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By: divyahimachal
हिमाचल में खेलों का रिकार्ड और उभरती प्रतिभाओं का आकाश खुद ही संभावनाओं से मुलाकात कर रहा है। ऐसे में सरकार की प्राथमिकताओं में अब खेलों के समुद्र ढूंढे जाने लगे हैं और खेल मंत्रालय का अभियान खासी तवज्जो अर्जित करता है, इसलिए खेल नीति के व्यावहारिक पक्ष को आजमाने का इंतजार बाकी है। कहा तो जयराम सरकार ने बहुत, केंद्रीय खेल मंत्री अनुराग ठाकुर के दायित्व से अपेक्षा भी रही, लेकिन अब बतौर खेल मंत्री विक्रमादित्य सिंह से उम्मीदों का पाला पड़ा है। यह इसलिए नहीं कि विभिन्न खेलों के राष्ट्रीय शिविरों में हिमाचली बच्चे शिरकत कर रहे हैं, बल्कि सारी करवटों को माकूल अधोसंरचना व खेल आयोजनों के साथ-साथ यह अभी तय करना बाकी है कि खिलाड़ी जीवन आगे चलकर किस तरह सुरक्षित रहेगा। उम्मीदों की इन्हीं पलकों को खोलते हुए खेल मंत्री कटासनी में अंतरराष्ट्रीय स्तर की शूटिंग रेंज की बात करते हैं, तो वर्षों से चल रही फाइल अपनी आंख खोलकर देखना चाहती है।
पिछले वर्षों में ऐसी ही बनती-बिगड़ती खेल योजनाओं-परियोजनाओं का अस्त-व्यस्त सा इतिहास रहा है। हाई आल्टीट्यूट खेल प्रशिक्षण केंद्र की फाइल यूं ही धूल चाट रही है, तो बजट के बावजूद धर्मशाला के राष्ट्रीय प्रशिक्षण खेल छात्रावास की एक भी ईंट नहीं लग पाई। बहरहाल सुक्खू सरकार के संकल्प में फिर खेलों का सामान सजाया जा रहा है और दावा यह कि हर जिला कम से कम किसी एक खेल का अभिभावक बनेगा। यह सोच अगर खुद को मुकम्मल कर पाता है, तो विभिन्न जिलों के प्रांगण में कोई एक खेल अपना भविष्य देख पाएगा। इसी के साथ अगर राज्य अपनी गतिविधियों को पारंगत और अधोसंरचना को अंतरराष्ट्रीय स्तर तक ले जाना चाहता है, तो एक बार राष्ट्रीय खेलों का आयोजन करने की ठान कर एक साथ आठ-दस खेल परिसर विकसित कर सकता है। कनेक्टिविटी व आवश्यक जरूरतों के हिसाब से अगर धर्मशाला को राष्ट्रीय खेलों का मुख्य परिसर बनाया जाए, तो इसकी परिधि में ऊना, हमीरपुर, मंडी, चंबा, कुल्लू, सोलन व शिमला तक आयोजनों की फेहरिस्त में अलग-अलग खेलों को अपना समृद्ध ठिकाना मिलेगा। इसी के साथ पौंग जलाशय में वाटर स्पोट्र्स, मनाली-शिमला में विंटर स्पोट्र्स और पूरे प्रदेश में साहसिक खेलों के चिन्हित मंतव्य को पूरा किया जा सकता है।
प्रदेश की आबोहवा में इतना नूर है कि कुछ खेल संगठनों के साथ मिलकर राष्ट्रीय स्तर की दर्जनों खेल अकादमियां चलाई जा सकती हैं। यूं तो हिमाचल में खेल प्राधिकरण, खेल कालेज व खेल विश्वविद्यालय तक की स्थापना की हवाई योजनाएं गूंजती रही हैं, लेकिन हकीकत में स्कूली, ग्रामीण तथा विश्वविद्यालय स्तर की खेलों के वार्षिक आयोजनों के तहत कई मैदानों की स्थिति सुधारने की अति आवश्यकता है। ग्रामीण खेलों के तहत कुश्ती, कबड्डी, वालीबॉल, हॉकी तथा एथलेटिक्स को महत्त्व देकर आगे बढ़ाया जा सकता है। खेल मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने सामाजिक सहयोग के तहत प्रदेश की चर्चित हस्तियों से विभिन्न खेलों को गोद लेने का आह्वान करके अपनी वचनबद्धता दोहराई है। समाज की इसी भूमिका को अगर विभिन्न पारंपरिक मेलों में तराशा जाए, तो हर साल कितने ही आयोजन खिलाडिय़ों को पारंगत कर सकते हैं, मगर देखना यह होगा कि पारंपरिक मेला मैदानों से अवैध अतिक्रमण हटे तथा इनके विस्तार के लिए वन भूमि अर्जित की जा सके। चंबा के चौगान, मंडी के पड्डल, सुजानपुर मैदान, सोलन के ठोडो मैदान, धर्मशाला के पुलिस ग्राउंड तथा कुल्लू के ढालपुर मैदान ने वक्त के साथ खुद को छोटा कर लिया है।
हमीरपुर जैसे जिला मुख्यालय में एक भी नागरिक मैदान नहीं है। ऐसे में कम से कम हर गावं में एक तथा शहरों में चार-चार सार्वजनिक मैदान विकसित करते हुए किसी एक को पूरी तरह खेलों के लिए समर्पित कर दिया जाए। नागरिक सहयोग के साथ-साथ कारपोरेट जगत को भी आगे लाया जाए। किसी समय बतौर मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने सिंथैटिक ट्रैक बिछाने में सीमेंट फैक्टरियों से अंशदान कराया था। आज की स्थिति में राज्य के प्रमुख सहकारी बैंकों के सुपुर्द कोई न कोई खेल, खेल स्टेडियम या खेल आयोजन की जिम्मेदारी दे देनी चाहिए। इसी तरह वन विभाग के सहयोग से वन भूमि पर अगर आठ-दस मैदान भी विकसित कर लें, तो खेल नक्शा बदल जाएगा। प्रदेश की प्रमुख बिजली परियोजनाओं, निगमों और बोर्डों के अधीन भी खेल प्रश्रय का एक खाका बनाया जा सकता है।
Rani Sahu
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