सम्पादकीय

घास काटने का हुनर

Rani Sahu
4 Oct 2021 7:24 AM GMT
घास काटने का हुनर
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सबसे अद्भुत हुनर है घास काटना। हर कोई घास नहीं काट सकता, बल्कि घास की पहचान हो जाए तो कई खोटे सिक्के भी इस काटकर चल निकलते हैं

सबसे अद्भुत हुनर है घास काटना। हर कोई घास नहीं काट सकता, बल्कि घास की पहचान हो जाए तो कई खोटे सिक्के भी इस काटकर चल निकलते हैं। दुनिया में हर किसी ने घास की सबसे अधिक अवमानना की है, बल्कि अवमानना भी घास की तरह उगती है, लेकिन काटता कोई-कोई। घास अपनी निरंतरता के कारण सदियों से उगती आई, लेकिन इसने अपने काटे जाने पर कभी एतराज नहीं किया। कई बार लगता है कि घास की पैदाइश और इसके प्रसार में एक खास तरह की निरंतरता है जो अब लोकतांत्रिक सरकारों के व्यवहार में भी नहीं पाई जाती। सरकार और घास में सिर्फ हुनर का अंतर है। सरकार का बनना और बचना दो अलग-अलग तरह के हुनर हैं, जबकि घास का केवल कटना ही हुनर है। वक्त पे कट जाए तो घास अमृत है, वरना बदनाम तो इस काटने वाले को भी होना है। घास को लगता है कि वह भी बीपीएल जैसा परिवार बना सकती है या उसे इसी दृष्टि से देखा जाता है। वह बिना कर्ज उठाए उग सकती है, जबकि किसी सरकार में यह दम नहीं कि अपने तिनके भी बिना उधार के उठा पाए। घास को यह तकलीफ है कि उसके उगने के बावजूद पशु आवारा घूम रहे हैं। एक बार उसने आवारा गाय से पूछ लिया कि वह सड़कों पर घूमना क्यों पसंद करती है। गाय ने ऐसा जवाब दिया कि घास शर्म से तिनका-तिनका हो गई।

आवारा गाय बता रही थी, 'आवारा होना आजकल फैशन में है, बल्कि सबसे निपुण व्यक्ति आपको आवारा हालात में ही मिलेंगे। देश के निर्माण में आवारा लोगों का घनत्व बढ़ सकता है, तो पशुओं की कीमत का अंदाजा उसकी आवारगी में है। मैं जब आवारा हालत में घूमती हूं, तो लोग मेरी नस्ल पर गौर करते हैं। सत्ता का हर मंच मेरी हिफाजत में गूंजता है। आजकल तो मजे हैं। श्राद्धों में मनुष्य प्रजाति की श्रद्धा का अद्भुत संयोग मेरे कंधों पर आ जाता है। मुझे खोज कर खिलाया जाता है।' उसने घास के कान में कहा, 'मुझे इनसान का हर ढोंग और उसके द्वारा रचित हर प्रपंच पसंद है। पिछले दिनों कोई मर रहा था तो घरवालों ने मिलकर मेरा ही दान कर दिया। मैं सबूत बनती रहती हूं कि देश धर्म की रक्षा कर रहा है। डरती हूं कि कहीं सरकार के गोसदनों में न रहना पड़े।' घास यह सुनकर खुश हुआ कि उसे खाने वाले अब खेतों के खेत उखाड़ रहे हैं, लेकिन किसान हर दिन चारे के लिए उसके पास आता है और अपनी फटी हथेलियों के दम पर करीने से उसे काटता है
'मुझे देखकर जीने का एहसास करता किसान, सहज भरे अंदाज में मुट्ठी में भर लेता है। मेरे जीवन का सबसे बड़ा स्पर्श किसान के हाथ में आकर कट जाना है। वह मुझे सहलाता और सहेजता हुआ अपने घर ले जाता है। पशुओं से दूध दुहते उसके घर के सदस्य हसरत भरी निगाहों से मुझे देखते हैं और एक कोने में सजा देते हैं। मैं किसान के घर आकर बार-बार जन्म लेता हूं। मेरा पुनर्जन्म हर बार घास की ही पैदावार है, जबकि इनसान तो इस जन्म में भी धर्म की दीवारों में बंद है।' घास अपना वृत्तांत सुनाकर आनंदित था। कुछ दिनों बाद सरकार की फाइल में घास उगाने की एक विदेशी परियोजना जन्म लेती है। कृषि वैज्ञानिक, प्रशासन और सरकार के मंत्री चहक उठते हैं। पुरानी घास उखाड़कर विदेशी उगाएंगे। जहाज में आई घास को वीआईपी ट्रीटमेंट मिलता है और जनता के सामने सदियों से उग रही पहाड़ी घास को उखाड़-उखाड़ कर उसकी जगह रोपा जाता है। साल भर सारे देश में विदेशी घास की चर्चा के बावजूद यह बिना कटे ही सूख जाती है। यह देख फिर पहाड़ी घास किसी मतदाता की तरह खुद में देश बदलने की कोशिश करती है। शायद सरकार बदलने से पहले पुरानी घास उग आए और विपक्ष विदेशी घास की लागत पर मुद्दों का घास काटता नजर आए।
निर्मल असो
स्वतंत्र लेखक
Rani Sahu

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