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- मौजूदा दौर में 'मजदूर...
1886 की एक मई को शुरू हुई अमरीकी मजदूरों की राष्ट्रीय हड़ताल के दौरान चार मई को शिकागो के 'हे मार्केट' के चौराहे पर काम का समय 8 घंटे किए जाने की मांग को लेकर हुई मजदूरों की रैली, उसके साथ हुए दमन और साजिशन उनके नेताओं को फांसी चढ़वा देने की घटनाओं ने मजदूरों के अंतरराष्ट्रीय दिन 'मजदूर दिवस' को जन्म दिया था। एक मई दुनिया की ऐसी अकेली तारीख है जो पूरी दुनिया को जोड़ती है, सारे राष्ट्रों और उनकी राष्ट्रीयताओं के ऊपर जाकर उन्हें एक साझी दुनिया के रूप में एकाकार करती है। मई दिवस दुनिया का एकमात्र दिन है जिसे सारी मानवता त्योहार की तरह मनाती है। इस दिन सभी महाद्वीपों में, दुनिया की हर भाषा, हर बोली में लगभग एक जैसे नारे लगते हैं। दुनिया भर में मई दिवस मनाए जाने की शुरुआत 1889 से हुई थी। इस तरह महज 133 साल में मई दिवस का यह दर्जा हासिल कर लेना मानव इतिहास की अनोखी मिसाल है। कोई भी दिन, विशेषकर मजदूरों से जुड़ा दिन सहज ही इतना लोकप्रिय नहीं होता। सच कितना भी खुल्लमखुल्ला और प्रमाणित क्यों न हो, वह अपने आप लोगों के बीच नहीं पहुंचता। खासतौर से तब, जब सत्ता प्रतिष्ठान के सारे अंग- पुलिस, न्यायपालिका और अखबार पूंजी के चाकरों की तरह काम कर रहे हों। अंतत: वही विचार जिंदा रहते हैं जिनके लिए लोग मरने को तैयार हों। मई दिवस इसी जिंदा विचार का नाम है। मई दिवस संघर्षों के हासिल के लेखे-जोखे का दिन है। इसलिए बजाय इस दिन की महत्ता और ऐतिहासिकता पर ज्यादा विस्तार से चर्चा करने के, आज की दुनिया में मेहनतकशों के संघर्षों की दशा और दिशा पर नजर डाली जाए। हाल के दौर में दुनिया भर के सभी देशों में जितनी अभूतपूर्व जनप्रतिरोध की कार्यवाहियां, हड़तालें हुई हैं उतनी पिछले कई दशकों में नहीं हुईं। भारत के मेहनतकशों ने इसी 28-29 मार्च को दो दिन की शानदार हड़ताल की, जो नवउदार नीतियों के विरुद्ध हुई देशव्यापी हड़तालों की शृंखला में 21वीं थी। पिछली चार हड़तालों में भागीदारों की संख्या 15, 18, 25 करोड़ से होते हुए इस बार 30 करोड़ तक जा पहुंची।