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- चुनाव में नायकवाद
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By: divyahimachal
हिमाचल के आगामी विधानसभा चुनाव में फिर से नायकवाद की जमीन तैयार की जा रही है। परिस्थितियों के आलोक में भाजपा ने अपने मंसूबों का 'नायकवाद' पैदा ही नहीं किया, बल्कि इसे पल्लवित और परिष्कृत करते हुए पार्टी अपने विरोधी दल यानी कांग्रेस पर पलटवार भी कर रही है। ऐसे में मिशन रिपीट के नायक यानी मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के इर्द-गिर्द ऐसा वातावरण तैयार किया जा रहा है, जो कांग्रेस के भीतर असमंजस खोजता है। यानी भाजपा अपनेे 'नायक' के सामने कांग्रेस को 'नायक विहीन' साबित करना चाहती है। प्रत्यक्ष में राजनीति की ऐसी पिच पर भाजपा के लिए कमोबेश पिछले चुनाव के अनुभव हैं, जब पार्टी बिना चेहरे के जीत का मुकुट पहन कर चल रही थी, लेकिन अंतत: राजगढ़ की सभा में अमित शाह को प्रेम कुमार धूमल का नाम बतौर मुख्यमंत्री आगे करना पड़ा था।
इस बार कांग्रेस के लिए किसी एक के नाम पर मोहर लगाना कठिन इसलिए भी है क्योंकि पार्टी के लिए यह जड़ों की लड़ाई है और इस बार चुनावी परंपराएं आवरण बदल कर मुकाबिल होंगी। कांग्रेस अपने 'नायकवाद' को छोटे-छोटे दुर्गों में आजमा कर कई नेताओं का प्रभाव छोड़ सकती है। मसलन चुनावी चित्र में मुकेश अग्रिहोत्री, सुखविंद्र सुक्खू, रामलाल ठाकुर, आशाकुमारी, प्रतिभा सिंह व राजिंद्र राणा जैसे योद्धाओं के अपने-अपने क्षेत्र तो हैं ही, साथ में कांग्रेस अपनी धरोहर राजनीति का निवेश भी कर रही है। जिस परिवारवाद पर भाजपा चोट करना चाहती है, उसके मुगालते में स्थिति का अवलोकन पार्टी के लिए कठिन डगर पर खड़ा है, लेकिन इसके विपरीत कांग्रेस के पैमाने इतनी छूट दे चुके हैं कि जनता जीएस बाली जैसे नेता की रिक्तता में उनके बेटे आरएस बाली की उम्मीदवारी को हसरत भरी निगाह से देख रही है। कुछ इसी तरह का मंजर वीरभद्र सिंह की विरासत के प्रति आशावान होता दिखाई देता है। हालांकि इससे तोलमोल की जिस सियासत से मंडी संसदीय क्षेत्र के उपचुनाव को देखा गया, वह आइंदा एकतरफा नहीं हो सकता। फिर भी 'नायक' के अवतार में तर्क तो सुनाई दे रहे हैं। ये तर्क कांग्रेस की जिस शक्ति को मात्र वीरभद्र सिंह की संपत्ति बना कर आगामी चुनाव को देखना चाहते हैं, उनसे कहीं भिन्न राजनीतिक इबारत लिख रही कांग्रेस एक साथ कई नेताओं की हस्ती को पारंगत कर रही है।
जनता कांग्रेस में मुख्यमंत्री देखने के बजाय अपने मुद्दों का तात्कालिक हल देखना चाहती है और इसी के परिप्रेक्ष्य में पार्टी फिर सुर्खियां समेट रही है। इसके सामने भाजपा की सत्ता अपने 'नायकवाद' के घोंसले में कई सुखद पहलू भरना चाहती है। इसमें दो राय नहीं कि मुख्यमंत्री ने दिल खोलकर कई बंद ताले खोलते हुए, लाभार्थियों को कृतज्ञ बनाने की हरसंभव कोशिश की है। बावजूद इसके कुछ प्रश्रों, खासतौर पर ओपीएस के मसले पर कर्मचारी अपने हित के फैसलों में 'नायक' देख रहे हैं। क्या उन्हें वर्तमान सरकार का दौर अपने नायकत्व से रू-ब-रू कराते हुए सारे मसले को मसल देगा या इस टेढ़ी खीर का अंजाम, गले की फांस बन जाएगा। मिशन रिपीट के सबसे कठिन अभियान पर निकली भाजपा ने अपने नायक को इतना शक्तिशाली बना दिया है कि सरकार का हर पहलू, चुनाव का अंकगणित देख रहा है, लेकिन जहां मुद्दों की खुराक पर चुनाव अपनी सेहत बयान करेगा, वहां कुछ बेडिय़ां हटानी ही पड़ेंगी। चुनाव के समीकरण भी अपने भीतर 'वोट के नायक' पैदा करते हैं। ऐसे में मोदी और भाजपा के प्रभाव के अलावा हिमाचल का कर्मचारी व युवा बेरोजगार वर्ग भी अपने-अपने वोट के ऐसे नायक हैं, जिनके ऊंट की करवट को पहचान पाना फिलहाल मुश्किल है।
Rani Sahu
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