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बहुत से लोग इसी कोशिश में लगे रहते हैं कि सदियों जहां में सिर्फ हमारे ही चर्चे हों
पं. विजयशंकर मेहता। बहुत से लोग इसी कोशिश में लगे रहते हैं कि सदियों जहां में सिर्फ हमारे ही चर्चे हों। यही अहंकार है। अहंकार जीवन की मिठास को चूस खाता है। जैसे कहते हैं संगीत की खासियत उसकी मिठास है, शोर तो उसका लिबास है, वैसे ही जीवन मूल रूप से मीठा है, प्रेमपूर्ण है। गड़बड़ उसके साथ हम करते हैं अहंकार पालकर। जब अहंकार आता है तो मनुष्य एक ऐसा आर्केस्ट्रेशन लेकर चलता है कि बस, सब उसे ही देखें, वह जो कहे, सब मानें। यहीं से जीवन का स्वाद बिगड़ने लगता है।
कोई योग्य व्यक्ति अहंकार पालता है तो उसका सबसे बड़ा नुकसान यह होता है कि वह अपनी योग्यता का फायदा दूसरों को नहीं पहुंचा पाता। रामजी ने अपनी योग्यता से वानरों को लाभ पहुंचाया। श्रीकृष्ण ने यही काम अर्जुन के साथ किया था। योग्य लोगों को अहंकार से दूर होना चाहिए। अहंकार का ही रूपांतरण क्रोध है।
इन दिनों अकारण आवेश तो जैसे लोगों का स्वभाव बन गया है। अहंकार किसी ज्ञान से, प्रवचन से या किसी के समझाने से नहीं गिरेगा। इसे गिराने का सबसे सरल तरीका है जीवन में गुरु का प्रवेश। जब हम किसी गुरु से जुड़ते हैं तो वह पहला काम यह करता है कि अहंकार गिराकर हमें निरहंकारी बना देता है। एक निरहंकारी व्यक्ति बड़ी आसानी से अपनी योग्यता तराश भी लेता है, लोगों में बांट भी देता है..।
Rani Sahu
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