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- हुड़दंग मेरा जन्मसिद्ध...
ये सरकार जी! समझते क्यों नहीं? हुड़दंग के बिना भी कोई वार त्योहार होता है क्या? अपने यहां सड़क से लेकर संसद तक कुछ विद्धमान है तो बस, हुड़दंग ही। हमारा जीवन पैदा होने से लेकर मरने तक हुड़दंग की ही तो अमिट गाथा है। जिस वार त्योहार में हुड़दंग की संभावनाएं न हों उसे मनाते हुए लगता है जैसे वह वार त्योहार बेकार आया है। जिस वार त्योहार के अवसर पर जमकर तनकर हुड़दंग न हो, वह काहे का वार त्योहार। हमारे वार त्योहार हमें शांति भाईचारे का नहीं, जबरदस्त हुड़दंग का संदेश देते हैं। मित्रो! अब कबूतर भी शांत प्रिय नहीं रहे। रहे होंगे जब वे शांतिप्रिय रहे होंगे। शांति से अब यहां बात बनती भी नहीं। जो चौबीसों घंटे शांति शांति का शोर मचाए रहते हैं, वे भी अच्छे बुरे वक्त के लिए आस्तीन में बंदूक छिपाए रखते हैं। क्या पता, भैयाजी को शांति के कंधे पर रख कब जैसे बंदूक चलानी पड़ जाए? बिन बदूंक शांति वार्ता नहीं हो सकती। शांति वार्ता के लिए वार्ता नहीं, जुबान पर बंदूक जरूरी होती है।