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आठ नवंबर 2016 की शाम 8:00 बजे जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम अपने संदेश के जरिए 500 रुपए और 1000 के नोटों की वैधानिक वैधता को समाप्त करने का निर्णय लोगों से साझा किया तो पूरा देश चकित हो गया था। नोटबंदी के कारण कठिनाइयों के बावजूद आम जनता का भरपूर समर्थन इस निर्णय को मिला। हालांकि विपक्षी दलों ने इस बाबत जोर-शोर से विरोध किया, लेकिन आम जनता ने इस नोटबंदी को कालेधन, भ्रष्टाचार, नकली करैंसी, आतंकवाद, नक्सलवाद और पत्थरबाजी के विरुद्ध एक युद्ध के हथियार के रूप में स्वीकार किया। कुछ कठिनाइयों के बाद देश में नगदी बहाल हुई, लेकिन उस समय देश में वैधानिक नगदी की पर्याप्त उपलब्धता बनी रही, उसके लिए केंद्र सरकार ने 500 और 1000 के पुराने नोटों के बदले में 500 और 2000 के नोटों का चलन शुरू कर दिया। गौरतलब है कि उस समय देश में कुल 17.74 लाख करोड़ रुपए की करैंसी जनता के पास थी जिसमें से 85 प्रतिशत 500 और 1000 के नोटों के रूप में थी। 500 के नोटों के मुद्रण में देरी के कारण देश में करैंसी की कमी के कारण ज्यादा से ज्यादा 2000 के नोटों को जारी करना सरकार और रिजर्व बैंक की मजबूरी थी। गौरतलब है कि मार्च 2018 तक 2000 रुपए के नोट 6.73 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गए थे। बड़े नोटों के विमुद्रीकरण के नाम पर 2000 रुपए के नोट का जारी किया जाना विमुद्रीकरण की भावना के ही विरुद्ध था। इसलिए 2000 के नोटों की वापसी मार्च 2018 से ही शुरू हो गई थी।
गौरतलब है कि प्रारंभ में चलन में आए 6.73 लाख करोड़ रुपए के 2000 के नोट मार्च 2023 तक मात्र 3.62 लाख करोड़ रुपए तक ही रह गए। कहा जा सकता है कि हालांकि सरकार ने 2000 के नोट जारी तो किए थे, लेकिन उसकी मंशा इन नोटों के चलन को धीरे-धीरे कम करने की ही थी। रिजर्व बैंक का कहना है कि 2000 के कुल जारी नोटों में से 89 प्रतिशत मार्च 2017 से पहले जारी किए गए थे, जो वैसे भी अपना समय काल पूरा कर चुके हैं। निष्कर्ष यह है कि 2000 रुपए के नोटों की वापसी कोई अचानक लिया गया निर्णय नहीं कहा जा सकता।
विमुद्रीकरण के बाद घटा है करैंसी का उपयोग : विपक्षी दल यह कहकर सरकार को घेरने की कोशिश कर रहे हैं कि सरकार का यह दावा कि वह विमुद्रीकरण का मकसद डिजिटल भुगतानों द्वारा ‘लैस कैष’ यानी नगदी के कम उपयोग की अर्थव्यवस्था की ओर आगे बढ़ाना था, सही सिद्ध नहीं हुआ क्योंकि उसके बाद तो नगदी की मात्रा बढ़ गई है। उनका कहना है कि विमुद्रीकरण के समय देश में कुल 17.74 लाख करोड़ रुपए की नगदी जनता के पास थी जो दिसंबर 2022 तक बढक़र 32.42 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गई। लेकिन यह समझना होगा कि वर्ष 2015-16 में देश में चालू कीमतों पर जीडीपी मात्र 135 लाख करोड रुपए थी, जो 2022-23 में बढक़र 272 लाख करोड़ रुपए पहुंच चुकी है। ऐसे में समझा जा सकता है कि जीडीपी के अनुपात में नगदी पूर्व में 13.14 प्रतिशत से घटती हुई अब मात्र 11.91 प्रतिशत तक पहुंच गई है। यानी डिजिटलीकरण का असर यह हुआ है कि देश में ‘कैश’ का चलन कम हो गया है। रिजर्व बैंक का यह कहना है कि सामान्य जनता के पास 2000 के बहुत कम नोट हैं। इसका मतलब यह भी है कि 2000 के जो नोट चलन में हैं, वे अधिकतर उन लोगों के पास हैं जिन्होंने अपने धन (या यूं कहें कि काले धन) को नकदी के रूप में रखा हुआ है। ऐसे में रिजर्व बैंक का कहना है कि इस निर्णय से बैंकों की जमा में भारी वृद्धि हो जाएगी। इससे सरकार का राजस्व भी बढ़ेगा और अर्थव्यवस्था में पारदर्शिता भी। ऐसा भी देखने में आया है कि 2000 रुपए के नोटों का उपयोग अपराधियों, आतंकवादियों और गैरकानूनी कार्यों में संलग्न लोगों द्वारा ज्यादा होता है। इन नोटों के बंद होने से कुछ हद तक इन गतिविधियों को लगाम भी लग सकेगी।
विमुद्रीकरण के बाद अर्थव्यवस्था को लाभ : हालांकि विमुद्रीकरण के विरोधियों का कहना है कि विमुद्रीकरण से छोटे उद्यमियों को नुकसान हुआ, रोजगार घटे और अर्थव्यवस्था को नुकसान हुआ। लेकिन आंकड़ों से यह बात सिद्ध नहीं होती। 2015-16 के बाद से अब तक के लगभग 6 वर्षों में चालू कीमतों पर जीडीपी 135 लाख करोड़ से बढ़ कर 272 लाख करोड़ से ज्यादा हो गई है, यानी दुगनी से भी ज्यादा। अगर स्थिर कीमतों पर भी देखें तो इस बीच जीडीपी में प्रतिशत वृद्धि हुई है, जबकि इस बीच के 2 साल कोरोना से प्रभावित रहे। देश के निर्यात वर्ष 2013-14 में 465.5 अरब डॉलर से बढक़र 2022-23 तक 767 अरब डॉलर हो गए हैं। कृषि, सेवा, उद्योग सभी क्षेत्रों में प्रगति दिखाई दे रही है। सरकारी मदद से ग्रामीण और शहरी गरीबों के लिए आवास, इन्फ्रास्ट्रक्चर, वित्तीय समावेशन सभी इस बात की ओर इंगित करते हैं कि अर्थव्यवस्था बिना बाधाओं के आगे बढ़ रही है। विमुद्रीकरण का सबसे बड़ा लाभ मुद्रास्फीति के संदर्भ में हुआ है। गौरतलब है कि विमुद्रीकरण के बाद के 6 वर्षों (दिसंबर 2016 से नवंबर 2022 के बीच) में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (उपभोक्ता मुद्रास्फीति) में केवल 32.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि उससे पहले के छह वर्षों (दिसंबर 2010 से नवंबर 2016 के बीच) में यह वृद्धि 54.1 प्रतिशत थी। ऐसा इसलिए संभव हुआ क्योंकि 500 और 1000 के पुराने नोटों के चलन से बाहर होने पर देश में बड़े पैमाने पर विदेशों और खासतौर पर शत्रु देशों से आ रहे नकली नोट चलन से बाहर हो गए। चूंकि करैंसी की मात्रा ही घट गई (नकली नोटों के बाहर होने से) तो मुद्रास्फीति का कम होना स्वाभाविक ही था।
सबसे खास बात तो यह रही कि पाकिस्तान जैसा शत्रु पड़ोसी देश जिसकी अर्थव्यवस्था ही भारत में नकली करैंसी भेजकर चलती थी, को अचानक एक बड़ा धक्का लगा और अभी तक उसकी अर्थव्यवस्था लगभग धवस्त हो चुकी है। भारत सरकार द्वारा 500 और 1000 के नोटों की बंदी के बाद पाकिस्तान में खाद्य पदार्थों की कीमतों में भारी वृद्धि हो गई, उनके विदेशी मुद्रा भंडार समाप्त हो गए और पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय देनदारियों में कोताही के कुचक्र में फंस गया। आज पाकिस्तान का रुपया डॉलर के मुकाबले में 295.65 रुपए प्रति डॉलर पहुंच चुका है। 2016 में 104.7 पाकिस्तानी रुपए एक डालर के मुकाबले हुआ करते थे। इसके साथ ही साथ पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद और कश्मीर में पत्थरबाजी की घटनाओं पर भी लगाम लगी है। यही नहीं, नक्सलवादी गतिविधियां भी पहले से घटी हैं। माना जा रहा है कि चूंकि 2000 का नोट आमजन के व्यवहार से लगभग बाहर हो चुका था, इसलिए आम जनता पर इन नोटों की वापसी से कोई प्रभाव पडऩे वाला नहीं है। साथ ही साथ 20 हजार रुपए तक के 2000 के नोटों को किसी भी दिन जाकर बैंक से बदलवाया जा सकता है और उसके लिए 30 सितंबर तक समय रिजर्व बैंक ने दिया है। जिनके कालाधन 2000 रुपए के नोटों के रूप में पड़ा है और यदि वे बैंकों में जमा नहीं करते तो फौरी तौर पर कुछ विशिष्ट प्रकार का खर्च बढ़ सकता है, उसका भी सकारात्मक लाभ अर्थव्यवस्था को मिलेगा। यानी कहा जा सकता है कि पहले से ज्यादा पारदर्शी अर्थव्यवस्था, कालेधन पर लगाम, बैंकों की जमा में वृद्धि, राजस्व में वृद्धि आदि से अर्थव्यवस्था को सकारात्मक लाभ ही होंगे। कुछ अर्थशास्त्रियों का यह मानना है कि इससे भारत के बैंकों समेत वित्तीय संस्थानों में लगभग एक लाख करोड़ रुपए और जुड़ जाएंगे, ऐसी आशा है।
डा. अश्वनी महाजन
कालेज प्रोफेसर
By: divyahimachal
Rani Sahu
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