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- पाबंदियां भीड़ पर
चुनाव नहीं टलने थे, लिहाजा निर्वाचन आयोग ने नहीं टाले और चुनाव कराए जाने के स्पष्ट संकेत दिए हैं। अब उच्च न्यायालय भी क्या कर लेगा? उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने तो आयोग को नोटिस तक भेज दिया है। वकील बहस करते रहेंगे। सरकार हलफनामा दाखिल कर देगी। अदालत किसी आदेश की पराकाष्ठा तक बहुत कम ही पहुंचती हैं। उप्र में चुनाव होंगे, तो फिर उत्तराखंड, पंजाब, गोवा, मणिपुर में क्यों नहीं होंगे? चुनाव होंगे, तो रैलियां भी सजेंगी, जिनमें भीड़ का कोई निश्चित आकार नहीं होगा। मास्क पहनना और आपसी दूरी के प्रोटोकॉल तो 'मज़ाक' बनकर रह गए हैं। देश को आश्वस्त किया जा रहा है कि रैलियों में भीड़ का आकार सीमित किया जाएगा। सेनेटाइज़र और मास्क मुफ़्त ही मुहैया कराए जाएंगे। जब देश के नेता ही मास्क नहीं पहनते, तो भीड़ क्यों पहनेगी? क्या कभी देखा है कि भीड़ ने चुनाव आयोग के निर्देशों का पालन किया है? चुनाव आयोग तो सरकार और नेताओं की 'गाय' है! गाय तो सींग भी नहीं मार सकती। यह गाय दंतहीन भी है। सवाल है कि अभी चुनाव आयोग के पास कौन-सी शक्तियां हैं, जिनके तहत वह राजनीतिक दलों को नियंत्रित और संचालित कर सके?
divyahimachal