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भारत में हिंदी भाषा को लेकर विवाद नया नहीं है
उदय प्रकाश
भारत में हिंदी भाषा को लेकर विवाद नया नहीं है। जाने-माने अभिनेता अजय देवगन और कन्नड सिनेमा के बड़े स्टार किच्चा सुदीप के बीच भाषा को लेकर जो विवाद उठता दिखा, वह भी कदापि नहीं चौंकाता। इस विवाद पर बॉलीवुड का अपना नजरिया है, उधर, दक्षिण से कुछ और अलग आवाजें आ रही हैं। दूसरी भाषाओं के कलाकार व नेता भी विवाद में अपना योगदान दे रहे हैं। हालांकि, इसमें कोई शक नहीं कि हिंदी को फैलाने और लोकप्रिय बनाने में बॉलीवुड की भूमिका रही है, लेकिन बॉलीवुड में हिंदी की स्थितियों व सीमाओं को भी समझना होगा। हिंदी ने जो स्नेह-दुलार फैलाया है, उसे समझना चाहिए, उसकी उदारता और मिलकर चलने की क्षमता को भी एक नजर जरूर देखना चाहिए।
राज कपूर की एक फिल्म है, जिस देश में गंगा बहती है, उसमें शैलेंद्र का लिखा एक गीत है, ये पूरब है, पूरब वाले/ हर जान की कीमत जानते हैं/ मिल-जुल के रहो और प्यार करो/ एक चीज यही जो रहती है/ हम उस देश के वासी हैं, जिस देश में गंगा बहती है।
आप पाएंगे कि उत्तर भारत या भारत विशेष रूप से गंगा केंद्रित रहा है और हम यही कहते आए हैं कि हम उस देश के वासी हैं, जिस देश में गंगा बहती है। वैसे तो इस देश में कृष्णा, कावेरी, सतलुज, झेलम, पेरियार भी हैं, और जन-जन में प्रिय राम तो सरयू किनारे ही पैदा हुए और उसी में समा गए, लेकिन एक भी गीत बॉलीवुड का आप बताइए, जो सरयू पर बना हो? बॉलीवुड में राम केसाथ भी गंगा नदी को ही याद किया जाता है। तो जो यह बॉलीवुड है, जहां भाषा को लेकर बहुत गंभीर दृष्टिकोण नहीं अपनाना चाहिए।
मैं ट्विटर व अन्य जगह हिंदी पर छिड़ी ताजा बहस देख रहा था। हम राष्ट्रभाषा, संपर्क भाषा, राजकाज की भाषा और मातृभाषा में कोई अंतर ही नहीं कर पा रहे हैं, सबको एक साथ गड्डमड्ड कर दे रहे हैं। तमिलभाषियों पर आप हिंदी जितनी भी लादें, वे तो नहीं कहेंगे कि हिंदी मातृभाषा है। यह समझना होगा कि वास्तव में हमलोग बहुभाषी हैं। मिसाल के लिए, मेरी मां भोजपुर की हैं, पिता बघेली, गांव छत्तीसगढ़ी, तो मैं किस भाषा को कहूं कि ये मेरी मातृभाषा है? यहां हमें उदार होना चाहिए। हां, यह गर्व लायक सच है कि हिंदी बहुत अच्छी भाषा है, दुनिया में तीसरे नंबर की भाषा है, कई देशों में बोली जाती है।
हम लोग खूब विविधता वाले गणराज्य हैं और काफी लंबी प्रक्रिया से गुजरकर एक राष्ट्र या एक राष्ट्रभाषा बनती है। संयुक्त राज्य अमेरिका तो अभी भी राज्यों का ही समूह है, वह आज भी उस तरह से राष्ट्र नहीं है, जैसी हमारे यहां धारणा बनाई जा रही है। वैसे भी, संविधान में कहीं नहीं है कि हिंदी राष्ट्रभाषा है। सभी राजभाषाएं हैं। अंग्रेजी भी है। अंग्रेजी का भी विरोध होता रहा है। हम गौर करें, तो कहीं भी एक लोकप्रिय धारणा बनाई जाती है और लोग उसी को मानने लग जाते हैं। लोक मान्यता कुछ और होती है और वास्तविकता कुछ और। यह विरोधाभास कभी कम नहीं होगा। देश में एक समय था, जब रेलवे स्टेशन और अन्य जगहों पर अंग्रेजी में लिखे नामों को रंग से पोत दिया जाता था और उनकी जगह हिंदी में लिखा जाता था। हिंदी के पक्ष में आंदोलन या राजनीति वगैरह भी कुछ हुई। हिंदी राजनीति की भाषा बन ही सकती है, लेकिन वैसी नहीं बन सकती, जैसी चीन में मंदारिन है या जापान में जापानी भाषा।
बहुत पहले देश में त्रिभाषा फॉर्मूला दिया गया था। पढ़ाई में हिंदी, अंग्रेजी और एक क्षेत्रीय भाषा रहे, लेकिन यह हुआ नहीं, हम अंग्रेजी या अन्य भाषाओं के बीच उलझे रह गए। दुख होता है, जल्दबाजी में हिंदी के पक्ष में जो लोग बोल रहे हैं, उन्हें संपर्क भाषा, राजभाषा, मातृभाषा का अंतर नहीं पता है। दक्षिण की ओर से उठने वाला हिंदी विरोध भी उचित नहीं है, लेकिन जब-जब आप हिंदी के पक्ष में आवाज बुलंद करेंगे, तब-तब दक्षिण में विरोध होगा। हिंदी के पक्ष में सिर्फ ज्यादा आबादी से कुछ नहीं होता है।
अभी फिल्मों में देखिए, अजय देवगन की किसी भी फिल्म ने वैसी कमाई नहीं की है, जैसी दक्षिण की फिल्मों केजीएफ, आरआरआर इत्यादि ने की है। यह अच्छी बात है, दक्षिण की फिल्में हिंदी में भी आ रही हैं, तो हम स्वीकार करते हैं और करना भी चाहिए। आज हिंदी बाजार की सशक्त भाषा है, यह उत्तर से दक्षिण तक हर कोई जानता है। वास्तव में, हिंदी का विरोध कहीं नहीं है, लेकिन हम जानते हैं, इसे कभी-कभी जान-बूझकर उभारा जाता है।
Rani Sahu
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