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चीन की ओर से एकतरफा बात सामने आई है कि उसने हॉट ्प्रिरंग क्षेत्र खाली कर दिया है
मोहन भंडारी
चीन की ओर से एकतरफा बात सामने आई है कि उसने हॉट ्प्रिरंग क्षेत्र खाली कर दिया है। पिछले दिनों भारत और चीन के कोर कमांडर के बीच 15 दौर की वार्ता हुई थी और रूस ने भी चीन को बताया है कि अभी भारत के साथ मेल-मिलाप रखो। शायद इसीलिए चीन ने यह बयान दिया है कि हॉट ्प्रिरंग से वह हट गया है, पर जब तक इस तथ्य को हम जमीन पर स्पष्ट नहीं देख पाएंगे, तब तक इंतजार करना चाहिए। सैटेलाइट के जरिये या भौतिक रूप से भी चीन के दावे को परखना चाहिए।
यह विडंबना है कि जहां दोनों तरफ 60-60 हजार की फौज तैनात है, तब आप 15वें दौर की वार्ता कर रहे थे और आगे भी करेंगे। तैनाती और तनाव के समय वार्ता का क्या औचित्य बनता है, यह सवाल आसानी से उठाया जा सकता है। लेकिन इस सवाल से ज्यादा महत्वपूर्ण है यह ध्यान रखना कि हॉट ्प्रिरंग के बाएं देपसांग का इलाका भारत के लिए ज्यादा जरूरी है, और वही लाइन ऊपर कारकोरम तक जाती है। वहां लाइन ऑफ कंट्रोल पर कोई रस्सी या तार नहीं है, खंभे भी नहीं हैं। ऐसे में, दोनों देशों के अपने-अपने दावे हैं और कई वर्षों से झगड़ा चलता आ रहा है। वर्ष 1959 में चीन ने एक लाइन बनाकर दी थी, जिसे हम नहीं मानते हैं। हमारा कहना है कि जो लाइन पहले थी, वही रहनी चाहिए। लगातार चल रही वार्ताओं में चीन भारतीय मांग को गैर-वाजिब बताता आ रहा है। अत: चीन ने अभी पीछे हटने के बारे में जो कहा है, उस पर सहसा विश्वास नहीं किया जा सकता।
हमारे लिए हॉट ्प्रिरंग के ऊपर का इलाका ज्यादा सामरिक महत्व का है। जब हमारी विशेष फौज ने पहाड़ियों पर दबाव बनाया था, तब चीन कुछ पीछे हटा था, लेकिन कुछ जगहों से पीछे हटने से बात नहीं बनेगी। पूरा इलाका ही चीन को खाली करना चाहिए।
वैसे हॉट ्प्रिरंग की कहानी पुरानी है, यह क्षेत्र अक्सर चर्चा में आता रहा है। साल 1959 में निर्माणाधीन हॉट ्प्रिरंग्स पोस्ट से एक टोही दस्ता लापता हो गया था। तब चीनी सेना ने कोंगका दर्रे पर कब्जा कर लिया था। लापता पुलिसकर्मियों की तलाश शुरू कर दी गई थी, जिन्हें शत्रुतापूर्ण चीनी सैनिकों का सामना करना पड़ा था। गोलाबारी शुरू हो गई थी। उस कार्रवाई में सीआरपीएफ के नौ जवान मौके पर शहीद हो गए थे और एक घायल जवान बाद में शहीद हुए थे। उस दिवस 21 अक्तूबर था, यह दिन पूरे भारत में अब पुलिस शहीद दिवस या पुलिस स्मृति दिवस के रूप में मनाया जाता है। गौर करने की बात है कि उसी बड़ी घटना के बाद पुलिस-अर्द्धसैनिक बलों को हटाकर चीन सीमा पर सेना को तैनात किया गया था। अब चीन अगर हॉट ्प्रिरंग छोड़ता है या पीछे हटता है, तो वह एक तरह से अपनी गलती ही सुधारेगा।
हो यह रहा है कि 1959 के बाद से ही चीनी सैनिक थोड़ा-थोड़ा करते हमारी सीमा में घुसते आ रहे हैं। जैसे अभी नेपाल के उत्तर में चीन ने दो-चार गांवों पर कब्जा कर लिया है, जिसका हल्ला नेपाली संसद में भी हुआ है, लेकिन नेपाल में कम्युनिस्ट पार्टी का असर है, इसलिए वहां की सरकार ने इस पर कुछ नहीं किया। चीनियों की फितरत है कि दूसरे देशों के इलाकों को धीरे-धीरे कुतरते रहो। अभी भी कुछ इलाकों में वे अंदर हैं। हम लतागार बोलते आ रहे हैं कि आप अनधिकृत रूप से घुस आए हैं, वापस जाइए।
अब हॉट ्प्रिरंग छोड़ने की बात करके चीन शायद यह दिखाना चाहता है कि उसका जोर शांतिपूर्ण समाधान पर है, लेकिन हमें आश्वस्त नहीं बैठना चाहिए। तैयारी पूरी रखनी चाहिए। चीन हमारी तरफ या ताईवान की ओर गुस्ताखी कर सकता है। रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले के बाद से ही चीन को लेकर चर्चा हो रही है। चीन की साम्राज्यवादी नीतियां किसी से छिपी नहीं हैं। हमें ध्यान रखना चाहिए, चीन अगर दुस्साहस करता है, तो कोई भी तीसरा देश हमारे साथ शायद ही आएगा। गौर करने की बात है कि नाटो देश यूक्रेन के साथ थे, लेकिन रूस ने जब हमला बोला, तो उसके खिलाफ कोई देश खुलकर सामने नहीं आया। हमें दुनिया के हालात को समझकर तैयारी रखनी चाहिए। रक्षा सामान के लिए रूस पर हमारी बहुत निर्भरता है, लेकिन हमारी मुसीबत के समय वह शायद ही आगे आ पाएगा। रूस के साथ कुछ रक्षा सौदे बीच में अटक जाएंगे, ऐसा लग रहा है। हमारी सेना के 63 प्रतिशत हथियार या उपकरण रूस से ही आए हैं। अब आगे क्या होने वाला है? अत: भारत का सचेत और तैयार रहना जरूरी है। संयुक्त राष्ट्र संघ की जब स्थापना हुई थी, तब यह सोचा गया था कि यह संस्था सभी विवाद सुलझाएगी, विश्व शांति के लिए प्रयास करेगी और दुनिया में युद्ध नहीं होंगे। हमें आंख खोलकर देख लेना चाहिए कि ये तमाम संस्थाएं आज मूकदर्शक की स्थिति में हैं और युद्ध जारी है। रूस के मामले में हम देख रहे हैं, जिसके हाथ में लाठी है, उसी का जोर चल रहा है। जब रूस की लाठी को मजबूती चाहिए, तब उसने चीन से मदद मांगी है। लेकिन यह युद्ध लड़कर रूस कम से कम 40 साल पीछे चला गया है। आने वाले दिनों में वह चीन पर निर्भर होने वाला है, इससे भी भारत की चिंता बढ़ गई है।
एक-दो दिन में यूक्रेन की राजधानी गिर जाएगी, मतलब यूक्रेन हार जाएगा। यूक्रेन के राष्ट्रपति विदूषक ही साबित हो रहे हैं। अब जब वह बोल रहे हैं कि नाटो में नहीं जाएंगे, रूस से बातचीत करेंगे, तब सवाल यह उठता है, उन्होंने इतना नरसंहार क्यों कराया?
बहरहाल, हमें अपनी आत्मनिर्भरता पर ध्यान देना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र में हमने किसी का पक्ष नहीं लिया है, इसलिए भी कई देश नाराज हैं। वैसे अंतरराष्ट्रीय संबंधों में कोई स्थायी न मित्र होता है, न शत्रु होता है। उधर, ताइवान ने अपने यहां आपातकाल जैसी घोषणा कर रखी है, हमारे देश में भी गहन मंत्रणा चल रही है कि हमें क्या करना चाहिए। बड़ी समस्या यह है कि चीन ने कभी ईमानदारी का परिचय नहीं दिया। उसने हमारा 38 हजार स्क्वॉयर किलोमीटर क्षेत्र तो अक्साई चिन में ही कब्जा रखा है, जगह-जगह दावे भी कर रहा है। हॉट ्प्रिरंग तो छोटा मुद्दा है, हमें इतने भर से संतुष्ट नहीं हो जाना चाहिए। यह समय भारत की कूटनीति की अग्निपरीक्षा का है, जिसमें सफल होने में हम सक्षम हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
Rani Sahu
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