सम्पादकीय

Hong Kong Protest: हॉन्ग कॉन्ग में ऐसे लोकतंत्र का गला घोंट रहा है चीन

Gulabi
31 May 2021 4:03 PM GMT
Hong Kong Protest: हॉन्ग कॉन्ग में ऐसे लोकतंत्र का गला घोंट रहा है चीन
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Hong Kong Protest

ओम तिवारी। 130 वर्षों से ज्यादा समय तक ब्रिटिश कॉलोनी रहे हॉन्ग कॉन्ग को जब जुलाई 1997 में वापस चीन के हवाले किया गया तो शर्त रखी गई थी कि इस शहर को 'एक देश, दो शासन प्रणाली' के तहत स्वायत्तता मिलेगी. डेंग शियाओ पिंग के प्रस्तावित मॉडल के मुताबिक हॉन्ग कॉन्ग को अपनी सरकार, कोर्ट और कानून चलाने के हक का भरोसा मिला जबकि विदेशी मामले और बाहरी खतरों से निपटने की जिम्मेदारी चीन ने अपने पास रखी. समझौते के मुताबिक 50 साल तक यानी 2047 तक यथास्थिति बने रहने की उम्मीद थी लेकिन अगले कुछ सालों में ही चीन की असली मंशा सामने आने लगी. और 2019 के विरोध प्रदर्शन ने हॉन्ग कॉन्ग में चीनी कहर की सच्चाई को सार्वजनिक कर दिया.

1 अक्टूबर 2019. यही वो दिन था जब हॉन्ग कॉन्ग में प्रत्यर्पण कानून संशोधन विधेयक के खिलाफ कई महीनों से जारी आंदोलन उग्र हो उठा. मौका चीन के राष्ट्रीय दिवस का था. हॉन्ग कॉन्ग में प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़प हिंसक हो गई. पुलिस ने गोलियां चलाई और एक 18 साल के प्रदर्शनकारी की मौत हो गई. इसके बाद आंदोलन की आग और धधक उठी और 23 अक्टूबर 2019 को हॉन्ग कॉन्ग प्रशासन ने मजबूर होकर कानून वापस ले लिया.
प्रत्यर्पण कानून के खिलाफ आंदोलन के बाद चीन ने चली दूसरी चाल
हॉन्ग कॉन्ग की जनता कानून में बदलाव से नाराज थी क्योंकि देश से बाहर हुए आपराधिक मामले के ट्रायल के लिए नागरिकों के प्रत्यपर्ण की मंजूरी दे दी गई थी. लोग इस संशोधन के खिलाफ सड़कों पर उतर आए क्योंकि उन्हें डर था कि चीन की सरकार इस कानून का फायदा उठाकर हॉन्ग कॉन्ग में लोकतंत्र समर्थकों पर लगाम लगा सकता है. झूठे आरोपों में प्रत्यर्पण की मांग कर उन्हें बंदी बना सकती है.
2019 में आंदोलन उग्र होने पर प्रत्यर्पण कानून तो वापस ले लिया गया, लेकिन चीन की चाल अभी खत्म नहीं हुई थी. 30 जून 2020 को चीन ने हॉन्ग कॉन्ग के लिए नया राष्ट्रीय सुरक्षा कानून पास किया. जिसके तहत अलगाव, तोड़फोड़, आतंकवाद और विदेशी ताकतों के साथ मिलीभगत जैसे अपराध में आजीवन कारावास तक का प्रावधान था. इस कानून में पब्लिक ट्रांसपोर्ट को नुकसान पहुंचाना भी आतंकी कार्रवाई मानी गई और सुरक्षा एजेंसियों को आरोपी की वायर-टैपिंग और सर्विलांस की इजाजत दी गई. इसके अलावा सुरक्षा कानून के तहत हॉन्ग कॉन्ग में सिक्योरिटी कमीशन बनाने और अदालती कार्रवाई के लिए आरोपी को चीन भी ले जाने का प्रावधान रखा गया.
जिम्मी लाई समेत 10 लोकतंत्र समर्थकों को 14 से 18 महीने की जेल
यह कानून हॉन्ग कॉन्ग की आजादी और लोकतांत्रिक मूल्यों पर सीधा हमला था. लेकिन चीन ने इसके लिए हॉन्ग कॉन्ग के मिनी संविधान (बेसिक लॉ) के आर्टिकल 23 का सहारा लिया जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा कानून बनाने की जरूरत का जिक्र था. कानून पास होते ही चीन को सीधा हॉन्ग कॉन्ग की कानून-व्यवस्था में दखल का हथियार मिल गया. और इसके बाद ही 2019 के आंदोलन में शरीक हुए लोगों पर कार्रवाई शुरू हो गई. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अब तक हॉन्ग कॉन्ग में 10 हजार से ज्यादा प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया जा चुका है. इनमें से 100 से ज्यादा लोगों को नये कानून के बाद पकड़ा गया. जिनमें 12 साल के बच्चों से लेकर मीडिया दिग्गज जिम्मी लाई और हॉन्ग कॉन्ग में 'जनतंत्र के जनक' कहे जाने वाले मार्टिन ली भी शामिल हैं.
पिछले शुक्रवार हॉन्ग कॉन्ग में 73 वर्षीय जिम्मी लाई समेत दस लोकतंत्र समर्थकों को 14 से 18 महीने की जेल की सजा दे दी गई. आरोप है कि इन्होंने प्रशासनिक पाबंदी के बावजूद 2019 में विरोध प्रदर्शन आयोजित किए. 28 मई को शहर में एक और अहम सुनवाई हुई. जिसमें हॉन्ग कॉन्ग के हाई कोर्ट ने लोकतंत्र समर्थक दो नेता एंड्रू वॉन और क्लाउडिया मो को जमानत देने से इनकार कर दिया. कोर्ट के मुताबिक दोनों ने व्हाट्सऐप पर विदेशी मीडिया से बातचीत कर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून का उल्लंघन किया. इस फैसले ने सबको चौंका दिया. क्योंकि इससे उस आशंका की पुष्टि हो गई कि चीन नए कानून को पुराने मामलों पर भी लागू कर सकता है. गौरतलब है कि हॉन्ग कॉन्ग के दोनों नेताओं की विदेशी मीडिया से बातचीत कानून के वजूद में आने से पहले हुई थी.
…ताकि थियानमेन स्क्वेवयर नरसंहार की बरसी पर जुलूस ना निकले
हॉन्ग कॉन्ग कोर्ट के दोनों फैसले थियानमेन स्क्वेयर नरसंहार की बरसी से ठीक पहले आए. 1989 में चीन की राजधानी बीजिंग में मारे गए लोकतंत्र समर्थकों की याद में हॉन्ग कॉन्ग में हर साल जुलूस निकाला जाता है. लेकिन पुलिस ने कोरोना महामारी का हवाला देते हुए जुलूस पर पाबंदी लगा दी है. जबकि पिछले दिनों में भीड़ भाड़ वाले दूसरों कार्यक्रमों पर पुलिस ने कोई रोक नहीं लगाई. साफ है ऐसा चीन के इशारे पर हो रहा है. क्योंकि चीन थियानमेन स्क्वेयर नरसंहार की चर्चा को हरसंभव दबाने की कोशिश करता है. वहां इंटरनेट पर गोलीकांड से जुड़ी कोई जानकारी नहीं मिलती, सोशल मीडिया पर डाले गए पोस्ट भी तुरंत हटा दिए जाते हैं. हॉन्ग कॉन्ग की तरह चीन के विशेष प्रशासनिक क्षेत्र मकाउ में भी थियानमेन स्क्वेयर नरसंहार से जुड़े हर आयोजन पर रोक लगा दी गई है.
माना जा रहा है कि लोकतंत्र समर्थकों में डर का माहौल बनाने के लिए ही हॉन्ग कॉन्ग के कोर्ट में सख्त फैसले सुनाए गए. क्योंकि हॉन्ग कॉन्ग प्रशासन ने पिछले साल भी कोविड-19 के कारण शोक सभा पर पाबंदी तो लगाई थी, लेकिन इसके बावजूद सैंकड़ों की तादाद में लोकतंत्र समर्थक शहर के विक्टोरिया पार्क में जमा हो गए थे. हालांकि उस समय तो प्रशासन ने भीड़ पर कोई कार्रवाई नहीं की. लेकिन बाद में जिम्मी लाई जैसे 24 नामी लोकतंत्र समर्थकों पर पाबंदी का उल्लंघन कर जुलूस में शामिल होने का मामला दर्ज किया था.
हॉन्ग कॉन्ग की संसद पर 'कब्जा' के लिए 'पेट्रियट्स लॉ' को मंजूरी
सुरक्षा के नाम पर नागरिकों के अधिकारों पर हमले के बाद चीन ने हॉन्ग कॉन्ग की संसद में भी विरोधियों का सफाया करने की तैयारी कर ली है. इस साल 30 मार्च को हॉन्ग कॉन्ग में चीन के इशारे पर नया पेट्रियट्स (राष्ट्रभक्त) कानून पास किया गया. जिसके तहत चीन समर्थित चुनाव कमेटी संसद (Legislative Council) सदस्यों को नामांकित करेगी. अब तक यह कमेटी सिर्फ हॉन्ग कॉन्ग के सर्वोच्च नेता चीफ एग्जीक्यूटिव का चयन करती थी. मौजूदा चीफ एग्जीक्यूटिव कैरी लाम के मुताबिक ऐसा अनपेट्रियटिक (गैर-देशभक्त) चेहरों को जिम्मेदार पदों से दूर रखने के लिए किया गया है. हालांकि इस कानून की दुनिया भर में आलोचना हो रही है.
इतना ही नहीं, चुनाव सुधार के तहत इसके अलावा हॉन्ग कॉन्ग की लेजिस्लेटिव काउंसिल में बदलाव कर जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों के प्रभाव को कम कर दिया गया है. जहां संसद की कुल सीटें बढ़ाकर 70 से 90 कर दी गई हैं, वहीं चुनाव जीत कर आए सदस्यों की संख्या घटा कर 35 से 20 कर दी गई है. बाकी 40 सांसद सीधे चुनाव कमेटी से चुन कर आएंगे और जबकि 30 प्रतिनिधि कारोबार, बैंकिंग, ट्रेड जैसे क्षेत्रों से होंगे.
हॉन्ग कॉन्ग का प्रशासन दरअसल चीफ एग्जीक्यूटिव, लेजिस्लेटिव काउंसिल और ज्यूडिशियरी के हाथों में होता है. अब चीफ एग्जीक्यूटव के साथ-साथ संसद को भी अपनी बागडोर में लेकर चीन ने हॉन्ग कॉन की सत्ता में अपनी पकड़ पूरी मजबूत कर ली है. बताया जा रहा है कि पेट्रियट्स लॉ के तहत शहर में चुनाव दिसंबर में होंगे. फिलहाल हॉन्ग कॉन्ग की संसद बिना विपक्ष के चल रही है. क्योंकि कई विपक्षी नेताओं के अयोग्य ठहराए जाने के बाद खिलाफ आवाज उठाते हुए सभी विपक्षी सदस्य पिछले साल ही इस्तीफा दे चुके हैं.
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