सम्पादकीय

क्या चीन ने सोलोमन द्वीप से सुरक्षा समझौता कर प्रशांत महासागर क्षेत्र में अमेरिका को चुनौती दी है?

Rani Sahu
4 May 2022 9:43 AM GMT
क्या चीन ने सोलोमन द्वीप से सुरक्षा समझौता कर प्रशांत महासागर क्षेत्र में अमेरिका को चुनौती दी है?
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चीन (China) और सोलोमन द्वीप की सरकार के बीच हाल ही में एक द्विपक्षीय सुरक्षा समझौते पर दस्तखत किए गए हैं

प्रणय शर्मा

चीन (China) और सोलोमन द्वीप की सरकार के बीच हाल ही में एक द्विपक्षीय सुरक्षा समझौते पर दस्तखत किए गए हैं. इस समझौते की वजह से प्रशांत महासागर (Pacific Ocean) में संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके सहयोगियों के नीति योजनाकारों के बीच खतरे की घंटी बजने लगी है. गौरतलब है कि प्रशांत महासागर एक ऐसा इलाका है जहां पिछले 70 वर्षों से अमेरिका हावी रहा है. द्वीप राष्ट्रों के पारंपरिक पार्टनरों जैसे अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड को डर है कि यह समझौता चीन द्वारा प्रशांत क्षेत्र में अपनी सैन्य उपस्थिति को सुनिश्चित करने की दिशा में पहला कदम है.
इंडोपैसिफिक क्षेत्र (Indo-Pacific Region) में चीन के आक्रामक और विस्तारवादी रूख़ की वजह से अमेरिका ने Quadrilateral Strategic Dialogue (चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता) की शुरुआत की थी. इस सामरिक वार्ता को बतौर QUAD जाना जाता है और इसके सदस्य भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका हैं. प्रशांत क्षेत्र के घटनाक्रम पर अमेरिका और उसके सहयोगियों ने प्रतिक्रिया देने में विलंब कर दी है क्योंकि इस समय वाशिंगटन और पश्चिमी दुनिया का ध्यान यूक्रेन युद्ध पर ज्यादा केन्द्रित है.
सशस्त्र बलों को सोलोमन द्वीप समूह भेज सकता है
पहले चीन इन रिपोर्टों का खंडन किया करता था कि वह इस क्षेत्र में नौसैनिक बेस स्थापित करने की कोशिश कर रहा है. लेकिन इस सुरक्षा समझौते की पुष्टि चीन और सोलोमन द्वीप सरकार दोनों ने की है. समझौते को अभी लागू होना बाकी है. लेकिन इसकी शर्तों के तहत चीन सामाजिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस, सैन्यकर्मियों और अन्य सशस्त्र बलों को सोलोमन द्वीप समूह भेज सकता है. समझौते के तहत चीन इन द्वीपों पर ठहरने और सामानों की आपूर्ति के लिए युद्धपोत भी भेज सकता है. ये एक ऐसा प्रावधान है जिसकी वजह से बीजिंग के विरोधियों की नाराजगी बढ़ी है. वे इस संभावना से इंकार नहीं करते हैं कि आने वाले दिनों में चीन यहां नौसेना बेस स्थापित कर सकता है.
इस समझौते के बाद अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के यूएस इंडो-पैसिफिक कोऑर्डिनेटर कर्ट कैंपबेल एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल के साथ सोलोमन द्वीप समूह की राजधानी होनियारा पहुंचे. वहां उन्होंने प्रधानमंत्री मानासेह सोगवारे और उनके कैबिनेट सदस्यों से बात की. कैंपबेल ने स्पष्ट किया कि यदि चीन सोलोमन द्वीप में स्थायी सैन्य उपस्थिति या सैन्य बेस स्थापित करने की कोशिश करता है तो अमेरिका का चिंतित होना लाजिमी है और जिसके बाद वे अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए बाध्य होंगे. सोगवारे ने अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल को आश्वासन दिया है कि चीन इन द्वीपों का इस्तेमाल अपनी शक्ति दिखाने के लिए नहीं करेगा और न ही यहां किसी तरह का चीनी बेस बनाया जाएगा. दूसरी तरफ चीन ने भी इस बात पर जोर दिया है कि समझौता किसी तीसरे देश को ध्यान में रखकर नहीं किया गया है.
लेकिन अमेरिका और उसके सहयोगी लगातार ही सोलोमन द्वीप के प्रधानमंत्री को मनाने की कोशिश कर रहे हैं कि वे चीन के साथ सुरक्षा समझौते पर आगे नहीं बढ़े. गुआडलकैनाल द्वीप पर स्थित होनियारा को प्रशांत महासागर का एक रणनीतिक चेकपॉइंट माना जाता है. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, यह अमेरिका और जापान के बीच एक महत्वपूर्ण युद्ध का मैदान था. इंपीरियल जापानी नौसेना ने यहां एक बेस बनाने की मांग की थी ताकि अमेरिका को उसके सहयोगी आस्ट्रेलिया से काटा जा सके.
चीन अब सोलोमन द्वीप में अपना दूसरा बेस खोल सकता है
मित्र देशों की सेना और जापानियों के बीच लड़ाई इस मान्यता पर आधारित थी कि ऑस्ट्रेलिया, हवाई और अमेरिका के पश्चिमी तट के बीच की सप्लाइ लाइन पर जीतने वाले पक्ष के काबू में होगी. विशेषज्ञों का मानना है कि वही रणनीतिक तर्क आज भी मान्य है क्योंकि इससे चीन को इस विशाल महासागर में फायदा मिलेगा. चीन का अब तक का एकमात्र विदेशी सैन्य अड्डा पूर्वी अफ्रीकी राष्ट्र जिबूती में है जिसे 2017 में स्थापित किया गया था. इस क्षेत्र के कई देशों को डर है कि चीन अब सोलोमन द्वीप में अपना दूसरा बेस खोल सकता है.
पिछले साल नवंबर में देश के विभिन्न द्वीपों के निवासियों के बीच जबरदस्त दंगा हुआ था. इस दंगे में चीनी नागरिकों की मौत और संपत्ति का नुकसान हुआ था. इन दंगों के बाद चीन और सोलोमन द्वीप के बीच सुरक्षा समझौता की जरूरत महसूस की गई. उस दंगे को काबू में करने के लिए आस्ट्रेलिया ने अपनी पुलिस भेजी थी. ऑस्ट्रेलिया हमेशा से ही सोलोमन द्वीप समूह को सुरक्षा प्रदान करता रहा है. 2017 में आस्ट्रेलिया ने सोलोमन द्वीप के साथ द्विपक्षीय सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. इस समझोते के तहत सोलोमन द्वीप में बड़ी सुरक्षा चुनौती की स्थिति में आस्ट्रेलिया को यह अनुमति प्राप्त है कि वह अपने सैनिकों और संबंधित नागरिकों को वहां तैनात करे. द्वीपों में स्थिति को नियंत्रित करने के लिए न्यूजीलैंड ने भी शांति सैनिकों को भेजा था.
चीन ने कहा कि सोलोमन द्वीप समूह के साथ उसका सहयोग अन्य देशों के साथ होनियारा के सहयोग के विरोध में नहीं है. इसके विपरीत चीन का मानना है कि यह मौजूदा क्षेत्रीय सहयोग तंत्र का पूरक ही है. सोगवारे ने कैनबरा और अन्य को भी आश्वासन दिया कि ऑस्ट्रेलिया के साथ उनका सुरक्षा समझौता जारी रहेगा. कुछ पर्यवेक्षकों का मानना है कि सोगवारे स्थानीय पुलिस की कमजोरी को दूर करने और भविष्य में इसी तरह की स्थिति से निपटने के लिए चीन से अतिरिक्त सुरक्षा सहायता चाहते थे. लेकिन विरोधियों को डर है कि चीन की मंशा प्रशांत क्षेत्र में समुद्र तट पर भविष्य की रणनीतिक मोर्चाबंदी के तहत सशस्त्र पुलिस की तैनाती करना है.
हाल के वर्षों में इस क्षेत्र में उसकी गतिविधियां काफी बढ़ गई हैं
चीन ने सोगवारे को तैयार करने में काफी समय लगाया है. और यही वजह है कि साल 2019 में सोगवारे ने अपनी राजनीतिक निष्ठा ताइवान से हटाकर बीजिंग के प्रति बदलने का फैसला लिया था. हालांकि प्राथमिक सुरक्षा के मुद्दे पर ऑस्ट्रेलिया सबसे बड़ा सहायता देने वाला गारंटर रहा है फिर भी सोलोमन द्वीप सरकार अब अपने विकल्पों को विस्तार देने की कोशिश कर रही है. सोलोमन द्वीप में चीन की दिलचस्पी इसलिए भी बढ़ गई है क्योंकि हाल के वर्षों में इस क्षेत्र में उसकी गतिविधियां काफी बढ़ गई हैं. पिछले साल इसने फिजी को युद्धपोत मुहैया कराया और पापुआ न्यू गिनी में एक बंदरगाह और सड़कों का निर्माण शुरू किया.
चीन ने वानुअतु में एक बड़ा बंदरगाह बनाने का भी फैसला लिया है. जाहिर है इस फैसले से कुछ पर्यवेक्षक चिंतित हैं क्योंकि उनका मानना है कि बाद में इसे सैन्य अड्डे के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है. चीन ने मध्य प्रशांत महासागर में एक द्वीप किरिबाती को भी ताइवान की बजाय बीजिंग में राजनयिक निष्ठा बदलने के लिए राजी कर लिया था. रणनीतिकार का मानना है कि चीन ये कोशिश कर रहा है कि आस्ट्रेलिया के आस पास वो बीजिंग समर्थक ब्लॉक का विस्तार करे ताकि अमेरिका के खिलाफ भू-राजनीतिक फायदा हासिल कर सके. चीनी सरकार प्रशांत क्षेत्र में भू-राजनीतिक परिदृश्य को अपने पक्ष में बदलना चाहती है. इस खतरे के मद्देनज़र आने वाले दिनों में इस क्षेत्र के प्रमुख द्वीपों पर प्रभाव स्थापित करने के लिए चीन और अमेरिका के बीच नए सिरे से संघर्ष की शुरूआत हो सकती है.
Rani Sahu

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