सम्पादकीय

प्रिकॉशन डोज और बच्चों की वैक्सीन पर सरकार का सही फैसला

Rani Sahu
27 Dec 2021 5:50 PM GMT
प्रिकॉशन डोज और बच्चों की वैक्सीन पर सरकार का सही फैसला
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार शाम देश को संबोधित करते हुए आखिर बच्चों के लिए वैक्सीन के साथ फ्रंटलाइन वर्कर्स और गंभीर बीमारियों से पीड़ित सीनियर सिटिजंस के लिए प्रिकॉशन डोज शुरू किए जाने का एलान कर दिया

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार शाम देश को संबोधित करते हुए आखिर बच्चों के लिए वैक्सीन के साथ फ्रंटलाइन वर्कर्स और गंभीर बीमारियों से पीड़ित सीनियर सिटिजंस के लिए प्रिकॉशन डोज शुरू किए जाने का एलान कर दिया। ओमिक्रॉन के रूप में उभर आए नए खतरे को देखते हुए इन दोनों कदमों की जरूरत महसूस की जा रही थी। वैक्सिनेशन के इस नए फेज की शुरुआत तब हो रही है, जब टीकाकरण मुहिम को एक साल पूरा हो रहा है। प्रधानमंत्री ने इस एक साल की उपलब्धियां भी बताईं।

उन्होंने जानकारी दी कि इस अवधि में देश की 61 फीसदी वयस्क आबादी को टीके की दोनों डोज लगाई जा चुकी है और 90 फीसदी वयस्क आबादी एक डोज ले चुकी है। लेकिन कोरोना का नया वेरिएंट ओमिक्रॉन जिस आसानी से बच्चों में भी फैल रहा है, उसे देखते हुए सिर्फ वयस्क आबादी का हिसाब ज्यादा आश्वस्त करने वाला नहीं लगता। दूसरी बात यह कि इस वयस्क आबादी में भी 39 फीसदी को पूरी तरह वैक्सीन के सुरक्षा दायरे में नहीं माना जा सकता। ऐसे में विशेषज्ञों के सामने स्वाभाविक ही दुविधा की स्थिति बन गई थी। उन्हें तय करना था कि सरकार का जोर किस पर होना चाहिए, पहले समूची आबादी को वैक्सीन की दोनों डोज लगाने का अभियान पूरा कर लेना ठीक होगा ताकि सभी न्यूनतम सुरक्षा के घेरे में आ जाएं या फिर अपनी ऊर्जा का कुछ हिस्सा प्रिकॉशन डोज देने में लगाते हुए यह काम भी साथ-साथ चलाना चाहिए।
आखिर विभिन्न देशों से मिल रहे आंकड़ों और विशेषज्ञों की सलाहों के अनुसार फैसला हुआ कि तय प्रक्रिया के मुताबिक टीकाकरण अभियान यथासंभव तेजी से जारी रखते हुए भी उन लोगों का विशेष ख्याल रखा जाना जरूरी है, जिन्हें ज्यादा खतरा है। इसी नीति के तहत गंभीर बीमारियों से ग्रस्त बुजुर्गों और फ्रंटलाइन वॉरियर्स को प्रिकॉशन डोज देने का फैसला किया गया है। इसके साथ ही बच्चों में ओमिक्रॉन संक्रमण के खतरे के मद्देनजर उन्हें भी जल्द से जल्द टीके दिलाने का फैसला हुआ है, जो उचित ही है। इसी संदर्भ में यह भी जरूरी है कि दो टीकों के बीच अंतर कम करने पर गंभीरता से विचार किया जाए। बदले हालात में इस अंतराल को बड़ा बनाए रखने का मतलब यह होगा कि एक डोज ले चुके लोग ज्यादा समय तक टीके की पूर्ण सुरक्षा हासिल करने से वंचित रहेंगे।
पहली नजर में यह स्थिति संक्रमण का जोखिम बढ़ाने वाली लगती है। हालांकि इस मामले में भी यह तो विशेषज्ञ ही तय कर सकते हैं कि दो टीकों के बीच का अंतराल कितना कम किया जाए जिससे इसकी क्षमता प्रभावित न हो। कुल मिलाकर, प्रिकॉशन डोज और बच्चों के लिए टीके का यह फैसला ओमिक्रॉन की चुनौती से निपटने में सहायक जरूर होगा, मगर निर्णायक मोर्चा आम लोगों की सावधानी का स्तर ही बना रहने वाला है।

नवभारत टाइम्स

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