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जब दिल्ली और आसपास के राज्यों में एकाधिक राजमार्गों पर लंबे समय से जाम लगा हो
जब दिल्ली और आसपास के राज्यों में एकाधिक राजमार्गों पर लंबे समय से जाम लगा हो, तब इस परेशानी का फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचना स्वागतयोग्य है। सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए वाजिब सवाल उठाया है कि राजमार्गों को इतने लंबे समय के लिए कैसे अवरुद्ध किया जा सकता है? पिछले साल पारित तीन कृषि कानूनों के खिलाफ जारी किसान आंदोलन के चलते सड़कों पर जाम को हमारे शासन-प्रशासन के एक तबके ने मानो भुला ही दिया है। ऐसा लगता है, लोगों को आए दिन होने वाली परेशानी की परवाह न तो किसानों को है और न सरकारों को। जहां भी जाम की स्थिति है, वहां जितनी संख्या में किसानों का डेरा है, उतनी ही संख्या में पुलिस या अद्र्धसैनिक बलों के जवान में भी जमे हुए हैं। ऐसा लगता है, मानो किसान और जवान राजमार्गों पर ही बस गए हों।
शीर्ष अदालत नोएडा निवासी मोनिका अग्रवाल की याचिका पर सुनवाई कर रही है। याचिकाकर्ता ने नाकाबंदी को हटाने की मांग करते हुए कहा है कि पहले दिल्ली पहुंचने में 20 मिनट लगते थे और अब दो घंटे से अधिक का समय लग रहा है और क्षेत्र के लोगों को विरोध-प्रदर्शन के कारण कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। इस याचिका पर केंद्र सरकार से यह कहा गया है कि वह किसान संघों को पक्ष बनाने के लिए एक औपचारिक आवेदन दायर करे। लंबे समय से राजमार्गों पर बैठे किसानों का मत जानना जरूरी है, ताकि जाम खुलवाने की दिशा में सुनवाई हो सके। बहुत से लोगों का मानना है कि किसानों के प्रति सरकार का लचीला रुख ही जाम की वजह है, तो कई लोग यह भी मानते हैं कि सरकार के पास कोई विकल्प नहीं है। सरकार ने किसानों को राजधानी में अंदर आकर बैठने से रोकने के लिए उन्हें सीमा पर ही रोकने की कोशिश की है और सरकार की सहमति से ही कुछ जगहों पर किसानों को जाम लगाने दिया गया है, लेकिन कुल मिलाकर, इससे आम लोगों को जो परेशानी हो रही है, उसके प्रति अब सुप्रीम कोर्ट की गंभीरता वाजिब मुकाम पर पहुंच सकती है।
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और जस्टिस एम एम सुंदरेश की पीठ ने विश्वास जताया है कि समस्याओं का समाधान न्यायिक मंच, आंदोलन या संसदीय बहस के माध्यम से हो सकता है, पर राजमार्गों को ऐसे कैसे अवरुद्ध किया जा सकता है? शीर्ष अदालत ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज से पूछा है कि सरकार इस मामले में क्या कर रही है? जवाब मिला कि सरकार ने प्रदर्शन कर रहे किसानों के साथ बैठक की थी और हलफनामे में इसका ब्योरा दिया गया है। इसके बाद अदालत ने सरकार से जो कहा, वह बहुत मायने रखता है। अदालत ने कहा, कानून को कैसे लागू किया जाए, यह आपका काम है। अदालत इसे लागू नहीं कर सकती। इसे लागू करना कार्यपालिका का काम है। बहरहाल अदालत के रुख से ऐसा भी लगा कि वह हस्तक्षेप से बचना चाहती है, क्योंकि एकाधिक मौकों पर जब अदालतों ने समाधान के लिए हस्तक्षेप किया है, तब सरकार की ओर से अधिकारों के अतिक्रमण की बात उठी। जरूरी है कि सुप्रीम कोर्ट की सलाह और चिंता को सरकार गंभीरता से ले, ताकि पिछले साल 27 नवंबर से ही अवरुद्ध राजमार्ग खुल सकें।
क्रेडिट बाय हिंदुस्तान
Rani Sahu
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