सम्पादकीय

पीएम मोदी और अमित शाह पर हमलावर रहे हार्दिक पटेल और बीजेपी की दोस्ती कितनी परवान चढ़ेगी?

Rani Sahu
2 Jun 2022 11:33 AM GMT
पीएम मोदी और अमित शाह पर हमलावर रहे हार्दिक पटेल और बीजेपी की दोस्ती कितनी परवान चढ़ेगी?
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जब आप इस खबर को पढ़ रहे होंगे तो गुजरात (Gujarat) की राजनीति कुलांचे मार रही होगी

अखिलेश अखिल |

जब आप इस खबर को पढ़ रहे होंगे तो गुजरात (Gujarat) की राजनीति कुलांचे मार रही होगी. पाटीदार नेता के तौर पर उभरे हार्दिक पटेल (Hardik Patel) बीजेपी में शामिल होकर अपनी पुरानी पार्टी कांग्रेस को नेस्तेनाबूत करने की कसमें खा रहे होंगे. हार्दिक पटेल गुरुवार की दोपहर अपने लाव लश्कर के साथ बीजेपी में शामिल हुए. खबर के मुताबिक हार्दिक के साथ हजारों युवा भी बीजेपी में शामिल हुए हैं. इन युवाओं की संख्या 15 हजार बताई जा रही है. हार्दिक पटेल युवाओं के प्रेरणा श्रोत रहे हैं. गुजरात में हार्दिक की धमक से एक समय बीजेपी परेशान हो गई थी. यह बात और है कि हार्दिक के आंदोलन का असर गुजरात बीजेपी सरकार पर तो नहीं पड़ा, लेकिन हार्दिक की नेतागीरी गुजरात से निकलकर देश में भी चर्चित हो गई.
देश के हर राज्यों के युवाओं और जनता ने भी हार्दिक को अपनाया, गले लगाया और अपने मंचों पर बुलाया. हार्दिक गुजरात से निकलकर देश के लिए आइकॉन बन गए.गुजरात में पाटीदार आरक्षण के मसले पर हार्दिक ने बीजेपी पर जितना हमला किया, वह अपने आप में बीजेपी को तबाह और बर्बाद करने के लिए काफी था. लेकिन बीजेपी की जड़े वहां काफी मजबूत थीं, हार्दिक का कोई खेल चल नहीं पाया. हार्दिक कानून के जकड़ में आए. कई मामले उनपर दर्ज हुए. किसी भी सूबे की सरकार किसी बागी को नाथने के लिए जो भी कर सकती है, गुजरात सरकार ने वह सब किया. आज भी हार्दिक कई मामलों के लपेटे में हैं. मुकदमो के जकड़न से उन्हें कब और कितनी मुक्ति मिलेगी यह भला कौन जाने. लेकिन यह भी एक सच है कि हार्दिक की यह नई पैंतरेबाजी उन्हें तमाम मुकदमों से मुक्त कर सकती है. बीजेपी भी इस खेल को जानती है और समझती है, लेकिन राजनीति तो राजनीति है. हार्दिक के हर खेल पर बीजेपी पैनी निगाह बनाए हुए है और हार्दिक भी अपने भविष्य को समझ रहे हैं. दांव दोनों तरफ है. समझदारी भी दोनों तरफ है और मज़बूरी भी दोनों तरफ है.
हार्दिक की असली परीक्षा आगामी गुजरात चुनाव में होने वाली है
पाटीदार समाज की राजनीति करते समय हार्दिक ने पीएम मोदी और अमित शाह पर जितना हमला किया और जितने अभद्र शब्दों का प्रयोग किया, मौजूदा राजनीति में यह अलग से विश्लेषण करने का विषय है. हार्दिक ने पीएम मोदी और शाह के लिए क्या-क्या नहीं कहा. लेकिन राजनीति में यह सब चलता ही रहता है. जब राजनीति का कोई चरित्र नहीं है, तब भला नेता के चरित्र पर सवाल कैसा? सवाल उठा भी कौन सकता है! क्या बाया हाथ दाए हाथ को कभी बेकार और दागी मान सकता है! कदापि नहीं. हार्दिक इस भ्रष्ट राजनीति के गर्भ से निकले हैं. फिर उनसे अपेक्षा कैसी! हार्दिक ने कांग्रेस कि राजनीति भी की है. इस युवा नेता को कांग्रेस ने गुजरात का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया. क्या बीजेपी ऐसा कर सकती है? क्या हार्दिक बीजेपी से ऐसी अपेक्षा कर भी सकते हैं? और करेंगे भी तो वह सब पूरी होगी? हार्दिक ने पिछले दिनों कांग्रेस पर कई सवाल उठाए.
उन्होंने कहा कि पार्टी ने उनकी उपेक्षा की. कोई काम नहीं दिया. गुजरात की राजनीति उनके इशारे पर नहीं चल सकी. इसके साथ ही उन्होंने सोनिया गांधी से लेकर राहुल गांधी तक पर बहुतेरे सवाल उठाए हैं. क्या वे इस बात का उत्तर दे सकते हैं कि जब गुजरात में कांग्रेस पिछले कई सालों से विपक्ष में हैं तो कांग्रेस को मजबूत करने के लिए उन्होंने कोई ऐसा खेल किया, जो कांग्रेस के हित में हो. कोई आंदोलन चलाया जिससे कांग्रेस की राजनीति में जान आ सके. क्या गुजरात के सारे पाटीदार कांग्रेस के साथ जुड़ सके, जिसकी कल्पना कांग्रेस ने की थी? ऐसे बहुत सारे सवाल हैं. इन सवालों के उत्तर भले ही आज हार्दिक नहीं दे पा रहे हों, लेकिन बीजेपी को ऐसा उत्तर चाहिए होगा. अगर वे उत्तर नहीं दे सकेंगे तो बीजेपी उन्हें झेल नहीं पायेगी. बीजेपी और कांग्रेस में यही फर्क है. पीएम मोदी, अमित शाह और सोनिया, राहुल में यही अंतर है.
आज हार्दिक पटेल कांग्रेस से बीजेपी में शामिल होकर भले ही खूब सुर्खियां बटोर रहे हों, लेकिन असली परीक्षा तो आगामी गुजरात चुनाव में होने वाली है. गुजरात चुनाव में बीजेपी के लिए हार्दिक कितने सार्थक होंगे इसकी भी जानकारी बहुत जल्द ही बीजेपी को मिल जाएगी. बीजेपी की आज से हार्दिक पर पैनी निगाह होगी. उनके हर चाल को बीजेपी पढ़ेगी. बीजेपी के लिए हार्दिक कितने बड़े सितारा साबित होंगे इसका बीजेपी आंकलन करेगी. बीजेपी और हार्दिक की यारी का भविष्य क्या होगा, इस पर सबकी निगाहें हैं. गुजरात की राजनीति में भी इस पर चर्चा चल रही है और दिल्ली की राजनीति में भी इस पर बहस जारी है. अलग-अलग विश्लेषक अलग-अलग तरीके से हार्दिक और बीजेपी की दोस्ती को देख रहे हैं और खुलास भी कर रहे हैं. इस पूरे मामले में अब बड़ा सवाल तो यह हो गया है कि क्या हार्दिक के हाथ में गुजरात चुनाव की जिम्मेदारी बीजेपी देगी? क्या पाटीदार समाज का नेता बीजेपी हार्दिक को मानेगी?
नरेश पटेल की कांग्रेस में वापसी हो सकती है
गुजरात की जो हालत है और बीजेपी के भीतर जो संगठनात्मक तरीके हैं उससे तो साफ़ है कि ना तो गुजरात चुनाव की जिम्मेदारी हार्दिक को बीजेपी देगी और ना ही पाटीदार समाज का नेता ही बीजेपी उन्हें मानेगी. बीजेपी ऐसा करके हार्दिक को बड़ा नेता नहीं बना सकती. अगर बीजेपी यह सब करती है तो बीजेपी की परेशानी ही बढ़ेगी. अभी इस चुनाव तक हार्दिक को अपनी वफादारी का सबूत देना होगा. वह बीजेपी के लिए कितने लाभदायक होंगे और पाटीदार समाज का वह तबका जो बीजेपी के साथ नहीं है, उसे बीजेपी के साथ लाने में हार्दिक कितने सफल होते हैं, इसे बीजेपी को देखना होगा. बीजेपी को पता है कि राजनीति में पाटीदार को नाराज नहीं किया जा सकता. बीजेपी को यह भी पता है कि बदलती राजनीति में कांग्रेस को भी सूबे में कमतर नहीं माना जा सकता. बीजेपी को यह भी पता है कि हार्दिक की जगह नरेश पटेल की कांग्रेस में वापसी हो सकती है और ऐसा होने पर बीजेपी को बड़ा झटका लग सकता है.
बीजेपी को यह भी पता है कि नरेश पटेल की जगह हार्दिक की राजनीति कमतर है, क्योंकि गुजरात का अधिकतर पाटीदार समाज नरेश पटेल को नेता मानता है और सामाजिक उद्धारक भी. नरेश पटेल की सामाजिक छवि के साथ ही धार्मिक छवि भी है और राजनीतिक पहुंच भी. बीजेपी मानती है कि कांग्रेस ने वाकई में हार्दिक को बड़ा पद दे दिया था. अब रिटर्न तो हार्दिक को देना था, जो संभव नहीं हो सका. ऐसे में बीजेपी के लिए अभी मुख्य टेस्टिंग वफादारी की होनी है. इसमें हार्दिक कितने सफल होते हैं इसे देखना होगा. हार्दिक आज भले ही बीजेपी के साथ हो गए लेकिन सच तो यह भी है कि शायद ही बीजेपी उन्हें चुनाव में उतारे. बीजेपी अगर मैदान में हार्दिक को उतार भी देती है, तो हार्दिक को काफी विरोध का सामना करना पड़ेगा. पाटीदार समाज के अधिकतर लोग अब कहते फिर रहे हैं कि हार्दिक पार्टी बदल रहे हैं लेकिन उनकी राजनीतिक खेल का असर अब वैसा नहीं रहा, जो पहले था.
पाटीदार समाज के लोग यह भी कह रहे हैं कि जिस कांग्रेस ने हार्दिक को बड़ा पद दिया, उस कांग्रेस को कुछ दिए बिना ही हार्दिक का पलटी मारना समझ से परे है और पाटीदार समाज से लेकर गुजरात के दर्जनों पत्रकार भी यह मानते हैं कि हार्दिक के बीजेपी में जाने से बीजेपी को कोई बड़ा लाभ नहीं होने जा रहा है. ऐसे में बीजेपी को क्या यह सब पता नहीं है? लेकिन राजनीति में आया राम गया राम की कहानी ना हो तो फिर राजनीति कैसी! मौजूदा दौर में बीजेपी को यह खेल लुभाता भी है और भरमाता भी है. हार्दिक को पार्टी में लेकर बीजेपी के नेता गुजरात के पाटीदार समाज को कई सन्देश भी देना चाह रहे हैं. उनका पहला सन्देश तो यही है कि बीजेपी ही पाटीदार समाज की असली चिंतक है. पाटीदार समाज का भला केवल बीजेपी ही कर सकती है.
हार्दिक के वफादारी की परीक्षा होगी
बीजेपी यह बताना चाह रही है कि जिस पाटीदार समाज को आरक्षण के नाम पर हार्दिक ने गोलबंद किया था, समय के साथ उसे सच्चाई का पता चला और वह बीजेपी के संग आ गए. बीजेपी यह भी दिखाना चाह रही है कि पाटीदार समाज में बीजेपी की जो पहुंच है, अब हार्दिक के आने से वह और मजबूत होगी. लेकिन बीजेपी अभी हार्दिक पर कोई बड़ा यकीन नहीं करेगी. जब ज्योतिरादित्य सिंधिया को बीजेपी में लेकर पार्टी के नेताओं ने उन्हें लगभग पंद्रह महीने तक इन्तजार कराया और उनके वफादारी की परीक्षा ली गई, ऐसे में हार्दिक के साथ इस यारी की परीक्षा भी होनी है. बीजेपी को पता है कि गुजरात चुनाव में उसके सामने कांग्रेस चुनौती में नहीं है, ऐसे में हार्दिक को लेकर जीत का श्रेय भी उन्हें नहीं देगी. हार्दिक भी बीजेपी की इस मंशा को जान रहे हैं, लेकिन चूंकि उन्हें अपने ऊपर चल रहे मुकदमो को ख़त्म करने के लिए बीजेपी के साथ जाना जरूरी था, इसीलिए उन्होंने ऐसा खेल किया है.
हार्दिक के इस इरादे को बीजेपी जानती है, लेकिन अभी मौन है. उसे देश को बताना भी था कि कांग्रेस गलत है, क्योंकि कांग्रेस के तमाम युवा नेता वहां से निकलकर बीजेपी में आ रहे हैं. बीजेपी का यह सन्देश सबसे बड़ा है और इस सन्देश में अब हार्दिक भी सहभागी बने हैं. बीजेपी नेता अब हार्दिक के साथ मंच सांझा करेंगे और कांग्रेस पर हमला करेंगे. अगर इस खेल से बीजेपी के वोटबैंक में थोड़ा भी इजाफा होता है तो हार्दिक से साथ बीजेपी की यह यारी कम लाभकारी नहीं. लेकिन हार्दिक आगे अमित शाह और पीएम मोदी का कैसे गुणगान करेंगे इस पर देश की निगाहें टिकी होंगी. चूंकि बीजेपी को यह भी पता है कि हार्दिक सवालों के घेरे में आएंगे. और इसका खामियाजा बीजेपी को भुगतना भी पड़ सकता है, इसलिए अभी इस नयी यारी की दास्तां को परखने की जरूरत होगी.

सोर्स- tv9hindi.com

Rani Sahu

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