सम्पादकीय

होसबोले का बयान सरकार विरोधी नहीं...बयां की देश की सच्चाई

Rani Sahu
5 Oct 2022 5:45 PM GMT
होसबोले का बयान सरकार विरोधी नहीं...बयां की देश की सच्चाई
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By लोकमत समाचार सम्पादकीय
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रय होसबोले ने भारत की आर्थिक स्थिति के बारे में जो बयान दिया है, उससे विरोधी दलों के नेता चाहे कितने ही खुश होते रहें लेकिन उसे सरकार-विरोधी नहीं कहा जा सकता है। वह सरकार को जगाए रखने की घंटी की तरह है। वास्तव में सरकारें अपनी पीठ खुद ही ठोंकती रहती हैं। ऐसे में अगर संघ का उच्चाधिकारी कोई आलोचनात्मक टिप्पणी करता है तो वह कड़वी जरूर होती है लेकिन वह सच्ची दवा भी होती है।
होसबोले ने यही तो कहा है कि देश में गरीबी और अमीरी के बीच खाई बढ़ती जा रही है। देश में अभी भी करोड़ों लोग ऐसे हैं, जिन्हें भरपेट रोटी भी नहीं मिलती। वे बिना इलाज के ही दम तोड़ देते हैं। 140 करोड़ लोगों के इस देश में कहा जाता है कि सिर्फ 20 करोड़ लोग ही गरीबी रेखा के नीचे हैं। लेकिन सच्चाई क्या है? मुश्किल से 40 करोड़ लोग ही गरीबी के रेखा के ऊपर हैं। लगभग 100 करोड़ लोगों को क्या भोजन, वस्त्र, निवास, शिक्षा, चिकित्सा और मनोरंजन की पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध हैं? क्या वे हमारे विधायकों और सांसदों की तरह जीवन जीते हैं? जो हमारे प्रतिनिधि कहलाते हैं, वे किस बात में हमारे समान हैं? वे हमारी तरह तो बिल्कुल नहीं रहते।
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि देश में सिर्फ 4 करोड़ लोग बेरोजगार हैं। क्या यही असलियत है? रोजगार तो आजकल बड़े-बड़े उद्योगपतियों की कंपनियां दे रही हैं, क्योंकि वे जमकर मुनाफा कमा रही हैं लेकिन छोटे उद्योगों और खेती की दशा क्या है? सरकार डंका पीटती रहती है कि उसे इस साल जीएसटी और अन्य टैक्सों में इतने लाख करोड़ रु. की कमाई ज्यादा हो गई है लेकिन उससे आप पूछें कि टैक्स देने लायक लोग यानी मोटी कमाईवाले लोगों की संख्या देश में कितनी है? 10 प्रतिशत भी नहीं है। शेष जनता तो अपना गुजारा किसी तरह करती रहती है।
Rani Sahu

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