सम्पादकीय

'बाबा' की सरकार में 'बाबा साहब' का मिशन पूरा करने की तेज होती सियासी जद्दोजहद

Gulabi Jagat
15 April 2022 7:19 AM GMT
बाबा की सरकार में बाबा साहब का मिशन पूरा करने की तेज होती सियासी जद्दोजहद
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बाबा साहब भीमराव आंबेडकर की जयंती
रंजीव।
बाबा साहब भीमराव आंबेडकर (Bhimrao Ambedkar) की जयंती के अवसर पर फिर एक बार दलितों और वंचितों को शोषण से मुक्त कराने की बातें सियासी मंचों पर गूंजी. हिंदी पट्टी में जब बीएसपी के संस्थापक कांशीराम (Kanshi Ram) दलितों और शोषितों को उनका हक दिलाने के लिए बामसेफ और डीएस-4 जैसे संगठनों को मजबूत करने के लिए यात्राएं कर रहे थे, तब बहुजन मूवमेंट के लोग नारा लगाते थे 'बाबा तेरा मिशन अधूरा, कांशीराम करेंगे पूरा.' हालांकि कांशीराम के प्रयासों से बीएसपी (BSP) अपने शीर्ष पर भी पहुंची और मायावती को कई बार मुख्यमंत्री बनने का मौका भी मिला, लेकिन हाल में हुए उत्तर प्रदेश के चुनाव में बीएसपी का जो हश्र हुआ, उससे यह सवाल और मुखर होकर उठा है कि क्या बाबा साहब का मिशन पूरा हो गया? और यदि यह अधूरा है और कांशीराम भी अब नहीं हैं, तो यह पूरा कैसे होगा?
यह संयोग ही है कि जिस कालखंड में हिंदी पट्टी के राजनीतिक रूप से सबसे महत्वपूर्ण प्रांत उत्तर प्रदेश में दलित आंदोलन और दलितों की राजनीति मझधार में फंसी हुई लग रही है और यह सवाल उठ रहे हैं कि बाबा के मिशन का क्या होगा, तो उसी दौर में उत्तर प्रदेश की कमान योगी आदित्यनाथ ने संभाल रखी है, जिन्हें लोग आम बोलचाल में 'बाबा की सरकार' कहने लगे हैं. दरअसल यूपी में बाबा की सरकार के दोबारा बनने में यूं तो कई अहम कारण रहे, लेकिन उनमें एक बड़ा कारण यह भी माना जाता है कि दलितों के एक बड़े वर्ग का बीएसपी से जो मोहभंग हुआ तो उसने बीजेपी को अपना वोट दिया. यही कारण है कि बीएसपी के वोट प्रतिशत में 2022 के चुनाव में भारी कमी देखी गई और ऐसा माना जाता है कि उसका कोर वोटबैंक भी टूटा.
दलितों को साधने में लगी हैं एसपी और बीजेपी
विधानसभा चुनाव के नतीजों से उत्साहित बीजेपी अब दलितों को और जोर शोर से साधने में जुट गई है. बाबा साहब की जयंती पर सामाजिक समरसता दिवस मनाते हुए सत्तारूढ़ बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में कई कार्यक्रम किए, जिनमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर राज्य सरकार के मंत्री, पार्टी के सांसद, विधायक और प्रमुख नेता अलग-अलग जिलों और मंडलों में शामिल हुए. बीजेपी का लक्ष्य है कि 2024 के लोकसभा चुनाव तक समाज के इस तबके में और पैठ बनाई जाए और दलितों को भगवा खेमे की तरफ लाकर बाबा के मिशन को पूरा किया जाए.
वैसे उत्तर प्रदेश में बाबा साहब के मिशन की विरासत को थामने और दलितों को अपनी ओर आकर्षित करने में समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं. विधानसभा चुनाव में एसपी ने समाजवादियों और आंबेडकरवादियों के एकजुट होने और बीजेपी को हराने की लगातार अपील भी की थी. चुनाव में भले ही कामयाबी ना मिली हो, लेकिन बीएसपी के वोट बैंक को एसपी से जोड़ने की कोई कसर अखिलेश अभी भी नहीं छोड़ रहे हैं.
दरअसल विधानसभा चुनाव से पहले बीएसपी के कई कद्दावर नेता अपनी पार्टी छोड़कर एसपी में शामिल हुए थे. उससे पहले 2019 का लोकसभा चुनाव भी एसपी और बीएसपी ने मिलकर लड़ा था. लिहाजा समाजवादियों को यह भरोसा है कि यदि किन्हीं कारणों से बीएसपी अब दलितों की प्रतिनिधि पार्टी नहीं रही, तो उनके लिए स्वाभाविक विकल्प समाजवादी ही हैं. बाबा साहब के मिशन को पूरा करने में समाजवादियों के लगे रहने का पूरा संकेत देते हुए आंबेडकर जयंती के अवसर पर अखिलेश यादव ने कहा भी कि नागरिकों को संविधान के माध्यम से समानता का अधिकार व समाज में समता का भाव लाने का जो आंदोलन बाबा साहब ने शुरू किया था, उसे आज और अधिक तीव्र किए जाने की जो जरूरत है, उसके लिए हम सदैव प्रतिबद्ध एवं सक्रिय रहेंगे.
बीएसपी इतनी आसानी से छोड़ देगी अपना वोटबैंक?
तो क्या बामसेफ, डीएस-4 और फिर 1984 में बीएसपी की स्थापना कर कांशीराम ने बाबा साहब के मिशन को पूरा करने का जो बीड़ा उठाया था और दलितों से सत्ता की मास्टर चाबी हासिल करने का आह्वान किया था, उसका दारोमदार अब बीएसपी नहीं बल्कि बीजेपी या एसपी के पास चला जाएगा? क्या बीएसपी और कमजोर होते हुए दलित राजनीति के केंद्र से हट जाएगी? ऐसा लगता नहीं है, क्योंकि विधानसभा चुनाव के बाद से ही मायावती बयानों के जरिए खुद को लगातार सक्रिय रखने की कोशिश कर रही हैं और यह माना जा रहा है कि बहुजन की बजाय सर्वजन की उनकी राजनीति के मन मुताबिक नतीजे ना मिलने के कारण बीएसपी वापस बहुजन की राजनीति को ही प्राथमिकता देगी. इसमें पार्टी कितना कामयाब होगी, यह वक्त बताएगा. लेकिन मायावती ने आंबेडकर जयंती के अवसर पर फिर एक बार अपने संबोधन में साफ किया कि बाबा साहब की विरासत को बीएसपी अपने हाथों से इतनी आसानी से नहीं निकलने देगी.
उन्होंने कहा कि जातिवादी मानसिकता से ग्रस्त विरोधी पार्टियों व इनकी सरकारें बाबा साहब डॉ. आंबेडकर के संघर्षों व संदेशों की कितनी ही अवहेलना करके उनके अनुयाइयों पर शोषण, अन्याय-अत्याचार व द्वेष आदि जारी रखें, किन्तु उनके आत्म-सम्मान व स्वाभिमान का बीएसपी मूवमेन्ट रुकने व झुकने वाला नहीं. साथ ही उन्होंने बाबा साहब के आत्म सम्मान एवं स्वाभिमान मूवमेंट पर लगातार दृढ़ संकल्प से काम करते हुए सत्ता की मास्टर चाबी हासिल कर शासक वर्ग बनते हुए अपना उद्धार खुद करते हुए बाबा साहब का सपना साकार करने की अपील भी की.
बाबा साहब के अधूरे मिशन को पूरा करने का झंडाबरदार बनने की यह जद्दोजहद यूं ही नहीं है. उत्तर प्रदेश में करीब 20 फीसदी दलित वोटर हैं और इनमें भी जाटवों की संख्या अपेक्षाकृत ज्यादा है. माना जा रहा है कि बीएसपी के वोट बैंक में जो गिरावट हुई है उसका कारण गैर जाटव वोटों का बड़ा हिस्सा बीजेपी और एसपी में चले जाना रहा. राजनीतिक विश्लेषकों के एक वर्ग का मानना है कि ना केवल गैर जाटव बल्कि बीएसपी के जाटव वोट बैंक में भी टूट हुई है. 2022 के चुनाव में बीजेपी और एसपी दोनों के वोट प्रतिशत में बढ़ोतरी से ऐसे संकेत मिल रहे हैं, इन दोनों दलों की ताकत में बढ़ोतरी बीएसपी के कमजोर होने की कीमत पर हुई है. लिहाजा दलितों को अपने पाले में और ज्यादा लाने के लिए बीजेपी और एसपी अपना प्रयास और तेज कर रहे हैं, जबकि मायावती अपने वोट बैंक को समेटने और बहुजन मूवमेंट को फिर केंद्र बिंदु बनाने की कोशिश कर रही हैं. 2024 के चुनाव के पहले बाबा के अधूरे मिशन को पूरा करने की यह रस्साकशी इन तीनों प्रमुख दलों में और तेज होगी यह तय है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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