हिंसा की घटनाएं पहले भी होती रही हैं।
डॉक्टर के प्रति विश्वास का सबसे बड़ा उदाहरण प्रस्तुत किया था श्रीराम ने, जब मूर्छित लक्ष्मण के उपचार के लिए रावण के ही वैद्य (सुषेण) को बुलाया गया। ऐसा ही विश्वास, वही भरोसा आज भी जरूरी है।
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