सम्पादकीय

संस्कृति, संस्कार, मूल्यों की संवाहक है हिंदी

Rani Sahu
14 Sep 2022 6:41 PM GMT
संस्कृति, संस्कार, मूल्यों की संवाहक है हिंदी
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जब कोई राष्ट्र अपने गौरव में वृद्धि करता है तो वैश्विक दृष्टि से उसकी प्रत्येक विरासत महत्त्वपूर्ण हो जाती है। परंपराएं, नागरिक दृष्टिकोण और भावी संभावनाओं के केंद्र में 'भाषा' महत्त्वपूर्ण कारक बनकर उभरती है क्योंकि अंतत: यही संवाद का माध्यम भी है। भाषा अभिव्यक्ति का साधन होती है। भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम होती है। हमारी भावनाओं को जब शब्द-देह मिलता है तो हमारी भावनाएं चिरंजीव बन जाती हैं। इसलिए भाषा उस शब्द-देह का आधार होती है। हिंदी भारोपीय परिवार की प्रमुख भाषा है। यह विश्व की लगभग तीन हजार भाषाओं में अपनी वैज्ञानिक विशिष्टता रखती है। मान्यता है कि हिंदी शब्द का संबंध संस्कृत के 'सिंधु' शब्द से माना जाता है। सिंधु का तात्पर्य 'सिंधु' नदी से है। यही सिंधु शब्द ईरान में जाकर हिंदू, हिंदी और फिर हिंद हो गया और इस तरह इस भाषा को अपना एक नाम 'हिंदी' मिल गया। हिंदी के विकास के अनेक चरण रहे हैं और प्रत्येक चरण में इसका स्वरूप विकसित हुआ है। वैदिक संस्कृत, संस्कृत, पालि, प्राकृत, अपभ्रंश और उसके पश्चात विकसित उपभाषाओं और बोलियों के समुच्चय से हिंदी का अद्यतन रूप प्रकट हुआ है, जो अद्भुत है। पूरे विश्व को एक सूत्र में पिरो कर रखने वाली हम सबकी भाषा हिंदी सम्पूर्ण भारत की जन भाषा, राष्ट्रभाषा और राजभाषा है।
हिंदी हमारी शान है, हमारा गौरव है। यह जन-जन की आशा और आकांक्षाओं का मूत्र्त रूप है और हमारी पहचान है। जब भी बात देश की उठती है तो हम सब एक ही बात दोहराते हैं, 'हिंदी हैं हम, वतन है हिंदोस्तां हमारा'। यह पंक्ति हम हिंदुस्तानियों के लिए अपने आप में एक विशेष महत्त्व रखती है। हिंदी अपने देश हिंदुस्तान की पहचान है। हिंदी केवल एक भाषा ही नहीं हमारी मातृभाषा है। यह केवल भावों की अभिव्यक्ति मात्र न होकर हृदय स्थित सम्पूर्ण राष्ट्रभावों की अभिव्यक्ति है। हिंदी हमारी अस्मिता की परिचायक, संवाहक और रक्षक है। सही अर्थों में कहा जाए तो विविधता वाला भारत अपने को हिंदी भाषा के माध्यम से एकता के सूत्र में पिरोए हुए है। भारत विविधताओं का देश है। यहां पर अलग-अलग पंथ व जाति के लोग रहते हैं, जिनके खानपान, रहन-सहन, वेशभूषा एवं बोली आदि में बहुत अंतर है। लेकिन फिर भी अधिकतर लोगों द्वारा देश में हिंदी भाषा ही बोली जाती है। हिंदी भाषा हम सभी हिंदुस्तानियों को एक-दूसरे से जोडऩे का काम करती है। वास्तव में हिंदी हमारे देश की राष्ट्रीय एकता, अखंडता एवं समन्वय का भी प्रतीक है। हिंदी की लिपि देवनागरी की वैज्ञानिकता सर्वमान्य है। लिपि की संरचना अनेक मानक स्तरों से परिष्कृत हुई है। यह उच्चारण पर आधारित है। पिछले कई दशकों से देवनागरी लिपि को आधुनिक ढंग से मानक रूप में स्थिर किया है, जिससे कम्प्यूटर, मोबाइल आदि यंत्रों पर सहज रूप से प्रयुक्त होने लगी है। स्वर-व्यंजन एवं वर्णमाला का वैज्ञानिक स्वरूप के अतिरिक्त केन्द्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा हिंदी वर्तनी का मानकीकरण भी किया गया जो इसकी वैश्विक ग्राह्यता के लिए महत्त्वपूर्ण कदम है। हिंदी में साहित्य सृजन परंपरा एक हजार वर्ष से भी पूर्व की है। आठवीं शताब्दी से निरंतर हिंदी भाषा गतिमान है। पृथ्वीराज रासो, पद्मावत, रामचरितमानस, कामायनी जैसे महाकाव्य अन्य भाषाओं में नहीं हैं।
संस्कृत के बाद सर्वाधिक काव्य हिंदी में ही रचा गया। हिंदी का विपुल साहित्य भारत के अधिकांश भूभाग पर अनेक बोलियों में विद्यमान है, लोक-साहित्य व धार्मिक साहित्य की अलग संपदा है और सबसे महत्त्वपूर्ण यह महान सनातन संस्कृति की संवाहक भाषा है जिससे दुनिया सदैव चमत्कृत रही है। उन्नीसवीं शती के पश्चात आधुनिक गद्य विधाओं में रचित साहित्य दुनिया की किसी भी समृद्ध भाषा के समकक्ष माना जा सकता है। साथ ही दिनोंदिन हिंदी का फलक विस्तारित हो रहा है जो इसकी महत्ता को प्रमाणित करता है। हिंदी और विश्व भाषा के प्रतिमानों का यदि परीक्षण करें तो न्यूनाधिक मात्रा में यह भाषा न केवल खरी उतरती है, बल्कि स्वर्णिम भविष्य की संभावनाएं भी प्रकट करती है। आज हिंदी का प्रयोग विश्व के सभी महाद्वीपों में प्रयोग हो रहा है। आज भारतीय नागरिक दुनिया के अधिकांश देशों में निवास कर रहे हैं और हिंदी का व्यापक स्तर पर प्रयोग भी करते हैं। अत: यह माना जा सकता है कि अंग्रेजी के पश्चात हिंदी अधिकांश भूभाग पर बोली अथवा समझी जाने वाली भाषा है। भारतवर्ष के ललाट की बिंदी अर्थात 'हिंदी भाषा' को 14 सितंबर 1949 को अनुच्छेद 343 (1) के तहत संविधान सभा के सामूहिक मत द्वारा राजभाषा के रूप में अपनाया गया था। वर्तमान में हिंदी को संविधान के द्वारा राजभाषा का पद मिला हुआ है। इस हेतु संवैधानिक प्रावधानों व विभिन्न आयोगों की सिफारिशों को क्रियान्विति का प्रयत्न हुआ है, किंतु राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी अभी तक समुचित अधिकार प्राप्त नहीं कर पाई है, जो विचारणीय है। उन कारकों का अध्ययन किया जाना चाहिए जो कि हिंदी को राष्ट्रभाषा पद पर अधिष्ठित कर सकें। हिंदी को राष्ट्रभाषा के गौरव से विभूषित करने हेतु हमें एकजुट होना होगा। आइए, हम हिंदी के प्रसार के लिए कृतसंकल्प होकर एक स्वर से कहें कि 'हिंदी हमारे माथे की बिंदी है'।
हमें यह प्रण भी लेना होगा कि हम हिंदी को अपने उस शीर्षस्थ स्थान पर प्रतिष्ठित कर दें कि हमें हिंदी दिवस मनाने जैसे उपक्रम न करने पड़ें और हिंदी स्वत:स्फूर्त भाव से मूद्र्धाभिषिक्त हो। विश्व में हिंदी का विकास करने और इसे प्रचारित-प्रसारित करने के उद्देश्य से विश्व हिंदी सम्मेलनों की शुरुआत की गई। प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन 10 जनवरी 1975 को नागपुर में आयोजित हुआ था। इसीलिए इस दिन को विश्व हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने 10 जनवरी 2006 को प्रति वर्ष विश्व हिंदी दिवस के रूप मनाए जाने की घोषणा की थी। उसके बाद से भारतीय विदेश मंत्रालय ने विदेश में 10 जनवरी 2006 को पहली बार विश्व हिंदी दिवस मनाया था। उस समय से हर साल 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस मनाया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य हिंदी को अंतरराष्ट्रीय स्तर तक आगे बढ़ाकर उसे अंतरराष्ट्रीय भाषा का दर्जा दिलाना और प्रचार-प्रसार करना है। हमें अपनी भाषा से प्रेम और आत्मीयता विकसित करते हुए इसके सही उपयोग के प्रति सचेष्ट रहना चाहिए। यदि हमारी प्रतिबद्धता निरंतर सजग और उत्साही बनी रही तो वह दिन दूर नहीं, जब हमारी भाषा हिंदी विश्व में सिरमौर होगी। इस गौरवमयी हिंदी दिवस पर समस्त साहित्यसाधक, सुधी मनीषियों, लब्धप्रतिष्ठ महानुभावों, शिक्षा व साहित्य की शृंखला से जुड़े हरेक व्यक्तित्व को शुभकामनाएं देता हूं।
डा. सुरेंद्र शर्मा
लेखक ठियोग से हैं

By: divyahimachal

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