सम्पादकीय

गुजरात: जब नमाज पढ़ने और रोज़ा खोलने के लिए खुल गए मंदिर के दरवाजे

Rani Sahu
9 April 2022 5:02 PM GMT
गुजरात: जब नमाज पढ़ने और रोज़ा खोलने के लिए खुल गए मंदिर के दरवाजे
x
कहते हैं कि राजनीति लोगों के आपसी भाईचारे को तोड़ने का काम करती है

नरेन्द्र भल्ला

कहते हैं कि राजनीति लोगों के आपसी भाईचारे को तोड़ने का काम करती है, लेकिन धर्म चाहे कोई भी हो, वह लोगों को आपस में जोड़ने में ही विश्वास रखता है. देश में कुछ ताकतों को दो समुदायों के बीच नफ़रत फैलाने से ही फ़ुरसत नहीं है, लेकिन गुजरात के एक छोटे-से गांव के लोगों ने साम्प्रदायिक सौहार्द और भाईचारे की ऐसी मिसाल पेश की है, जिसकी जितनी भी तारी की जाए, कम है. इस वक्त एक तरफ जहां शक्ति की आराध्य देवी के नौ स्वरुपों के पर्व नवरात्रि को धूमधाम से मनाया जा रहा है, तो वहीं मुस्लिम समाज रमजान के पवित्र महीने में रोजे रखकर अल्लाह की इबादत कर रहा है.
शायद ऐसा पहली बार हुआ है, जब मुस्लिम समाज के भाइयों के लिए मगरिब की नमाज़ पढ़ने और उनका रोज़ा खोलने के लिए एक प्राचीन मंदिर के दरवाज़े खोल दिये गए हों. यही नहीं, मंदिर के संचालकों ने सौ से ज्यादा रोजेदारों के लिए खाने-पीने का सारा इंतज़ाम भी अपनी तरफ से ही किया, ताकि रोजा खोलने के वक़्त उन्हें किसी चीज की कमी न हो. रोजेदारों के लिए पांच से छह प्रकार के फल, खजूर और शर्बत की व्यवस्था की गई. बीते कुछ सालों में देश में जिस तरह का माहौल बनाया गया है, उसे देखते हुए कौमी-एकता की इससे बड़ी मिसाल और क्या हो सकती है.
गुजरात के दलवाड़ा जिले के बनासकांठा में एक छोटा सा गांव है, हदियोल. यहां वरदावीर महाराज का मंदिर है जो 1200 साल पुराना बताया जाता है.इस गांव में मुस्लिमों की आबादी तकरीबन 15 फीसदी है लेकिन 85 फीसदी हिंदुओं के साथ उनका भाईचारा ऐसा कि नफ़रत की आग भी उसे जला नहीं पाई.
कल शुक्रवार था और इस्लाम में जुमे का अपना अलग महत्व है, लिहाजा मंदिर के संचालकों ने तय किया कि गांव में रहने वाले मुस्लिम परिवार मंदिर परिसर में आकर ही शाम की नमाज़ पढ़ेंगे और उसके बाद वहीं पर अपना रोजा उपवास भी खोलेंगे. बड़ी बात ये है कि गांव के सरपंच भूपतसिंह हाडिओल ने ही शाम को मंदिर परिसर में इफ्तार पार्टी आयोजित करने और सभी मुस्लिम भाइयों को अपना रोजा उपवास तोड़ने के लिए आमंत्रित करने का प्रस्ताव रखा था, जिसे पूरे गांव ने सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया. सरपंच के मुताबिक "हमने आसपास के गांवों के मुस्लिम दोस्तों को भी इसमें आमंत्रित किया और उनमें से कई इसमें शामिल भी हुए."
सोचिए कि साम्प्रदायिक सद्भाव का वह नजारा कितना अद्भुत होगा कि एक तरफ मुस्लिम भाई मग़रिब की नमाज़ पढ़ रहे थे, तो वहीं मंदिर में हर शाम होने वाली वीर महाराज की नियमित आरती भी हो रही थी. वरंदा वीर महाराज मंदिर, दलवाड़ा देवस्थान ट्रस्ट के सचिव रंजीत हाडिओल के मुताबिक "जब प्रदेश में हिंदू-मुस्लिम के झगड़े अपने चरम पर थे, तब भी हमारे गांव ने एकता और धार्मिक सहिष्णुता की मिसाल कायम की थी. दशहरा, मोहर्रम, दिवाली या ईद हो, हम सामूहिक उत्साह के साथ अपने त्योहारों को एक साथ मनाते हैं." गांव के अधिकांश मुस्लिम परिवार मंदिर के निर्माण के लिए दान देने वाले पालनपुर के पूर्व शासकों को अपना पूर्वज मानते हैं.
दलवाना के एक नौजवान व्यापारी वसीम खान बड़े फख्र से बताते हैं कि, "हमारा गांव दो समुदायों के बीच भाईचारे के लिए जाना जाता है. हमने अपने हिंदू भाइयों के साथ उनके त्योहारों में भी कंधे से कंधा मिलाकर काम किया है. इस बार, ग्राम पंचायत ने हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय के नेताओं से संपर्क किया और उन्हें एक प्रस्ताव दिया कि हम इस शुक्रवार को मंदिर में आकर अपना उपवास तोड़ें. यह हमारे लिए बेहद जज़्बाती मौका था."
साल 2011 की जनगणना के अनुसार दलवाना की आबादी करीब 2,500 है, जिसमें मुख्य रूप से राजपूत, पटेल, प्रजापति, देवीपूजक और मुस्लिम समुदाय शामिल हैं. मुसलमानों में लगभग 50 परिवार हैं जो आमतौर पर खेती और छोटे-मोटे व्यवसाय में लगे हैं. दलवाना सरपंच पिंकीबा राजपूत ने बेहद मार्के की बात कही. उनके मुताबिक "रामनवमी और होली के त्योहारों के दौरान, हमारे मुस्लिम भाइयों ने हमारी मदद की, इसलिए हमने सोचा कि इस साल, हमें उनके लिए भी ऐसा ही करना चाहिए." समाज में दो संप्रदायों के बीच नफ़रत का जहर घोलने वाले धर्म के ठेकेदार क्या इस मिसाल से कोई सबक लेने की हिम्मत जुटा पाएंगे?
Rani Sahu

Rani Sahu

    Next Story