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आजकल भारत और चीन के बीच काफी नरम-गरम नोंक-झोंक चलती नजर आती है
By लोकमत समाचार सम्पादकीय
आजकल भारत और चीन के बीच काफी नरम-गरम नोंक-झोंक चलती नजर आती है. गलवान घाटी विवाद ने तो तूल पकड़ा ही था लेकिन उसके बावजूद पिछले दो साल में भारत-चीन व्यापार में अपूर्व वृद्धि हुई है. भारत-चीन वायुसेवा आजकल बंद है लेकिन हाल ही में भारतीय व्यापारियों का विशेष जहाज चीन पहुंचा है.
गलवान घाटी विवाद से जन्मी कटुता के बावजूद दोनों देशों के सैन्य अधिकारी बार-बार बैठकर आपसी संवाद कर रहे हैं. कुछ अंतरराष्ट्रीय बैठकों में भारतीय और चीनी विदेश मंत्री भी आपस में मिले हैं. इसी का नतीजा है कि विदेशी मामलों पर खुलकर बोलने वाले प्रधानमंत्री चीन के विरुद्ध लगभग चुप रहे.
यही बात हमने तब देखी जब अमेरिकी संसद की अध्यक्ष नैंसी पेलोसी की ताइवान-यात्रा पर जबर्दस्त हंगामा हुआ. पेलोसी की ताइवान-यात्रा के समर्थन या विरोध में हमारे नेताओं की चुप्पी आश्चर्यजनक थी लेकिन यह चुप्पी अब टूटी है, क्योंकि चीन ने इधर दो बड़े गलत काम किए हैं.
एक तो उसने सुरक्षा परिषद में पाकिस्तानी नागरिक अब्दुल रऊफ अजहर को आतंकवादी घोषित करने के प्रस्ताव का विरोध कर दिया है और दूसरा उसने श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर अपना जासूसी जहाज ठहराने की घोषणा कर दी थी. ये दोनों चीनी कदम शुद्ध भारतविरोधी हैं. अजहर को अमेरिका और भारत, दोनों ने आतंकवादी घोषित किया हुआ है.
चीन ने लगभग दो माह पहले लश्करे-तैयबा के अब्दुल रहमान मक्की के नाम पर भी रोक लगवा दी थी. इसी प्रकार जैश-ए-मुहम्मद के सरगना मसूद को आतंकवादी घोषित करने के मार्ग में भी चीन ने चार बार अड़ंगा लगाया था. अब्दुल रऊफ अजहर पर आरोप है कि उसने 1998 में भारतीय विमान के अपहरण, 2001 में भारतीय संसद पर हमले, 2014 में कठुआ के सैन्य-शिविर पर आक्रमण और 2016 में पठानकोट के वायुसेना अड्डे पर हमले के षड्यंत्र रचे थे.
चीन इन पाकिस्तानी आतंकवादियों को संरक्षण दे रहा है लेकिन वह अपने लाखों उइगर मुसलमानों को यातना-शिविरों में झोंक रहा है. ये पाकिस्तानी आतंकवादी उन्हें भी उकसाने में लगे रहते हैं. यह मैंने स्वयं चीन जाकर देखा है इसीलिए इस चीनी कदम की भारतीय आलोचना सटीक है. जहां तक ताइवान का प्रश्न है, भारत की ओर से की गई नरम आलोचना भी समयानुकूल है. वह चीन-अमेरिका विवाद में खुद को किसी भी तरफ क्यों फिसलने दे?
Rani Sahu
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