सम्पादकीय

पाकिस्तान में धर्मोन्माद

Triveni
7 Aug 2021 1:00 AM GMT
पाकिस्तान में धर्मोन्माद
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पाकिस्तान पंजाब प्रान्त के लाहौर के निकट जिले के ‘भोंग’ कस्बे में सोशल मीडिया पर डाली गई एक पोस्ट से भड़क कर जिस तरह वहां स्थित हिन्दू धर्मावलम्बियों के गणेश मन्दिर पर हमला किया गया उससे यही सबब निकलता है

आदित्य चोपड़ा| पाकिस्तान पंजाब प्रान्त के लाहौर के निकट जिले के 'भोंग' कस्बे में सोशल मीडिया पर डाली गई एक पोस्ट से भड़क कर जिस तरह वहां स्थित हिन्दू धर्मावलम्बियों के गणेश मन्दिर पर हमला किया गया उससे यही सबब निकलता है कि सभी जगह कट्टरपंथियों की रणनीति एक जैसी रहती है कि धार्मिक उन्माद पैदा करके लोगों को आपस में लड़ाया जाये और अपनी धार्मिक सियासत को जिन्दा रखा जाये। पाकिस्तान का जन्म ही मजहब की बुनियाद पर हुआ है और इस तरह हुआ है कि इसकी बुनियाद ही लाखों लोगों की लाशों पर खड़ी की गईं इसलिए इस देश में अल्संख्यक हिन्दुओं के हितों को वहां के कट्टरपंथी आसानी से रौंद देते हैं मगर खुदा का शुक्र है कि अब इस इस्लामी देश के हुक्मरानों को अक्ल आ रही है जिसकी वजह से इस देश के प्रधानमन्त्री इमरान खान ने इस घटना के बाद ट्वीट करके घोषणा की कि मन्दिर पर हमला करने वालों की छानबीन की जा रही है औऱ हिन्दुओं के धर्म स्थान की सुरक्षा के लिए पुलिस के साथ ही अर्ध सैनिक बल भी तैनात कर दिये गये हैं । मगर इमरान खान ने भारत के कड़े विरोध को देखते हुए ही यह कदम उठाया है क्योंकि विदेश मन्त्रालय ने पाक उच्चायुक्त से इस पर कड़ी आपत्ति दर्ज की है।

मगर प्रश्न इससे बहुत बड़ा है और भारत व पाकिस्तान की अवाम से जुड़ा हुआ है। पाकिस्तान में अब भी हजारों की तादाद में हिन्दू मन्दिर और धर्म स्थान हैं। इतना ही नहीं हिन्दू पहचान से जुड़े हजारों स्थान भी हैं। इनमें बहुत से एेतिहासिक महत्व के स्थान भी शामिल हैं । लाहौर शहर के भीतर ही महाराजा रणजीत सिंह के किले से लेकर उनके सेनापति रहे सुरजन सिंह की हवेली भी है जिसकी देखरेख करने की मांग स्थानीय लोग ही सरकार से कर रहे हैं। इसी प्रकार भारत में मुस्लिम धर्म स्थानों की कोई गिनती नहीं हैं । इनमें से बहुत से तो एेसे स्थान भी हैं जहां हिन्दू व मुसलमान दोनों ही माथा टेकने जाते हैं। पाकिस्तान का पंजाब व सिन्ध प्रान्त भी पीर-फकीरों की जियारत करने के लिए जाना जाता था जिनमें हिन्दू व मुसलमान दोनों ही जाते थे। लाहौर में ही शहीदे आजम भगत सिंह के नाम पर एक चौक का नामकरण करने की मुहीम भी पाकिस्तान के लोगों ने चलाई थी। इस्लामाबाद से कुछ दूरी पर ही आचार्य चाणक्य के तक्षशिला विश्वविद्यालय के अवशेष हैं जिनका संरक्षण पाकिस्तान का पुरातत्व विभाग करता है। इसी प्रकार भारत में मुगलिया काल की इमारतों से लेकर अन्य मुस्लिम शासकों द्वारा बनाई गई इमारतें राष्ट्रीय धरोहर की श्रेणी में आती हैं। कहने का मतलब यह है कि दोनों देशों की सांस्कृतिक विरासत सांझा है। फिर भी 1947 में मुहम्मद अली जिन्ना ने पंजाबी को पंजाबी से और बंगाली से बंगाली को लड़वा कर अंग्रेजों के साथ संगीन साजिश करके पाकिस्तान बनवा लिया और इस विरासत को दो टुकड़ों में बांटने की कोशिश की मगर विरासत कभी नहीं बंटा करती। इसलिए भारत के हिन्दुओं और पाकिस्तान के मुसलमानों को यह समझने की जरूरत है कि वे दो कौम नहीं बल्कि एक ही पूर्वजों की औलाद हैं। चाहे पाकिस्तानी पंजाब के मुसलमान हों या भारतीय पाकिस्तान के हिन्दू-सिख दोनों की संस्कृति एक समान है।
इसी प्रकार बंगाली हिन्दू और मुसलमानों की सांस्कृतिक एकता एक कौम होने का प्रमाण देती है। मगर बांग्लादेश अब एक स्वतन्त्र राष्ट्र है अतः उसके साथ भारत के सम्बन्ध मित्रवत हैं और दोनों देशों की सीमाओं पर शान्ति और भाईचारे का माहौल सर्वदा रहता है। परन्तु जहां तक पाकिस्तान का सवाल है तो वहां की अन्दरूनी सियासत में हिन्दू विरोध का जहर भारत विरोध के नाम पर सियासत दां घोलते रहते हैं। इसकी वजह भी साफ है कि इस विरोध के नाम पर ही वह पाकिस्तान के वजूद को कायम रखना चाहते हैं वरना पाकिस्तान के अलग देश होने का कोई औचित्य नहीं है। परन्तु भारत ने आजादी के बाद से ही पाकिस्तान और अपने मुस्लिम नागरिकों के बीच की पहचान को अलग रखा और हमेशा कोशिश की कि धार्मिक पहचान के स्थान पर राष्ट्रीय भारतीय पहचान इस प्रकार काबिज रहे कि हर हिन्दू-मुसलमान सबसे पहले भारतीय हो। इसकी वजह एक ही थी कि भारत ने स्वतन्त्रता के बाद खुद को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया जिसमें हर नागरिक के अधिकार बराबर थे। इसके साथ ही भारत के मुसलमानों ने भी कभी किसी मुसलमान को अपना रहनुमा नहीं माना और हमेशा हिन्दू राजनीतिज्ञों की रहनुमाई को ही अपने लिए श्रेष्ठ माना।
भारत की यही विशेषता उसकी विशिष्ट पहचान बनी और पूरी दुनिया ने इसके प्रजातन्त्र के सामने अपना मस्तक झुकाया। लेकिन हमें ध्यान रखना चाहिए कि पाकिस्तान के एक इस्लामी राष्ट्र होने की वजह से और वहां के फौजी हुकमरानों का ईमान हिन्दू विरोधी होने की वजह से इस मुल्क मंे कट्टरपंथी तत्वों को खुल कर खेलने की छूट मिलती रही है। ये तत्व मजहब के नाम पर एेसे कारनामे करवाते हैं जिनका असर हिन्दोस्तान पर भी पड़े मगर भारत के लोग जानते हैं कि पाकिस्तान में अब केवल दो प्रतिशत हिन्दू ही बचे हैं अतः उनके हितों की रक्षार्थ वे अपने कार्यों को संयमित रखते हैं और अल्पसंख्यक भाइयों के साथ सद्भाव व प्रेम का व्यवहार रखते हैं। जो अपवाद हमें देखने को मिल जाते हैं उनके विरोध में भी सबसे पहले बहुसंख्यक समाज के लोग ही आकर खड़े होते हैं। सवाल उठना वाजिब है कि एेसा पाकिस्तान में भी होना चाहिए तो अब वहां भी एेसी कुछ खुदाई खिदमतगार तंजीमें खड़ी हो चुकी हैं जो अल्पसंख्यकों के हितों की आवाज उठाने का काम कर रही हैं। मगर इस देश के कठमुल्लापंथी तत्व अपनी हरकतों से बाज तब तक नहीं आयेंगे जब तक इस देश में फौज की समानान्तर हुकूमत रहेगी क्योंकि यह फौज ही है जो पाकिस्तान में आतंकवादी तैयार करती है।


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