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यहां के 10 प्रतिशत अमीरों की सालाना कमाई देश की कुल कमाई का 57 फीसदी हिस्सा है
वर्ल्ड इनइक्वलिटी रिपोर्ट' यानी विश्व असमानता रिपोर्ट के मुताबिक, भारत उन देशों में एक है, जहां आर्थिक विषमता या गैर-बराबरी सबसे ज्यादा हो चुकी है। यहां के 10 प्रतिशत अमीरों की सालाना कमाई देश की कुल कमाई का 57 फीसदी हिस्सा है। इनमें भी केवल ऊपर के एक फीसदी लोग देश की 22 प्रतिशत कमाई पर काबिज हैं, जबकि नीचे की आधी आबादी महज 13 प्रतिशत कमाई पर गुजारा कर रही है। इन आंकड़ों को और बेहतर समझने के लिए यह जानना जरूरी है कि अगर आप महीने में 42,000 रुपये कमाते हैं, तो इस देश की 80 फीसदी आबादी आपसे नीचे है। और 72 हजार रुपये मासिक कमाने वाले तो 10 फीसदी से भी कम हैं।
अब आप चाहें, तो इन आंकड़ों में अपनी जगह देखकर खुश हो सकते हैं, या फिर इस चिंता के हिस्सेदार बन सकते हैं कि आखिर गैर-बराबरी के बढ़ने की वजह क्या है? जब अंग्रेज भारत से गए, उस वक्त देश के सबसे अमीर 10 फीसदी लोगों के पास दौलत और कमाई में करीब आधा हिस्सा था। आजादी के बाद की नीतियों और दसियों साल की मेहनत से यह हिस्सा घटकर 80 के दशक में 35 से 40 फीसदी के बीच आया। लेकिन इस साल की रिपोर्ट बताती है कि यह आंकड़ा फिर बढ़कर 57 फीसदी से ऊपर जा चुका है। यह एक विकट समय है। कोरोना का असर कमाई पर भी पड़ा है और संपत्ति पर भी। पूरी दुनिया में लोगों की कमाई घटी है। लेकिन इस गिरावट का आधा हिस्सा अमीर देशों और आधा गरीब देशों के हिस्से गया है। यानी, गिरावट कमाई के हिसाब से नहीं हुई है। अमीर देशों पर इसका असर कम और गरीब देशों पर ज्यादा दिखाई पड़ा है।
असमानता रिपोर्ट के मुताबिक, इसकी जिम्मेदारी मुख्य रूप से दक्षिण व दक्षिण-पूर्व एशिया पर आती है, और उसमें भी सबसे ज्यादा भारत पर। इसका अर्थ है कि भारत में लोगों की कमाई में सबसे तेज गिरावट आई है। जाहिर है, अमीर और अमीर हो रहे हैं, और गरीब और गरीब। आर्थिक असमानता रिपोर्ट के लेखक इसके लिए अस्सी के दशक के बाद के उदारीकरण और आर्थिक सुधार की नीतियों को जिम्मेदार मानते हैं। हालांकि, हाल ही में भारत की आबादी में महिलाओं की हिस्सेदारी सुधरने का आंकड़ा आया है। मगर कमाई के मामले में महिलाओं के हाथ सिर्फ 18 प्रतिशत हिस्सा ही लगता है। जरूरत इस बात की है कि इस रिपोर्ट को ध्यान से पढ़ा जाए, इसमें दिए गए सुझावों पर अमल करने का दबाव बनाया जाए। यह सब जल्दी करना जरूरी है। इससे पहले कि दुनिया की आर्थिक और दूसरी ताकत भी एक छोटे समूह के हाथों में इतनी केंद्रित हो जाए कि उससे मुकाबला करना ही असंभव हो जाए।
सच कहूं
Gulabi
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