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महंगाई अब बहुत महंगी पड़ने लगी है। अब तक तो जनता ही इसकी मार झेल रही थी
आलोक जोशी,
महंगाई अब बहुत महंगी पड़ने लगी है। अब तक तो जनता ही इसकी मार झेल रही थी, लेकिन अब लगता है कि सरकार को भी यह डर सता रहा है कि महंगाई कहीं उसे भी महंगी न पड़ जाए। इसी का असर है कि एक के बाद एक एलान हो रहे हैं- पेट्रोल और डीजल पर एक्साइज ड्यूटी घटाने का फैसला, गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध, चीनी के निर्यात पर रोक, सोयाबीन और सूरजमुखी तेल के ड्यूटी फ्री आयात का फैसला, स्टील पर निर्यात शुल्क लगाने का फैसला, स्टील के कच्चे माल के आयात पर शुल्क हटाने का फैसला आदि। ये सारे फैसले एक ही दिशा में जाते हैं। महंगाई को किसी तरह मात दी जाए। खुदरा महंगाई का आंकड़ा आठ साल में सबसे ऊपर पहुंच चुका है और थोक महंगाई का आंकड़ा 13 महीने से लगातार दो अंकों में है।
हालांकि, जीडीपी ग्रोथ का आंकड़ा अनुमान के मुताबिक ही आया है। महंगाई की मार को देखते हुए ही आशंका थी कि यह आंकड़ा चार प्रतिशत के आसपास रहेगा। फिक्र की बात यह है कि यहां भी गैर-सरकारी खर्च के आंकड़े में बढ़ोतरी फिर कमजोरी दिखा रही है। जीडीपी आंकड़े के कुछ ही पहले सरकारी घाटे का आंकड़ा भी आया है, जो दिखा रहा है कि सरकारी घाटा जो जीडीपी का 6.9 प्रतिशत तक जाने का अनुमान था, इस बार वह सिर्फ 6.7 प्रतिशत ही रहा है। लेकिन इसका एक मतलब यह भी है कि शायद सरकार ने अपने खर्चों पर भी लगाम कसी है और निजी खर्च में भी कमी आने का मतलब यह है कि महंगाई का असर बढ़ रहा है।
महंगाई बढ़ने से आम आदमी को तकलीफ होती है। लेकिन अगर यह हद से ज्यादा बढ़े, तो तकलीफ गंभीर बीमारी भी बन सकती है। पिछले हफ्ते की ही कुछ खबरों पर नजर डालें, तो यह दिख जाएगा। मोबाइल फोन की बिक्री में 30 प्रतिशत की गिरावट आ चुकी है। मोबाइल, फ्रिज और टीवी जैसी चीजें बनाने वाली कंपनियों ने अपने उत्पादन के लक्ष्य घटा दिए हैं। वजह है कि बार-बार दाम बढ़ने के बाद लोग इन सामान को खरीदना बंद करने लगे हैं। जब जेब में पैसे कम हों व चीजें महंगी होने लगें, तो यही होता है।
ब्याज दरों के बढ़ने के पीछे भी महंगाई का ही डर है। रिजर्व बैंक ने जिस तरह अगली पॉलिसी मीटिंग का इंतजार किए बिना रेट बढ़ाने का एलान किया, उस अंदाज से ही साफ था कि हालात चिंताजनक हैं। और अब उसकी सालाना रिपोर्ट भी आई है, जिसमें चिंता जताई गई है कि थोक महंगाई बढ़ने का असर कुछ समय बाद खुदरा बाजार की कीमतों पर भी दिखाई पड़ सकता है। इस रिपोर्ट में माना गया है कि पिछले साल मई-जून में महंगाई तेज हुई और रिजर्व बैंक की बर्दाश्त की सीमा (दो से छह फीसदी के बीच) के पार चली गई थी। और तब से कुछ उतार-चढ़ाव के बावजूद यह खतरे के निशान के ऊपर ही बनी हुई है। लेकिन यह सवाल जस का तस है कि रिजर्व बैंक ने कदम उठाने में इतना वक्त क्यों लगाया? केंद्र सरकार की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। महंगाई की रफ्तार भी सामने थी और कोरोना की मार से उबरने की कोशिश के बीच यूक्रेन पर हमले का असर भी समझना मुश्किल नहीं था। फिर भी, ये तमाम कदम आखिर पहले क्यों नहीं उठाए गए, जो अब उठाए जा रहे हैं?
इसी तरह की परिस्थिति और बिजली कोयले का संकट तमाम लोगों को यह अटकलें या आरोप लगाने का मौका भी देता है कि भारत श्रीलंका की राह पर है। खासकर यह देखते हुए कि अभी कुछ ही समय पहले तक श्रीलंका और बांग्लादेश के आर्थिक मॉडल भारत में सबक की तरह देखे जा रहे थे। तब भी, यह कहना बहुत दूर की कौड़ी है कि भारत में ऐसा कोई संकट सामने खड़ा है। इसकी सबसे बड़ी वजह है हमारा आकार। भारत की अर्थव्यवस्था श्रीलंका से 33 गुना, बांग्लादेश से करीब आठ गुना और पाकिस्तान से करीब 10 गुना बड़ी है। और उसके साथ ही निर्यात और विदेश से आने वाले पैसे के मामले में भारत की निर्भरता इन देशों के मुकाबले बेहद कम है।
लेकिन इतनी सी बात बेफिक्र होने के लिए काफी नहीं है। महंगाई अगर काबू में नहीं आई, तो वह कई तरह के गणित बिगाड़ सकती है। महंगाई सिर्फ भारत में नहीं बढ़ रही है। पश्चिमी दुनिया के जिन देशों में बरसों से महंगाई का नाम तक नहीं लिया जाता था, वहां भी हर महीने नए रिकॉर्ड बन रहे हैं। अमेरिका में महंगाई की दर दो फीसदी पर रखने का लक्ष्य है, लेकिन वह आठ फीसदी से ऊपर पहुंचकर 40 साल का नया रिकॉर्ड बना रही है। भारत के लिए बड़ा संकट यह है कि वह दो तरफ से फंस गया है। कोरोना का दबाव कम होने के साथ उम्मीद थी कि इस साल भारत काफी तेजी से तरक्की करेगा। दुनिया भर की बड़ी एजेेंसियां ऐसी रिपोर्ट जारी कर चुकी हैं कि भारत की जीडीपी दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ सकती है। मगर चीन में कोरोना की वापसी की आशंका और यूक्रेन पर रूस के हमले ने अचानक सारी बिसात उलटकर रख दी। महंगाई का तेज झटका तो पूरी दुनिया को लगा है, लेकिन भारत में इससे ग्रोथ पटरी पर लौटने की उम्मीदों पर पानी फिर रहा है। रेटिंग एजेंसी मूडीज ने इस साल भारत में जीडीपी बढ़ने का अनुमान 9.1 प्रतिशत से घटाकर 8.8 फीसदी कर दिया है। उसने इसकी वजह बताई है कि कच्चे तेल, खाद और खाने-पीने की चीजों में महंगाई का असर लोगों की जेब पर भी पड़ेगा और उनके खर्चों पर भी। एजेंसी का यह भी कहना है कि महंगाई काबू करने के लिए ब्याज दरें बढ़ाने से बाजार में मांग कम होने का डर है। हालांकि, उसका यह भी कहना है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में महंगाई और तेजी से नहीं बढ़ती है, तो भारत की अर्थव्यवस्था रफ्तार बनाए रख सकती है।
आर्थिक जानकारों की चिंता भी यही है कि ब्याज दरें बढ़ाने का फैसला कहीं उल्टा असर न कर जाए। उनका कहना है कि जिस वक्त बाजार में चीजों की मांग ज्यादा हो, तब महंगाई कम करने के लिए ब्याज दरें बढ़ाने का नुस्खा तो काम आता है, पर मांग की कमी के दौर में ब्याज दरें बढ़ाने से तो बीमारी गंभीर हो सकती है। शायद इसीलिए रिजर्व बैंक ने दरें बढ़ाने का फैसला करने में इतना वक्त लिया। पर अब आरबीआई गवर्नर कह चुके हैं कि आगे ब्याज बढ़ेगा, यह सोचना मुश्किल नहीं है। उसके साथ ही अब सरकार के लिए भी चुनौती खड़ी होगी कि वह गरीबों और मध्यवर्ग को महंगाई की मार से बचाने के लिए क्या करेगी, जिससे अर्थव्यवस्था की रफ्तार पर भी बुरा असर न पड़े।
सोर्स- Hindustan Opinion
Rani Sahu
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