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सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने सिनेमेटोग्रफी (संशोधन) विधेयक, 2021 का मसौदा पेश किया है, जिसे लेकर अच्छा-खासा विवाद खड़ा हो गया है।
सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने सिनेमेटोग्रफी (संशोधन) विधेयक, 2021 का मसौदा पेश किया है, जिसे लेकर अच्छा-खासा विवाद खड़ा हो गया है। सरकार का दावा है कि इस विधेयक से पाइरेसी रुकेगी, जबकि फिल्म इंडस्ट्री का कहना है कि अगर यह विधेयक कानून बना तो इस देश में लोग क्या देखेंगे और क्या नहीं, यह सरकार ही तय करेगी।
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संशोधन विधेयक के मसौदे की जिस शर्त को लेकर (सेक्शन 6) सबसे अधिक विवाद है, वह कहती है कि किसी भी आने वाली फिल्म पर सरकार का फैसला अंतिम होगा, भले ही उसे पहले सेंसर बोर्ड या अपीलेट ट्रिब्यूनल से मंजूरी मिल चुकी हो। यह भी बताते चलें कि अपीलेट ट्रिब्यूनल को भंग किया जा चुका है और इस विधेयक के कानून बनने से सेंसर बोर्ड भी बस नाम का ही रह जाएगा। यूं भी सरकारें सेंसर बोर्ड में राजनीतिक नियुक्तियां करती आई हैं और उसके जरिये फिल्मों के कंटेंट को नियंत्रित करने की कोशिशें होती आई हैं। सिनेमेटोग्रफी (संशोधन) विधेयक, 2021 के जरिये सरकार उससे भी आगे जाकर फिल्म बनाने वालों की आजादी पर अंकुश लगाना चाहती है। इतना ही नहीं, सेक्शन 6 सरकार को यह अधिकार भी देता है कि वह 'जनहित' में कोई जानकारी या सूचना रोकने का भी फैसला कर सकती है।
दिलचस्प बात यह है कि इस प्रोविजन को सुप्रीम कोर्ट साल 2000 में एक केस में असंवैधानिक घोषित कर चुका है। अदालत ने तब कहा था कि अगर ट्रिब्यूनल जैसी किसी अर्ध-न्यायिक संस्था ने कोई फैसला लिया है तो उसमें संशोधन या उसे बदलने की इजाजत सरकार को नहीं दी जा सकती। हैरानी की बात है कि इसके बावजूद इस सेक्शन को विधेयक में शामिल किया गया है। इसके लिए यह तर्क दिया जा रहा है कि कई बार किसी फिल्म को मंजूरी देने में तय दिशानिर्देशों यानी सेक्शन 5बी के उल्लंघन की शिकायत मिलती है। प्रस्तावित विधेयक के कानून बनने पर सरकार उस फिल्म की फिर से समीक्षा का निर्देश दे सकती है।
सरकार का इशारा यहां फिल्म से कानून-व्यवस्था के प्रभावित होने को लेकर है, लेकिन शीर्ष अदालत इसे भी पहले खारिज कर चुकी है। कई मामलों में उसका मानना रहा है कि प्रदर्शन की धमकी या हिंसा के डर के कारण फिल्म सर्टिफिकेशन में दखल देना ठीक नहीं है। यह कानून-व्यवस्था की समस्या है और सरकार को इससे वैसे ही निपटना चाहिए। यूं भी इस तरह की बंदिशें भारत जैसे लोकतांत्रिक देश के लिए मुनासिब नहीं हैं।
Triveni
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