सम्पादकीय

हिमाचली युवा की नवयात्रा

Rani Sahu
7 Jun 2022 7:24 PM GMT
हिमाचली युवा की नवयात्रा
x
हिमाचली युवा की महत्त्वाकांक्षा को समझे बिना हम न तो शैक्षणिक व्यवस्था में सुधार कर सकते हैं

हिमाचली युवा की महत्त्वाकांक्षा को समझे बिना हम न तो शैक्षणिक व्यवस्था में सुधार कर सकते हैं और न ही उन्हें प्रेरित कर पाएंगे। बेशक आत्म प्रेरणा ने हिमाचली युवा के संकल्प और करियर के प्रति वचनबद्धता के आयाम बदल दिए हैं, फिर भी यह विश्लेषण होना चाहिए कि राज्य की शिक्षा पद्धति ने छात्रों के भीतर प्रतिस्पर्धा, पाठ्यक्रम से आगे ज्ञान, जागरूकता और लीक से हटकर आगे बढ़ने के लिए कितना प्रेरित किया। हिमाचली युवाओं का जोश, मेहनत और नित नया करने की ताजगी का अवलोकन क्या हमारे शिक्षण संस्थान कर रहे हैं या वार्षिक परीक्षाओं की मशीनरी बने विभाग व स्कूल शिक्षा बोर्ड केवल औपचारिक शिक्षा के लक्ष्य में अपना वजूद जिंदा रखे हुए हैं। इसी रविवार प्रदेश के करीब साढ़े छह हजार युवाओं ने केंद्रीय संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में उतरकर यह तो बता दिया कि करियर के साज कैसी उम्मीदों के साथ बज रहे हैं। यह परिवर्तन की दिशा में ऐसा उदय है जहां नौकरी की परंपराएं किसी खूंटे से बंधी नहीं और न ही प्रतिभा के लिए एक सीमित आकाश ही उपलब्ध है।

यह हिमाचली युवा की नवयात्रा है जो एक साथ कई संकेत दे रही है। पहला यही कि शिक्षा के वर्तमान में सूरज ढूंढने निकले कई छात्र व अभिभावक या तो सरकारी स्कूलों को तिलांजलि दे चुके हैं या इनमें से कुछ प्रदेश के बाहर निकल कर शिक्षा प्राप्ति की नई जमीन छू रहे हैं। अकेले चंडीगढ़ में ही छात्र समुदाय का हिमाचली आंकड़ा पंद्रह से बीस हजार आंका गया है, तो दिल्ली विश्वविद्यालय के तहत उच्च शिक्षा प्राप्ति में हिमाचली बेटियां अपनी प्राथमिकताएं बदल रही हैं। पिछले एक दशक में शिक्षा का नूर बदला है तो फितूर भी सिर चढ़ बोल रहा है। अगर दिल्ली, चंडीगढ़, कोटा या अन्य ऐसे केंद्रों में कोचिंग ले रहे बच्चों की तासीर का पता लगाएं तो मालूम हो जाएगा कि किस तरह उनकी जरूरतें बदल रही हैं और शिक्षा को परिमार्जित करते ज्ञान की भूख भी। क्या हिमाचली स्कूल ज्ञान की भूख या करियर की उत्कंठा बढ़ा पा रहे हैं या हम वार्षिक परीक्षाओं की खेप में इस नतीजे पर पहुंच चुके हैं कि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले केवल शिक्षा की आपूर्ति मान लिए जाएं। बहरहाल एक दूसरा परिदृश्य भी है जो अपने सन्नाटों के बाहर निकल कर बहुत कुछ पाना चाहता है। ये वे बच्चे हैं जो सुदूर ग्रामीण या कबायली परिवेश से बाहर निकल कर मेहनत की नई पिच पर कड़ा अभ्यास कर रहे हैं। उदाहरण के लिए पांगी-भरमौर और चंबा के कई भीतरी इलाकों के अधिकांश बच्चे धर्मशाला शहर में विभिन्न अकादमियों या पुस्तकालयों के जरिए अब तक अर्जित शिक्षा के आयाम बदल रहे हैं।
यही वजह है कि सरकारी पुस्तकालयों के अलावा धर्मशाला शहर में ही नौ निजी पुस्तकालय अब तक खुल चुके हैं और इनके तहत करीब पांच हजार बच्चे करियर के नए मापतोल में खुद को सक्षम या बुलंद कर रहे हैं। प्रदेश में युवाओं के लिए करियर लाइबे्ररी की जरूरत को समझते हुए सरकार को शिक्षा के बजट से कुछ धनराशि इनके लिए आबंटित करनी चाहिए। बेहतर होगा जिला स्तर के सरकारी पुस्तकालय आगे चलकर युवा काउंसिलिंग व अध्ययन केंद्रों के रूप में विकसित किए जाएं। यहां हर प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी में माहौल, मैटीरियल और मकसद पैदा किया जाए और इसके लिए उच्च स्तर के विशेषज्ञों की सेवाएं ली जाएं। शिक्षा के बजट का एक हद तक निवेश, ज्ञान की परीक्षा में युवाओं को सफल बनाने के लिए करना ही होगा। यह कार्य स्कूल शिक्षा बोर्ड भी कर सकता है। बोर्ड को आठवीं के आधार पर टेलेंट सर्च करने के लिए प्रतिस्पर्धी परीक्षा का आयोजन करते हुए, प्रदेश के तीन से पांच हजार बच्चों का चयन करके उन्हें आगे की पढ़ाई अपने मॉडल स्कूलों में करानी चाहिए ताकि ये छात्र, करियर की उड़ान में यह तय कर सकें कि उन्हें कौन सी राह पकड़नी है। प्रदेश के कुछ शहरी सरकारी स्कूलों को बोर्ड के हवाले करके इनमें चयनित छात्रों की अलग-अलग पाठ्यक्रम के तहत वाणिज्य, विज्ञान, मेडिकल, इंजीनियरिंग, प्रशासनिक सेवाओं व खेलों में अपना करियर खोजने में मदद मिल सकती है।

सोर्स- divyahimachal

Rani Sahu

Rani Sahu

    Next Story