सम्पादकीय

मंडी होली के रंगों में छेद

Rani Sahu
20 March 2022 7:13 PM GMT
मंडी होली के रंगों में छेद
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हिमाचल के प्रगतिशील समाज के आइने मंडी में उस समय टूटते हैं

हिमाचल के प्रगतिशील समाज के आइने मंडी में उस समय टूटते हैं, जब होली के रंगों का उल्लास आपसी वैमनस्य के कत्लखाने में टुकड़े-टुकड़े हो जाता है। सेरी मंच के कान कल तक जिस होली के आनंदोत्सव से सराबोर थे, आज उसी के बगल से बहती ब्यास का क्रंदन सुन सकते हैं। पूरा समाज अपाहिज नजर आता है, जब एक व्यक्ति से हुआ तकरार मौत के वीभत्स दृश्य में हम सभी की भूमिका को लुंज पुंज होते देखता है। हो सकता है मृतक के व्यवहार से होली में हुड़दंग पैदा हुआ हो या उसकी किसी अशोभनीय हरकत से माहौल में उत्तेजना पैदा हुई हो, लेकिन इसका यह जवाब कैसे हो सकता है कि एक बनाम अनेक युद्ध की घोषणा में, बदला लेने की नौबत मौत को अंजाम दे। यह सारा परिदृश्य एक वायरल वीडियो के साक्ष्य और सोशल मीडिया के संदर्भों में राज्य की कानून व्यवस्था को जगा देता है। इसी का नतीजा है कि होली के झगड़े में एक लाश नौ लोगों को पकड़वा सकी। परिदृश्यजनक अपराध की पटकथा को सोशल मीडिया इतना फैला देता है कि इनसाफ खुद साक्ष्य बन कर इसे निहारता है। कैसे एक व्यक्ति को दौड़ा-दौड़ा कर ब्यास नदी में डूबने को मजबूर किया जाता है, इससे नंगा सबूत और क्या होगा। अगर यह दृश्य मोबाइल के कैमरे में पकड़ा नहीं जाता, तो एक लावारिस लाश के सबूत में अपराध कहीं छिप जाता या इन अंधेरों में कानून भी कुछ न देख पाता। ऐसे में सोशल मीडिया के ऐसे अवतार को कबूल करना ही पड़ेगा, क्योंकि पारंपरिक मीडिया अब औपचारिक व तयशुदा घटनाक्रम का वारिस बनता जा रहा है।

मंडी को जिन्होंने मंडी के स्वरूप में देखा है या जिस सांस्कृतिक व्यवहार से यह शहर खुद को विशिष्ट बनाता रहा है, क्या अब समय बदल गया है। होली इस बार कोविड की कालिख पर रंगों की परत जमाने आई थी, लेकिन समाज के भीतर कहीं कोहराम इस कद्र मचा कि यह रंग भी धुल गया। ये रंग नफरत के नहीं हो सकते और न ही सेरी मंच से बरस रहे रंग ऐसे अपराध को कभी स्वीकार करेंगे, लेकिन जिस तरह यह सब हुआ उसने समाज से समाज की ही शिकायत की है। कहीं तो कोई उन्माद हमारे उल्लास में खलल डाल रहा है। कहीं तो हम आगे बढ़ते हुए भी पीछे घाव छोड़ रहे हैं। कभी हिमाचल में अपराध भी डरता था या सामाजिक आंखें अपनी चौकसी में इतना असर रखती थीं कि आपसी सौहार्द में कोई विध्वंसक नहीं हो पाता था। आज तो देवताओं के नाम पर भी संशय पैदा करती रिवायतें शुरू हो गई हैं। मंदिरों से चोरी के मामले और त्योहारों व परंपराओं में लूट की सामग्री बंट रही है। बहरहाल इस मामले में पुलिस ने फौरी तौर पर नौ लोग गिरफ्तार कर लिए हैं और आगे चलकर कत्ल के पीछे की मंशा और मृतक की संदिग्ध भूमिका में पैदा हुए आक्रोश की वजह पता चलेगी, लेकिन यह मामला किन्हीं दो धड़ों में विभक्त नहीं होता, बल्कि यहां पूरा समाज भी कहीं इस घटनाक्रम में शरीक है। समाज छोटे-मोटे झगड़ों में अपनी भूमिका को जिस तेजी से नजरअंदाज कर रहा है, उससे गली-कूचे के टकराव भी कई बार भयानक शक्ल ले लेते हैं। आखिर एक व्यक्ति के पीछे भागती भीड़ को यहां भी कई लोगों ने नजरअंदाज ही तो किया होगा। काश! कोई साहसी अपराध को कारवां बनने से पहले रोक पाता।
हम एक व्यक्ति को मौत के ऐसे आखेट से बचा सकते थे या ऐसे निर्मम दृश्य से अपनी आंखों को बचा सकते थे। बस्तियांे के बीच मस्तियां तो आ गईं, लेकिन त्योहार की मर्यादा हम भूल गए। हम डीजे की ऊंची आवाज के नीचे संवाद की कोमल परिभाषा भूल गए। हम भूल गए कि होली के रंग दरअसल जीवन की वसंत ही तो है। इसीलिए सेरी मंच अपनी परंपरा के गीत सुनाते हुए सभी नागरिकों को जीवन की वसंत से अंगीकार करा रहा था, लेकिन इस वसंत में छेद हो गया। एक शर्मनाक घटना ने न केवल मंडी को बदनाम किया, बल्कि इस गुमनाम कत्ल ने समाज को भी लज्जित किया है। यह मात्र अपराध नहीं, बल्कि अपराध के पांव चलती हमारी सामाजिक विडंबनाएं हैं जो इवेंट तो मना सकती हैं, लेकिन नागरिकों को इवेंट के काबिल नहीं बना सकतीं। क्या अब कानून के पहरे में खुशियां मनाई जाएंगी या हम अपनी-अपनी खुशियों में इतने खंडित न हो जाएं कि सामने कोई धत कर्म नजर ही नहीं आए। जो भी हो, इस दुखांत अध्याय के सबक हम सभी के लिए हैं।

क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचल

Rani Sahu

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